तरबूज व खरबूज हुए बेस्वाद, बिगड़ते पर्यावरण व रेत उत्खनन से उत्पादन घटा

तरबूज व खरबूज हुए बेस्वाद, बिगड़ते पर्यावरण व रेत उत्खनन से उत्पादन घटा

Anita Peddulwar
Update: 2019-04-06 11:04 GMT
तरबूज व खरबूज हुए बेस्वाद, बिगड़ते पर्यावरण व रेत उत्खनन से उत्पादन घटा

डिजिटल डेस्क, भंडारा। ग्रीष्मकाल शुरू होते ही बाजार में ककड़ी, तरबूज, खरबूज जैसे विशेष मौसमी फल किसानों के बागबान से निकलकर बिक्री के लिए मार्केट में आ रहे हैं। बिगड़ते पर्यावरण व बढ़ते रेत उत्खनन के कारण  फलों के उत्पादन में गिरावट देखी जा रही है। फलों का उत्पादन लगातार कम होने के कारण स्थानीय बाजार में गत कुछ वर्षों से अन्य प्रांत से फल बिक्री के लिए लाए जा रहे हैं। 

जिले में सुर, बावनथड़ी, वैनगंगा, चूलबंद जैसी बड़ी नदियां है। नदी किनारे पर बसे गांवों के ढिवर समाज के नागरिक ग्रीष्मकालीन फल व सब्जियों का उत्पादन लेते हैं। नदियों में पानी कम होने के उपरांत उपलब्ध पानी के आधार पर रेती में तरबूज, खरबूज, टिंडा, चौलाई फल्लियां, ककड़ी आदि फसल की बुआई करते हैं। परंतु नियमित मौसम में हो रहे बदलाव के कारण, महंगाई व खर्च की तुलना में होने वाला अत्यल्प उत्पादन आदि समस्याओं का असर व्यवसाय पर दिखाई दे रहा है। नदी किनारे पर बसे मांडेसर, खमारी, कारधा, गर्रा, बघेड़ा, करड़ी इस प्रकार के अनेक गांव मेंं उपरोक्त मौसमी व्यवसाय किया जाता है। 

सैकड़ों परिवारों को मार्च से जून चार माह की कालावधि में रोजगार उपलब्ध होता है। उक्त स्थल पर लगाए गए फलों का स्वाद उत्तम होता है। जिसके कारण स्थानीय बाजार समेत अन्य स्थानों पर भी फलों की मांग बढ़ने लगी है। परंतु पवनी व भंडारा में गोसेखुर्द बांध के कारण व्यवसाय पूरी तरह से ठप हो गया है। कुछ उत्पादनकर्ता नदी के एवज में अब अपने खेतों में ही उपरोक्त फसलों की बुआई करते हैं। भंडारा जिले के बाजार में बड़ी संख्या में तरबूजों की बिक्री के लिए आवक हो रही है। परंतु यह तरबूज स्थानीय नहीं है।  अन्य जिलों  व अन्य राज्य से रोजाना ट्रक के माध्यम से तरबूज मंगाए जा रहे हैं। उक्त तरबूजों में स्वाद की कमी है।दूसरे तरबूज बाजार में उपलब्ध न होने के कारण इसी तरबूज की खरीदी करने के अतिरिक्त ग्राहकों के पास अन्य कोई विकल्प नही है। 

रेत उत्खनन भी एक कारण  
तरबूज व खरबूज का उत्पादन नदी की रेत से लिया जाता है। परंतु गत कुछ वर्षो से नदियां रेतमाफियोाओं के लिए कमाई का साधन बन गई है। ग्रीष्मकाल में बड़े पैमाने पर नदी से रेत का दोहन किया जाता है। दिन-रात हो रहे रेत उत्खनन के कारण इन स्थानों पर अब उत्पादन ले पाना मुश्किल होता जा रहा है।  

बेस्वाद हुए फल 
तपती धूप में घर से बाहर निकलते ही थकान व ऊर्जा की कमी महसूस होती है। ग्रीष्मकाल में पसीने के साथ ही शरीर की ऊर्जा भी बाहर निकल जाती है। ऐसे वातावरण में शरीर में शक्कर व पानी के संतुलन को बनाए रखने के लिए तरबूज व खरबूज  की विशेष मांग रहती है। परंतु कम समय में बड़े पैमाने पर तरबूज का उत्पादन लेने के लिए रासायनिक खाद का उपयोग किया जाता है। जिसमें लाल रंग दिखाई देने के लिए कृत्रिम रंग, मिठास बढ़ाने के लिए सॅकरीन के इंजेक्शन लगाए जाते हैं। जिसके कारण तरबूजों में अब पहले जैसा स्वाद नहीं रहता।

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