लॉकडाउन में पसीजा दिल, बुजुर्ग मां को आश्रम से घर लाया बेटा, दादी से मिलकर खिल उठे बच्चों के चेहरे

लॉकडाउन में पसीजा दिल, बुजुर्ग मां को आश्रम से घर लाया बेटा, दादी से मिलकर खिल उठे बच्चों के चेहरे

Anita Peddulwar
Update: 2020-06-16 06:06 GMT
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डिजिटल डेस्क, नागपुर । लॉकडाउन में कारोबारी बेटा जब घर में ही परिवार के साथ समय बिताया तो उसे अपनी मां की कमी खली। रोज दोस्तों-रिश्तेदारों से उनके घर में बुजुर्गों की मौजूदगी में खुशहाली की बातें सुनीं। दादा-दादी के साथ बच्चों की मस्ती की चर्चाएं हुईं तो कारोबारी को अपनी मां से दूर रहा नहीं गया। उस मां की, जिसे उसने खुद 3 वर्ष पहले एक वृद्धाश्रम में छोड़ आया था। आखिरकार, वह वृद्धाश्रम पहुंचा। अपनी मां की गोद में सिर रखकर फूट-फूट कर रोया और साथ लेकर घर आया।

बच्चों के साथ खुद भी कमी महसूस कर रहे थे
पेशे से कारोबारी 45 वर्षीय प्रवीण (बदला हुआ नाम) की कहानी कोई नई नहीं है। अपने बुजुर्ग मां-बाप को वृद्धाश्रम के हवाले करने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इसी में से एक प्रवीण भी हैं। पिता के निधन के बाद प्रवीण के परिवार में मां को लेकर धारणा बदली। आखिरकार तय किया गया कि मां को वृद्धाश्रम भेज दिया जाए। प्रवीण ने 3 वर्ष पहले अपनी मां को श्री महेश्वर वानप्रस्थ आश्रम में छोड़ दिया। बीच में कभी मिलने भी नहीं गए। घर में दो बच्चे भी हैं। उनकी बहन भी है, जो शहर से बाहर रहती है।

मां के वृद्धाश्रम में रहने की जानकारी उनकी बहन को भी थी। लॉकडाउन हुआ तो कारोबार भी ठप हो गया। दिनभर बच्चों के साथ घर में रहने का मौका मिला। प्रवीण को घर में मां की कमी खलने लगी। दूसरे परिवारों को देखा कि उनके घर में बच्चे दादा-दादी के साथ खेलते हैं। बातें करते हैं। उसने अपने घर को देखा तो ऐसा कुछ नहीं था। उसने अपनी बहन से इस बात का जिक्र किया। प्रवीण को हिम्मत नहीं हो रही थी कि आखिर वह किस मुंह से मां से मिलने जाएं। उनकी बहन ने आश्वस्त किया कि वह खुद मां से बात करेगी। मां से उसने बात की और प्रवीण की इच्छा बताई। अब भला कौन मां होगी जो घर लौटना नहीं चाहेगी। मां मान गई। प्रवीण आश्रम गए और मां को पकड़कर खूब रोए। उन्होंने अपनी गलती मानी। 

घर में लौटीं खुशियां
प्रवीण अपनी मां को घर लेकर आए तो एक बार फिर पहले जैसा माहौल हो गया। सबने मां का स्वागत किया। एक बार फिर परिवार में खुशियां लौट आई हैं। एक बेटे को मां, बहू को सास और पोते-पोतियों को अपनी दादी मां मिल गई हैं।

बुजुर्ग सिर्फ हमारा साथ चाहते हैं
श्री महेश्वर वानप्रस्थ आश्रम की किरण मूंदड़ा ने बताया कि प्रवीण की मां की विदाई धूमधाम से की गई। आश्रम में अभी 31 बुजुर्ग हैं। सभी की आंखें नम हो गईं थीं। इस घटना ने बाकी बुजुर्गों के मन में उम्मीदें जगा दी हैं। हमारे बुजुर्ग माता-पिता बस हमारा साथ चाहते हैं। मत भूलिए वो तब हमारे साथ थे, जब हम अपने पैरों पर चल भी नहीं पाते थे। बुढ़ापे में उन्हें बच्चों के सहारे की जरूरत होती है।  
 

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