गुड़ बेचने को मजबूर है इस स्वतंत्रता सेनानी की बहू, पौता करता है मजदूरी

गुड़ बेचने को मजबूर है इस स्वतंत्रता सेनानी की बहू, पौता करता है मजदूरी

Bhaskar Hindi
Update: 2018-08-12 11:11 GMT
गुड़ बेचने को मजबूर है इस स्वतंत्रता सेनानी की बहू, पौता करता है मजदूरी
हाईलाइट
  • आज उनकी बहू को सड़क के किनारे बैठकर गुड़ बेचकर परिवार का भरण पोषण करना पड़ रहा है।
  • उन्होंने आजादी की लड़ाई में असहनीय यातनाएं सहते हुए देश को स्वतंत्रता दिलाई थी।
  • स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मुंशी मंटी लाल बुंदेलखंड में गांधी के नाम से मशहूर हैं।

डिजिटल डेस्क, जैतपुर। बुंदेलखंड में गांधी के नाम से मशहूर रहे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मुंशी मंटी लाल ने आजादी की लड़ाई में असहनीय यातनाएं सहते हुए देश को स्वतंत्रता दिलाई थी। मगर उन्होंने कभी सपने में नहीं सोचा होगा कि आजाद भारत में उनकी बहू को सड़क के किनारे बैठकर गुड़ बेचकर परिवार का भरण पोषण करना पड़ेगा। उनके पौत्र को मजदूरी करनी पड़ेगी। मगर उनके परिवार की हालत सच में ऐसी ही है। अपनी युवावस्था जेल में बिता देने वाले बुंदेलखंड के इस गांधी के परिवार को आजाद भारत के अफसरों ने पेंशन तक देना गँवारा नहीं समझा। सेनानी के आश्रितों को मिलने वाली कोई सुविधा उनके परिवार को अब नहीं मिली है। उनका परिवार खंडर हो चुके कच्चे मकान में बमुश्किल रह रहा है।

युवावस्था में अत्याचार देख अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ पर्चा लिखकर बांटने, सभा करने, तिरंगा फहराने और दीवार पर नारे लिखने के आरोप में मुंशी मंटीलाल 13 साल तक जेल में रहे। हमीरपुर जेल अभिलेखों की मानें तो आईपीसी की धारा 143 के तहत उन्हें 22/3/1932 से 25/5/1932 तक कठोर करावास काटना पड़ा था। मुंशीजी को 1932, 1939, 1941 और 1942 में विभिन्न आंदोलनों में भाग लेने पर कठोर कारावास व कालापानी की सजा तक कटनी पड़ी थी।

राष्ट्र के प्रति मुंशीजी का लगाव देख उनकी पत्नी सरस्वती देवी भी स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़ी। उनकी पत्नी को धारा 17(1) सीएलए के तहत 13 मई 1932 तक जेल में रहना पड़ा। आजाद भारत में मुंशी मंटी लाल जैतपुर के निर्विरोध ग्राम प्रधान रहे 3 मई 1982 को मुंशीजी ने अंतिम सांस की।



जैतपुर के लिए सर्वस्व न्यौछावर
मुंशी मटीलाल विकास पुरूष थे। आजादी की लड़ाई लड़ने के दौरान स्वाधीन भारत का उन्होंने सपना देखा था। प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, विकासखंड कार्यालय की स्थापना के लिए उन्होंने अपनी निजी जमीन दान कर दी थी।

56  डिसमिल भूमि पर दबंगों का कब्जा
मुंशीजी के पैतृक मकान के पास उनकी 56 डिसमिल भूमि पड़ीं है, उस पर दबंगों ने कब्जा कर रखा है। उनके पुत्र परमेश्वरी दयाल ने बताया कि चकबंदी अभिलेखों में हेराफेरी कर मोहल्ले के ही एक शातिर दबंग ने जमीन पर कब्जा कर रखा है। अब तहसील में रिश्वत देने को उनके पास पैसे नहीं हैं, इसलिए कोई सुनने वाला नहीं है।

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