बहू से घर का काम करवाना क्रूरता नहीं, नौकर से नहीं कर सकते तुलना

हाईकोर्ट ने खारिज की महिला की अर्जी बहू से घर का काम करवाना क्रूरता नहीं, नौकर से नहीं कर सकते तुलना

Anita Peddulwar
Update: 2022-10-29 07:51 GMT
बहू से घर का काम करवाना क्रूरता नहीं, नौकर से नहीं कर सकते तुलना

डिजिटल डेस्क, औरंगाबाद। बॉम्बे उच्च न्यायालय की औरंगाबाद खंडपीठ ने कहा है कि विवाहित महिला को घर का काम करने के लिए कहना क्रूरता नहीं है। अदालत ने कहा कि इसकी तुलना नौकरानी के काम से भी नहीं की जा सकती है। दरअसल, एक महिला ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया था कि शादी के बाद एक महीने तक उसके साथ अच्छा व्यवहार किया गया, लेकिन उसके बाद वे उसके साथ नौकरानी जैसा व्यवहार करने लगे। महिला ने अलग रह रहे पति और उसके माता-पिता पर घरेलू हिंसा और क्रूरता को लेकर केस दर्ज कराया था। 

विवाह से पहले बातें करनी चाहिए थीं स्पष्ट
महिला की अर्जी एवं भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498ए के तहत क्रूरता के लिए एक महिला के पति और ससुराल वालों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी रिपोर्ट को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति विभा कंकनवाड़ी और न्यायमूर्ति राजेश पाटिल की पीठ ने कहा कि अगर एक विवाहित महिला को परिवार के उद्देश्य के लिए निश्चित रूप से घर का काम करने के लिए कहा जाता है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि उसके साथ नौकरानी की तरह व्यवहार किया जा रहा है। अगर महिला को घर का काम करने की इच्छा नहीं थी, तो उसे शादी से पहले ही बता देना चाहिए था ताकि दूल्हा शादी से पहले फिर से सोच सके और अगर शादी के बाद यह समस्या आती है तो इसे जल्दी ही सुलझा लिया जाना चाहिए था। 

केवल कहना काफी नहीं, कृत्यों का वर्णन भी जरूरी
खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि महिला ने केवल यह कहा था कि उसे परेशान किया गया था। उसने यह भी आरोप लगाया कि उसके पति और सास-ससुर ने शादी के एक महीने बाद चार पहिया वाहन खरीदने के लिए चार लाख रुपये मांगना शुरू कर दिया। उसने अपनी शिकायत में कहा कि इस मांग को लेकर उसके पति ने उसे मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया। उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि महिला ने केवल इतना कहा है कि उसे प्रताड़ित किया गया, लेकिन उसने इस तरह के किसी विशेष कृत्य का अपनी शिकायत में जिक्र नहीं किया। केवल मानसिक और शारीरिक रूप से उत्पीड़न शब्दों का उपयोग भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के लिए तब तक पर्याप्त नहीं, जब तक इस तरह के कृत्यों का वर्णन नहीं किया जाता है। पीठ ने महिला के पति और उसके माता-पिता के खिलाफ घरेलू हिंसा और क्रूरता के आरोप में दर्ज प्राथमिकी को रद्द कर दिया। 

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