कोरोना के इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती के लिए न मांगे EVS प्रमाण पत्र 

कोरोना के इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती के लिए न मांगे EVS प्रमाण पत्र 

Anita Peddulwar
Update: 2020-06-27 12:08 GMT
कोरोना के इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती के लिए न मांगे EVS प्रमाण पत्र 

डिजिटल डेस्क, मुंबई । बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि कोरोना के उपचार के लिए अस्पताल में भर्ती होने से पहले आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईवीएस) के लोगों से आय से जुड़ा प्रमाण पत्र मांगना अपेक्षित नहीं है। हाईकोर्ट ने यह बात चैरीटी अस्पताल में कमजोर तबके के लोगों के लिए आरक्षित बेड पर भर्ती होनेवाले मरीजों के संबंध में कहीं हैं। हाईकोर्ट में के जे सोमैया हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर में झोपड़पट्टी इलाके में रहने वाले लोगों से कोरोना के उपचार के लिए मनमानी तरीके से बिल वसूले जाने से संबंधित याचिका पर सुनवाई चल रही है।

हाईकोर्ट ने इस मामले में सुनवाई के बाद अस्पताल को कोर्ट प्रशासन के पास 10.06 लाख रुपये जमा करने का निर्देश दिया है।  इससे पहले याचिकाकर्ता के वकील विवेक शुक्ला ने न्यायमूर्ति आरडी धानुका की खंडपीठ के सामने कहा कि अस्पताल मे कोरोना के इलाज के लिए भर्ती होने वाले सात लोग आर्थिक रुप से कमजोर वर्ग के हैं। जिन्होंने कर्ज लेकर 10 लाख रुपए का अस्पताल बिल चुकाया है। याचिका के मुताबिक अस्पताल ने मनमानी तरीके से इलाज का बेतहाशा बिल दिया है। बिल में काफी अनावश्यक शुल्क जोड़ा गया है।  वहीं अस्पताल की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता जनक द्वारकादास ने कहा कि याचिकाकर्ता कमजोर वर्ग के नहीं है। इन्होंने तहसीलदार द्वारा प्रमाणित आय का प्रमाणपत्र भी नहीं पेश किया है।

याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि मेरे मुवक्किल कोरोना बाधित थे। इसलिए वे तत्काल उपचार के लिए भर्ती हो गए थे। हाईकोर्ट ने पिछली सुनवाई के दौरान धर्मादाय आयुक्त से इस मामले की जांच रिपोर्ट मंगाई थी। याचिका पर सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने रिपोर्ट का निरीक्षण किया। इसके बाद खंडपीठ ने कहा कि चैरिटेबल अस्पताल होने के नाते सोमैया अस्पताल को 10 प्रतिशत बेड कमजोर वर्ग के लिए आरक्षित रखना जरूरी है। 

खंडपीठ ने कहा कि प्रथम दृष्टया कोई गरीब व्यक्ति यदि कोरोना संक्रमित है तो उससे ईवीएसयोजना के तहत अस्पताल में भर्ती होने से पहले तहसीलदार द्वारा प्रमाणित आय का प्रमाणपत्र दिखाने की अपेक्षा नहीं की जा सकती। रिपोर्ट से स्पष्ट होता है कि गरीब तबके के लिए अस्पताल में 90 बेड थे पर इसमें मार्च से मई 2020 तक सिर्फ 3 मरीज भर्ती किए गए हैं। यह कहते हुए खंडपीठ ने अस्पताल को कोर्ट प्रशासन के पास 10.06 लाख रुपए जमा करने का निर्देश दिया और मामले की सुनवाई दो सप्ताह तक के लिए स्थगित कर दी। 
 

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