हाईकोर्ट का सरकार से सवाल- आरक्षण पर फैसला आने तक रोक सकते हैं मराठा आरक्षण

हाईकोर्ट का सरकार से सवाल- आरक्षण पर फैसला आने तक रोक सकते हैं मराठा आरक्षण

Tejinder Singh
Update: 2018-12-10 15:28 GMT
हाईकोर्ट का सरकार से सवाल- आरक्षण पर फैसला आने तक रोक सकते हैं मराठा आरक्षण

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने मेगाभर्ती को लेकर जारी विज्ञापन में मराठा समुदाय के आरक्षण का उल्लेख सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। अदालत ने सरकार को अगली सुनवाई के दौरान यह स्पष्ट करने को कहा है कि क्या यह संभव है कि अदालत का आदेश आने तक मेगा भर्ती में मराठा समुदाय के आरक्षण को लागू न करे? हाईकोर्ट ने कहा कि सरकार यह भी बताए कि क्या वह मराठा समुदाय के आरक्षण को लेकर पिछड़ा आयोग की ओर से तैयार की गई रिपोर्ट को सार्वजनिक कर सकती है? कोर्ट ने मुस्लिम समुदाय के आरक्षण को लेकर भी सरकार से जानकारी मांगी है हालांकि अदालत ने फिलहाल मराठा समुदाय को नौकरी व शिक्षा में 16 प्रतिशत आरक्षण देने के निर्णय पर रोक लगाने से इंकार किया है। मुख्य न्यायाधीश नरेश पाटील व जस्टिस एमएस कर्णिक की बेंच के सामने सोमवार को मराठा समुदाय को 16 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने के फैसले के खिलाफ महानगर निवासी संजीत शुक्ला, जयश्री पाटील व अन्य लोगों की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान उपरोक्त जानकारी मांगी।

इस दौरान बेंच ने कहा कि आखिर सरकार को जब पता था कि सोमवार को इस मामले की सुनवाई रखी गई थी तो सरकार ने आज ही भर्ती को लेकर विज्ञापन क्यों जारी किया? और भर्ती विज्ञापन में मराठा समुदाय के आरक्षण का उल्लेख क्यों किया गया? अदालत ने कहा कि आजकल आनलाइन के दौर में एक घंटे में लाखों आवेदन दायर किए जाते है? बेंच ने कहा कि मेगाभर्ती का विज्ञापन जारी करने के लिए  इंतजार क्यों नहीं किया गया ? सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील प्रदीप संचेती ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ किया है कि सरकार किसी भी परिस्थिति में नौकरी में 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण को लागू नहीं कर सकती। इसलिए मेगा भर्ती में मराठा समुदाय को दिए गए आरक्षण पर अंतरिम रोक लगाई जाए। जहां तक बात पिछड़ा वर्ग आयोग कि रिपोर्ट की है तो यह सिर्फ मराठा समुदाय के पिछड़ेपन को लेकर तैयार की गई है। अन्य जातियों के बारे में इस रिपोर्ट में कोई जिक्र नहीं किया गया है। इसलिए रिपोर्ट भेदभावपूर्ण है। इसके अलावा सरकार ने अब तक आयोग की रिपोर्ट को न तो सार्वजनिक किया है और न ही इसे विधानमंडल के पटल पर रखा है।

एक अन्य याचिकाकर्ता के वकील गुणरत्न सदाव्रते ने भी मेगाभर्ती को लेकर जारी विज्ञापन को पेश करते हुए यही बातें दोहराई। राज्य सरकार की ओर से पैरवी कर रहे विशेष सरकारी वकील वीए थोरात ने कहा कि सरकार ने अपने अधिकारों के तहत आरक्षण का फैसला किया है। इसके पहले जब सरकार ने आरक्षण को लेकर अध्यादेश जारी किया था, उस समय सरकार के पास जरुरी जानकारी नहीं थी। अब सरकार ने सभी जानकारी जुटा कर कानून के तहत मराठा समुदाय को आरक्षण प्रदान किया है। इस बीच मुस्लिम समुदाय को साल 2014 में अध्यादेश के तहत नौकरी व शैक्षणिक संस्थानो में दिए गए पांच प्रतिशत आरक्षण को रद्द करने के बारे में भी बेंच को जानकारी दी गई। वहीं  वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीहरि अणे ने कहा कि सरकार संविधान के तहत एसईबीसी के तहत मराठा समुदाय को आरक्षण नहीं प्रदान कर सकती।  इस पर बेंच ने सरकारी वकील को इस विषय पर अगली सुनवाई के दौरान जवाब देने को कहा। बेंच ने फिलहाल मामले की सुनवाई 19 दिसंबर तक स्थगित कर दी है।

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