"विकास के लिए प्रकृति से सामंजस्य बनाना होगा'
"विकास के लिए प्रकृति से सामंजस्य बनाना होगा'
डिजिटल डेस्क, नागपुर। सतत विकास तभी हो सकता है, जब हम प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर रहना सीखें। यह काफी सरल है, लेकिन इसके लिए पर्यावरण के इलाज के तरीके में हमारी सोच में बदलाव की आवश्यकता है। हम प्रकृति को केवल इस्तेमाल और शोषित करने के बजाय खुद को इसके हिस्से के रूप में देख पाएं, तो यह पर्यावरण के लिए बेहतर साबित होगा। यह बात अर्थशास्त्री नितीन देसाई ने वेबिनार में कही। वे आगरा स्थित हरित संगठन (सोसाइटी फॉर प्रिजर्वेशन ऑफ हेल्दी एनवायरमेंट एंड इकोलॉजी एंड हेरिटेज ऑफ आगरा) द्वारा आयोजित ‘सतत विकास और प्रबंधन ऑफ लाइफ-सपोर्ट इको सिस्टम्स’ विषय पर गत दिवस एक अंतरराष्ट्रीय वेबिनार को संबोधित कर रहे थे। श्री देसाई ने कहा कि इन लक्ष्यों को एकीकृत विकास और वैश्विक सहयोग से ही हासिल किया जा सकता है।
दुनिया प्लास्टिक कचरे नामक महामारी से जूझ रही
महामारी की बात करते हुए अमेरिका स्थित जीडीबी इंटरनेशनल नामक ग्लोबल रीसाइक्लिंग एंड सस्टेनेबिलिटी नामक कंपनी के प्रमुख सुनील बागरिया ने कहा कि दुनिया लंबे समय से प्लास्टिक कचरे नामक एक और महामारी से जूझ रही है। पूर्व केंद्रीय बिजली सचिव अनिल राजदान ने स्वच्छ और हरित विकास के लिए ऊर्जा दक्षता का आह्वान किया। राधास्वामी मत (दयालबाग) के आध्यात्मिक प्रमुख प्रो. प्रेमसरन सत्संगी ने कहा कि प्रकृति अव्यवस्थित है, जिसका अर्थ है कि प्रकृति के पास अनंत किस्में हैं और जब तक हम अनंत से अधिक किस्में रखने के अवसर का लाभ नहीं उठते, तब तक प्रकृति को संपूर्ण सृष्टि की सेवा करने के लिए प्रदान नहीं किया जा सकता ।