धर्म का नहीं, भेदभाव दूर करने का प्रयास था सबरीमाला पर निर्णय : श्रीहरि अणे

धर्म का नहीं, भेदभाव दूर करने का प्रयास था सबरीमाला पर निर्णय : श्रीहरि अणे

Anita Peddulwar
Update: 2018-11-27 10:02 GMT
धर्म का नहीं, भेदभाव दूर करने का प्रयास था सबरीमाला पर निर्णय : श्रीहरि अणे

डिजिटल डेस्क, नागपुर। सबरीमाला प्रकरण यह धार्मिक मुद्दा कम और असमानता और भेदभाव का मुद्दा अधिक था। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद यह विवाद समाप्त तो नहीं हुआ, लेकिन बढ़ जरूर गया है। राज्य के पूर्व महाधिवक्ता श्रीहरि अणे ने सिविल लाइंस स्थित बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ के सभागृह में आयोजित अपने व्याख्यान में यह बात कही। हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के स्टडी सर्कल उपक्रम के तहत "धार्मिक स्वतंत्रता और सबरीमाला निर्णय" विषय पर यह व्याख्यान आयोजित किया गया था। अणे ने आगे कहा कि किसी धार्मिक परंपरा की कितनी जरूरत है और उनका पालन नहीं होने से धर्म या समाज कितना खतरे में आएगा, इस पर विचार होना चाहिए।

सबरीमाला प्रकरण केवल धार्मिक स्वतंत्रता का ही मुद्दा नहीं था, बल्कि स्त्री और पुरुष समानता का अहम मुद्दा था। कानून से सामाजिक परिवर्तन नहीं होता, यह तो साफ बात है, क्योंकि यदि ऐसा होता तो संविधान के मुताबिक छूआछूत प्रथा समाप्त हो जानी चाहिए थी। सती प्रथा बंद हुई, तब भी इसका बहुत विरोध हुआ था। इतना ही नहीं, प्रथा बंद होने के कई साल बाद तक महिलाएं सती हो रही थीं। समाज धीरे-धीरे बदलाव को स्वीकार करता है। सबरीमाला प्रकरण भी इसी तरह स्वीकृति प्राप्त करेगा। अपने व्याख्यान में अणे ने बीते 60 वर्षों के विविध फैसलों का हवाला देते हुए अपने विचार रखे। इस दौरन मंच पर एचसीबीए अध्यक्ष अनिल किल्लोर, सचिव प्रफुल्ल खुबालकर और उपाध्यक्ष पुरुषोत्तम पाटील उपस्थित थे। 

जज लोया प्रकरण में दायर फौजदारी याचिका पर टली सुनवाई
बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ में अधिवक्ता सतीश उके द्वारा दायर जज ब्रिजगोपाल लोया मृत्यु प्रकरण से जुड़ी याचिका बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने स्थगित कर दी।   न्यायमूर्ति एस. बी. शुक्रे और न्यायमूर्ति एस. बी. मोडक की बेंच में यह मामला सुनवाई के लिए आया, लेकिन जजों ने मामले को अन्य बेंच के समक्ष लगाने के आदेश जारी किए। उल्लेखनीय है कि इस याचिका में एड. उके ने दावा किया है कि 1 दिसंबर 2014 को शहर के सिविल लाइंस स्थित रवि भवन में जज लोया की मृत्यु हार्टअटैक से नहीं हुई, बल्कि उन्हें रेडियो एक्टिव आयसोटॉप जहर देकर मारा गया।

बीते दिनों लोया प्रकरण से जुड़े सभी मामले सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दिए थे। अब उके का दावा है कि उनके पास इस प्रकरण से जुड़े ऐसे पुख्ता सबूत हैं, जिससे कि कई राजनीतिक हस्तियों की इस प्रकरण में लिप्तता सामने आएगी। सर्वोच्च न्यायालय ने उके के पास मौजूद दस्तावेजों को देखे बगैर आदेश जारी किया था। ऐसे में वे एक बार फिर नए सिरे से याचिका दायर कर रहे हैं। 

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