किसानों ने ढूंढी नई राह, धान के खेतों में कर रहे सिंघाड़े का उत्पादन

किसानों ने ढूंढी नई राह, धान के खेतों में कर रहे सिंघाड़े का उत्पादन

Anita Peddulwar
Update: 2020-10-27 08:16 GMT
किसानों ने ढूंढी नई राह, धान के खेतों में कर रहे सिंघाड़े का उत्पादन

डिजिटल डेेस्क, गोंदिया । बीते कुछ सालों से किसान प्राकृतिक आपदा और प्रक्रियागत संकटों से जूझ रहे हैं। कभी फसलें बाढ़ में बह जाती हैं तो कभी कीट या रोगों की भेंट चढ़ जाती हैं। इनसे बच भी गए तो उपज को उचित दाम न मिलने से आर्थिक संकट में फंसकर आत्महत्या जैसा कदम भी कुछ किसान उठा रहे हैं। लेकिन गोंदिया जिले के श्रमजीवी किसानों ने विपरीत हालातों में भी उन्नति की नई राह खोज निकाली है। ये किसान अब धान के खेतों में ही सिंघाड़े का उत्पादन कर आय का स्रोत बढ़ा रहे हैं। यहां बता दें कि आमतौर पर सिंघाड़े का उत्पादन तालाब में ही किया जाता है। लेकिन गोंदिया जिले की गोरेगांव तहसील के तुमसर गांव निवासी कुछ किसान धान के खेतों में इनका उत्कृष्ट उत्पादन कर रहे हैं। 

शौकिया तौर पर किया प्रयोग, सफल हुआ
गोंदिया जिले में 95 प्रतिशत से अधिक किसान धान की ही खेती करते हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि धान की खेती पारंपरिक होने से उत्पादन की तकनीक यहां के हर किसान को बचपन से ही मालूम होती है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से धान में कई बार घाटा होने के कारण कुछ किसानों ने बागायती खेती तो कुछ किसानों ने सिंघाड़ा खेती शुरू की है। तुमसर निवासी किसान और प्रायमरी शिक्षक रामेश्वर बागडे ने बताया कि उन्होंने 5 साल पहले शौकिया तौर पर प्रयोग के रूप में धान के खेत में सिंघाड़े की खेती शुरू की थी। इसमें लाभ होने पर प्रति वर्ष सिंघाड़े का उत्पादन शुरू कर दिया है। उनके अलावा राजाराम मेश्राम, केवलराम चंदन बर्वे, जियालाल दुधबरई, केशोराव बागडे, अशोक दुधबरई, धनराज दुधबरई सहित अन्य किसान भी सिंघाड़े का उत्पादन करते हैं।

उचित मार्गदर्शन नहीं मिल रहा 
विशेषज्ञों के मुताबिक, महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा तालाब गोंदिया जिले में ही हैं और तालाबों में ही सिंघाड़े का उत्पादन अच्छी तरह हो सकता है। लेकिन प्रशासन का ध्यान इस व्यवसाय की ओर नहीं होने से किसानों को उचित मार्गदर्शन और सहयोग नहीं मिल रहा है। यदि सभी तालाबों का उपयोग सिंघाड़ा खेती के लिए किया जाए तो यहां का सिंघाड़ा विदेश में भी एक्सपोर्ट हो सकता है। 

जिले में धान का उत्पादन लेने के लिए बंदियां बनाई हुई हैं, जिससे खेतों में आसानी से घुटनों तक पानी भर कर रखा जा सकता है। सिंघाड़ा उत्पादन के लिए इतने ही पानी की आवश्यकता होती है। हमने पहले प्रायोगिक तौर पर सिंघाड़ा लगाया। मुनाफा मिलने पर सिंघाड़े का क्षेत्र अब धीरे-धीरे बढ़ा रहे हैं। दुर्भाग्य की बात है कि तालाबों के इस जिले में सिंघाड़ा उत्पादन की ओर प्रशासनिक अनदेखी हो रही है। - रामेश्वर बागडे, सिंघाड़़ा उत्पादक किसान

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