ताड़ोबा में फिर एक घायल बाघ की मौत, फारेस्ट की लापरवाही से नहीं हो सका इलाज

ताड़ोबा में फिर एक घायल बाघ की मौत, फारेस्ट की लापरवाही से नहीं हो सका इलाज

Anita Peddulwar
Update: 2018-02-26 08:45 GMT
ताड़ोबा में फिर एक घायल बाघ की मौत, फारेस्ट की लापरवाही से नहीं हो सका इलाज

डिजिटल डेस्क, चिमूर/चंद्रपुर।  दो बाघों की लड़ाई में घायल हुए  बाघ का फारेस्ट की लापरवाही से उपचार नहीं हो सका और उसकी मौत हो गई।  चिमूर वनपरिक्षेत्र के भान्सुली जंगल के कक्ष क्र.5 के गांव तालाब के पास  संघर्ष हुआ था। बाद में घायल होने के बाद फारेस्ट की जटिल शर्तों के कारण समय पर उपचार की अनुमति नहीं दी गई ।  बुधवार से उपचार की प्रतीक्षा कर रहे बाघ ने अंतत: रविवार को दम तोड़ दिया।  फारेस्ट के जटिल शर्त व लापरवाही से बाघ की मौत होने से वन्यजीव प्रेमियों में तीव्र रोष जताया जा रहा है।  

ताड़ोबा अंधारी व्याघ्र प्रकल्प में बढ़ रही बाघों की संख्या
बाघों के लिए प्रसिद्ध  ताड़ोबा अंधारी व्याघ्र प्रकल्प में दिन-ब-दिन बाघों की संख्या बढ़ रही है। इससे बाघ अपने अस्तित्व के लिए आपस में संघर्ष करते हैं। कई बार बाघों की मृत्यु हो जाती है तो कई बार वे घायल हो जाते हैं। अपना क्षेत्र छोड़कर गांव समीप दूसरे जंगल का सहारा लेते हैं। ऐसे ही एक घायल बाघ ने  चिमूर  वनपरिक्षेत्र के भान्सुली जंगल के कक्ष क्र.5 में गांव तालाब के पास डेरा डाला। घायल बाघ दिखते ही फारेस्ट की टीम ने उस पर नजर रखी थी।  वरिष्ठ अधिकारियों की प्रतीक्षा करते-करते कनिष्ठ अधिकारी परेशान हो गए थे। पांच दिन का घटनाक्रम वनविभाग के वरिष्ठ अधिकारी तक पता रहने के बावजूद अनदेखी की गई। राज्य के वनमंत्री चंद्रपुर जिले के रहने के बावजूद उपचार के ट्रैन्क्युलाइज के आदेश में इतनी देरी क्यों? ऐसा सवाल उपस्थित हो रहा है। एक ओर बाघ संरक्षण के लिए लाखों रुपए खर्च किए जाते है लेकिन उपचार के अभाव में घायल बाघ की मौत होना गंभीर बात है। समय पर उपचार मिल जाता तो शायद उसकी मौत भी नहीं होती थी लेकिन उपचार के लिए नागपुर के वन्यजीव पीसीसीएफ की अनुमति आवश्यक थी। जब सीसीएफ ने शुक्रवार को घटनास्थल का जायजा लेकर उपचार का आदेश देते तो घायल बाघ बच सकता था परंतु घायल बाघ के ट्रैन्क्युलाइज की अनुमति के लिए करीब 5 दिन प्रतीक्षा करनी पड़ी। 
बाघ का शव खडसंगी के विश्रामगृह परिसर में लाकर उपवनसंरक्षक गजेंद्र हिरे,  सहायक उपवनसंरक्षक आर.एम.वाकडे, दक्षता उपवन संरक्षक ब्राम्हने, आरएफओ भावीक चिवंडे, एनटीसीपी के डा.हिमांशु जोशी, डा.रवि खोब्रागड़े, उदय पटेल, मानद वन्यजीव रक्षक बंडू धोतरे, वन्यजीव प्रतिनिधि अमोद गोरकार, सरपंच दीपक धोगांडे आदि की उपस्थिति में शव विच्छेदन किया गया। इसके बाद अंतिम संस्कार किया गया।

ताड़ोबा का "एड़ा अन्ना" था 
बाघ ताडोबा के मोहुर्ली परिसर का होने की जानकारी वन्यजीव प्रेमियों ने दी है। इस बाघ का 2009-10 के दरम्यान मोहुर्ली परिसर में निवास था। वहां के नागरिक उसे "एडा अन्नाÓ के नाम से पहचानते थे। इस बाघ की पूंछ कटी होने से उसे ब्रोकन टेल रूप में उसकी अंगरेजी में पहचान है। यह बाघ कुछ माह पूर्व इस परिसर में भटक गया था। बाघों की लड़ाई में यह बाघ घायल होने की बात कही जा रही है। बाघ की उम्र 9 से 10 वर्ष थी। बाघ के शरीर पर कई जगहों पर चोटें थीं।  इन चोटों पर इल्लियां भी लग गई थी। 
 

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