बच्चों के प्रति बढ़ रहे अपराध रोकने अपराधियों को कड़ी सजा देना जरूरी : कोर्ट

बच्चों के प्रति बढ़ रहे अपराध रोकने अपराधियों को कड़ी सजा देना जरूरी : कोर्ट

Anita Peddulwar
Update: 2019-02-04 07:04 GMT
बच्चों के प्रति बढ़ रहे अपराध रोकने अपराधियों को कड़ी सजा देना जरूरी : कोर्ट

डिजिटल डेस्क, नागपुर।  फिरौती के लिए 8 वर्षीय बच्चे का अपहरण करने वाले दो युवाओं की उम्रकैद की सजा रद्द करने से बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने इनकार कर दिया है। कोर्ट ने इस फैसले में कहा कि समाज में बढ़ रहे बच्चों के प्रति अपराध को रोकने के लिए ऐसे तत्वों को कड़ी सजा देना जरूरी है। हाईकोर्ट ने अपहरण के आरोपी भगवान फंडत (26) खामगांव और माधव कापडे (23) खामगांव निवासी को निचली अदालत द्वारा सुनाई गई उम्र कैद की सजा को कायम रखा, आरोपियों की अपील खारिज कर दी।

आपराधिक प्रवृत्ति के तत्वों को कड़ा संदेश जरूरी 

मामले में हाईकोर्ट ने निरीक्षण दिया कि चाहे इस प्रकरण में लिप्त दोनों आरोपियों की उम्र बहुत कम हो, लेकिन उनका अपराध गंभीर है। पैसों के लालच में दोनों ने इस घटना को अंजाम दिया। कोर्ट के ध्यान में यह बात आई है कि हाल के दिनों में समाज में बच्चों से जुड़े अपराध बढ़ रहे हैं। इनमें बच्चों का अपहरण करने के बाद बलात्कार या हत्या करने जैसे मामले दिल दहलाने वाले हैं। समाज में बच्चों पर घट रहे इन अपराधों को रोकने के लिए कानून का सख्ती से पालन करना जरूरी है। इन दोषियों की उम्र कम होने के बावजूद कोर्ट द्वारा समाज में आपराधिक प्रवृत्ति के तत्वों को एक कड़ा संदेश जाएगा। 

5 करोड़ की फिरौती मांगी

घटना सितंबर 2011 की है। आरोपियों ने फरियादी राजेश राजोरे (खामगांव, जि.बुलढाणा) के 8 वर्षीय बेटे कल्पेश का अपहरण कर लिया था। लड़का संगीत क्लास से वापस लौट रहा था। दोनों आरोपियों ने मिलकर घटना को अंजाम दिया। इसके बाद उन्होंने लड़के के पिता को फोन कर 5 करोड़ रुपए की फिरौती मांगी थी। इसके बाद 3 करोड़ रुपए लेकर लड़के को छोड़ने के लिए तैयार हुए थे, लेकिन इस बीच पिता ने खामगांव पुलिस में शिकायत कर दी। अपनी मुश्किलें बढ़ती देख अपहरणकर्ताओं ने कल्पेश को कुएं में फेंक दिया। उसके शोर मचाने पर अगल-बगल के लोगों ने उसे बाहर निकाला। इस मामले में पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ भादवि 363, 364-ए, 387 व अन्य के तहत मामला दर्ज किया था। मामले में निचली अदालत ने दोनों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इसे उन्होंने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। 

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