नगर की बड़ी कॉलोनियां अब भी प्रशासन के रिकॉर्ड में 'झुड़पी जंगल' है

नगर की बड़ी कॉलोनियां अब भी प्रशासन के रिकॉर्ड में 'झुड़पी जंगल' है

Anita Peddulwar
Update: 2018-03-20 10:51 GMT
नगर की बड़ी कॉलोनियां अब भी प्रशासन के रिकॉर्ड में 'झुड़पी जंगल' है

डिजिटल डेस्क, नागपुर।  शहर में  ऐसे इलाके हैं जिन्हें प्रशासन तो झुड़पी जंगल करार दे रहा है, लेकिन हकीकत में अब यहां कांक्रीट के जंगल उग आए हैं। शहर में हरियाली बिखेरने वाले झुड़पी जंगल कब और कहां गायब हो गए इसका किसी को पता ही नहीं चल सका। ऐसे इलाकों में तकिया धंतोली, चूनाभट्टी, वसंतनगर, अंबिकानगर, अजनी आदि इलाकों का समावेश है। रिकॉर्ड और हकीकत में अंतर की इस स्थिति के लिए प्रशासन जिम्मेदार है। आश्चर्य की बात है कि पिछले लगभग 37 वर्षों से सिटी सर्वे द्वारा शहर का सर्वे ही नहीं किया गया। यही कारण है कि रिकॉर्ड को बदला नहीं जा सका और आज भी शहर के घनी आबादी वाले इन इलाकों को सरकारी दस्तावेज सात-बारा में झुड़पी जंगल बताया जा रहा है। यही नहीं शहर के पॉश इलाकों में कुछ ऐसे भी भूखंड हैं जिन्हें रिकॉर्ड में कृषि भूखंड प्रदर्शित किया गया है जबकि पूरा ले-आउट गैरकृषि की श्रेणी में है। ऐसे भूखंडधारकों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। तहसील कार्यालय द्वारा गैरकृषि का प्रमाणपत्र जारी करने के बाद ही भूखंडधारकों को इस परेशानी से निजात मिलती है। यह प्रमाणपत्र न होने पर न तो भूखंड की रजिस्ट्री हो पाती है और न ही कोई बैंक ऐसे भूखंड पर कर्ज देता है।

ढेरों हैं खामियां
शहर के भूखंडों के 7-12 ऑनलाइन उपलब्ध होने का दावा प्रशासन द्वारा किया जा रहा है लेकिन इस कार्य में सटीकता नहीं है। पटवारी ही कहते हैं कि जमीन के क्षेत्रफल के मामले में सटीकता नहीं है। आने वाले दिनों में यह परेशानी जमीन संबंधी विवादाें को और अधिक बढ़ा सकती है। जिले में 1 हजार 954 गांव हैं जिनकी जमीन के 7-12 ऑनलाइन उपलब्ध कराने की प्रक्रिया विगत 4 वर्षों से शुरू है। अाधिकारिक सूत्रों के मुताबिक अब तक 200 से अधिक गांवों के 7-12 ऑनलाइन उपलब्ध कराए जा सके हैं। राज्य के 43 हजार गंाव में से तकरीबन 5 हजार गांवों में यह प्रक्रिया पूर्ण की गई है। इस कार्य को पूर्णरूपेण संपन्न कराने के लिए तहसील स्तर पर कर्मचारियों को प्रशिक्षित किया गया है। बावजूद इसके अनेक प्रकार की खामियां हैं जिसे दूर करने में कई साल लग सकते हैं।

बगैर संशोधन के कर रहे डिजिटलाइजेशन 
शहर में पिछले 4 साल से जमीन के दस्तावेज डिजिटलाइज करने का कार्य शुरू है। यह कार्य अब तक पूरा नहीं हो सका है। कुछ इलाकों के 7-12 रिकॉर्ड पर चढ़ा दिए गए हैं। लेकिन यह रिकॉर्ड भी वास्तविकता से कोसों दूर हैं। बगैर संशोधन के रिकॉर्ड पर ऑनलाइन किए गए 7-12 पुराने इतिहास को ही प्रदर्शित करते हैं जबकि वस्तुस्थिति कुछ और ही है। पुराने 7-12 में किसी प्रकार का संशाेधन करने का अधिकार एसडीओ काे ही होता है। वह भी आवेदक के आवेदन पर मामले की जांच और न्यायालयीन प्रक्रिया को पूर्ण करने के बाद आदेश जारी कर 7-12 में संशोधन करता है। कुछ मामलों में इसी प्रकार के आदेश के तहत संशोधन हुए हैं। दूसरी ओर शहर की अधिकांश सरकारी जमीन अतिक्रमण की भेंट चढ़ चुकी है। इन जमीनों पर कच्चे-पक्के मकान बन गए हैं। रिकॉर्ड में इन मकानों का कहीं जिक्र नहीं मिलता। दस्तावेजों में अब भी कुछ जमीन को झुड़पी जंगल, सरकारी जमीन, नाला, सड़क, उद्यान, मैदान आदि बताया गया है जबकि अनेक भूखंड निजी हाथों में चले गए हैं।


सालों से सर्वें नहीं हुआ
नागपुर में सिटी सर्वे 1972 में अस्तित्व में आया था। 1972-74 के दरम्यान इस विभाग द्वारा शहर का सर्वें कर यहां की जमीन के रिकॉर्ड तैयार किए गए। समय के साथ-साथ इन रिकॉर्ड में आवश्यकतानुसार फेरबदल हुए है किंतु अधिकांश सरकारी जमीन के रिकॉर्ड अब भी जस के तस हैं। 1974 के बाद से शहर का सर्वे नहीं किया गया है।
-नाम न छापने की शर्त पर नगर भू-मापन विभाग का एक अधिकारी

Similar News