मराठा आरक्षण पर हाईकोर्ट की मंजूरी, बाहर मनी खुशियां

मराठा आरक्षण पर हाईकोर्ट की मंजूरी, बाहर मनी खुशियां

Tejinder Singh
Update: 2019-06-27 13:04 GMT
मराठा आरक्षण पर हाईकोर्ट की मंजूरी, बाहर मनी खुशियां

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने मराठा समुदाय को आरक्षण देने के सरकार के निर्णय को संवैधानिक पाया है किंतु आरक्षण के प्रतिशत को 16 से घटाकर 12 और 13 प्रतिशत कर दिया है। क्योंकि आरक्षण के संबंध में राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की ओर से तैयार की गई रिपोर्ट में मराठा समुदाय को शिक्षा में 12 फीसदी और नौकरी में 13 प्रतिशत आरक्षण देने की सिफारिश की गई थी। अदालत ने कहा कि इस लिहाज से सरकार की ओर से मराठा समुदाय को 16 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला न्यायसंगत नजर नहीं आता है। न्यायमूर्ति आरवी मोरे व न्यायमूर्ति भारती डागरे की खंडपीठ ने कहा कि सरकार अपवादजनक व असामान्य परिस्थितियों में आरक्षण देने का निर्णय लेने का अधिकार रखती है। ऐसी परिस्थितियों में सरकार आरक्षण की तय की गई 50 प्रतिशत सीमा को भी लांघ सकती है। संविधान के अनुच्छेद 15 (4) और 16 में इसका प्रावधान किया गया है। आरक्षण को लेकर संविधान में किया गया 102 वां संसोधन भी इसमें अवरोध नहीं पैदा कर सकता है। इस लिहाज से मराठा समुदाय को आरक्षण देने के लिए सामाजिक-आर्थिक रुप से पिछडा वर्ग (एसईबीसी) बनाने के निर्णय को असंवैधानिक नहीं माना जा सकता है। मराठा समुदाय के आरक्षण को लेकर सर्वेक्षण व वैज्ञानिक अध्ययन करके पूर्व न्यायाधीश गायकवाड की ओर से तैयार की गई रिपोर्ट में हमें कोई खामी नजर नहीं आती है। यह रिपोर्ट पूरी तरह से न्यायसंगत है। रिपोर्ट में मराठा समुदाय की सामाजिक-आर्थिक व शैक्षणिक स्थिति को तर्कसंगत व सटीक आकड़ों के माध्यम से दर्शाया गया है। 

16 फीसदी आरक्षण उचित नहीं

अदालत ने कहा कि चूंकी रिपोर्ट में मराठा समुदाय को सरकारी नौकरी में 12 व शिक्षा में 13 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश की गई है। इसलिए 16 प्रतिशत आरक्षण को उचित नहीं माना जा सकता है। इस दौरान राज्य सरकार की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता वीए थोराट ने खंडपीठ के सामने कहा कि सरकार ने 16 प्रतिशत आरक्षण देने का विधयेक पारित किया है, ऐसे में आरक्षण की सीमा 12 से 13 प्रतिशत करने से तकनीकी खामी पैदा होगी। लेकिन खंडपीठ ने कहा कि हमने पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिश के आधार पर अपना निर्णय दिया है। आरक्षण का प्रतिशत तय करने का मुद्दा हमारे सामने नहीं लाया गया था। सरकार ने पिछले साल नवंबर 2018 में मराठा समुदाय को शिक्षा व नौकरी में 16 प्रतिशत आरक्षण देने का निर्णय लिया था। जिसके खिलाफ सामाजिक कार्यकर्ता संजीत शुक्ला व जीश्री पाटील सहित अन्य लोगों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में सकार के निर्णय को असंवैधानिक व मनमानीपूर्ण व सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ बताया गया था। गुरुवार को खंडपीठ ने इन सभी याचिकाओं को खारिज करते हुए साफ किया है कि मराठा समुदाय को सरकार को आरक्षण देने का निर्णय पूरी तरह से संविधान की कसौटी पर खरा उतरता है। हालांकि हाईकोर्ट ने 16 प्रतिशत मराठा आरक्षण को न मानते हुए इसमें 3 फीसदी की कमी की है। हाईकोर्ट ने जैसे ही मराठा समुदाय को आरक्षण देने के खिलाफ दायर याचिकाओं को खारिज किया वैसे ही याचिकाकर्ता के वकील सदाव्रते गुणरत्ने ने खंडपीठ ने फैसले पर रोक लगाने की मांग की। लेकिन खंडपीठ ने इस मांग को अस्वीकार कर दिया। 

सरकार ने हाईकोर्ट में खड़े किए बड़े वकील

राज्य सरकार की ओर से मराठा समुदाय को आरक्षण देने का फैसला कानून की कसौटी पर खरा उतरे इसके लिए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकिल व संविधान विशेषज्ञ मुकुल रोहतगी तथा हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता वीए थोराट व अनिल साखरे को नियुक्त किया था।

हाईकोर्ट के बाहर मनी खुशियां

आरक्षण के निर्णय को हाईकोर्ट द्वारा सही ठहराने के बाद हाईकोर्ट के बाहर भारी संख्या में मौजूद मराठा समुदाय के लोगों ने खुशिया जाहिर की और एक दूसरे बधाई दी। 

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