हाईकोर्ट ने कहा वीआरएस लेने वाले कर्मचारियों को नियमों की सही जानकारी दें

हाईकोर्ट ने कहा वीआरएस लेने वाले कर्मचारियों को नियमों की सही जानकारी दें

Anita Peddulwar
Update: 2018-06-13 06:17 GMT
हाईकोर्ट ने कहा वीआरएस लेने वाले कर्मचारियों को नियमों की सही जानकारी दें

डिजिटल डेस्क, नागपुर।  बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने स्पष्ट किया है कि नियोक्ताओं को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की चाह रखने वाले कर्मचारियों को वीआरएस लेने की अनुमति देने से पहले तमाम नियमों को स्पष्ट रूप से बता देना चाहिए। जनरल इंश्योरेंस पेंशन स्कीम 1995 के नियमों पर 13 फरवरी 2003 को सरकार ने सर्कुलर निकाला, जिसमें शर्त जोड़ दी कि जो कर्मचारी न्यूनतम 20 वर्ष की सेवा दिए बगैर वीआरएस लेगा उसे सेवानिवृत्ति का लाभ नहीं दिया जाएगा। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि नियोक्ता कंपनी को इस विशेष नियम और ऐसे ही अन्य नियमों की जानकारी वीआरएस लेने वाले कर्मचारी को पहले से दे देनी चाहिए, ताकि वे सेवानिवृत्ति लाभ से वंचित न रहें। ऐसे ही एक प्रकरण में हाईकोर्ट ने नियोक्ता कंपनी को याचिकाकर्ता कर्मचारी को पिछले 15 वर्षों का एरियर देने और प्रतिमाह पेंशन शुरू करने के आदेश दिए हैं।  

यह था मामला
याचिकाकर्ता का नाम सुहास सोहोनी (56,अमरावती) है। 10 फरवरी 1985 को नेशनल इंश्योरेंस कंपनी में बतौर विकास अधिकारी नियुक्त हुए थे। 17 वर्ष सेवाएं देने के बाद 14 फरवरी 2003 को उन्होंने कंपनी वीआरएस (स्वेच्छिक सेवानिवृत्ति) के लिए नोटिस दिया। 20 वर्ष की सेवा पूरी करने के पहले ही वीआरएस ले लेने का हवाला देते हुए उनके नियोक्ता नेशनल इंश्योरेंस कंपनी ने उनके सेवानिवृत्ति लाभ रोक दिए थे। कंपनी ने  जनरल इंश्योरेंस पेंशन स्कीम 1995 और सरकार के सर्कुलर   हवाला देते हुए सेवानिवृत्ति लाभ देने से इनकार कर दिया। याचिकाकर्ता ने अपने बचाव में कोर्ट मंे दलील दी कि कंपनी से ही जुड़े एक मामले में वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया था। जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि 10 वर्ष की सेवा पूर्ण करने वाले कर्मचारी भी पेंशन के हकदार है। 

10 वर्षों की सेवा होती है अनिवार्य
याचिकाकर्ता की सेवाशर्तों के तहत उन्हें पेंशन लाभ पाने के लिए कम से कम 10 वर्ष की सेवा देना अनिवार्य था, जो कि वे दे चुके हैं। इधर कंपनी ने भी कोर्ट में दलील दी कि 13 फरवरी 2003 के प्रशासकीय निर्देशों के अनुसार न्यूनतम 20 वर्ष की सेवा की शर्त जोड़ी गई थी। वीआरएस के वक्त नियम की पूरी जानकारी भी याचिकाकर्ता को दी गई थी। लेकिन हाईकोर्ट ने अपने निरीक्षण में कहा कि कंपनी यह कहीं साबित नहीं कर पाती की याचिकाकर्ता को नियम की जानकारी देने के बाद ही उससे वीआरएस आवेदन पर हस्ताक्षर कराया गया। अगर याचिकाकर्ता को इस नियम की सही जानकारी दी जाती तो वे वीआरएस लेने का विचार टाल सकते थे।  ऐसी स्थिति में कंपनी को याचिकाकर्ता को सभी निर्धारित लाभ देने होंगे। 
 

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