नरभक्षी बाघिन को बचाने फिर कोर्ट की शरण, हाईकोर्ट का वनविभाग को नोटिस

नरभक्षी बाघिन को बचाने फिर कोर्ट की शरण, हाईकोर्ट का वनविभाग को नोटिस

Anita Peddulwar
Update: 2018-10-17 09:38 GMT
नरभक्षी बाघिन को बचाने फिर कोर्ट की शरण, हाईकोर्ट का वनविभाग को नोटिस

डिजिटल डेस्क, नागपुर। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ में फिर एक बार यवतमाल जिले के रालेगांव व केलापुर में नरभक्षी बाघिन को गोली मारने का मुद्दा उपस्थित हुआ है। वन्यप्रेमी डॉ. जैरिल बनाईत और सरिता सुब्रमण्यम द्वारा दायर याचिका पर हाईकोर्ट ने प्रतिवादी वन विभाग को नोटिस जारी किया है। पिछले तीन माह से वन विभाग बाघिन को गोली मारने में नाकाम साबित हुआ है। वहीं हाईकोर्ट द्वारा वन विभाग का फैसला कायम रखने के बाद वन विभाग ने अपने ही फैसले में परिवर्तन किया, इस पर हाईकोर्ट ने जवाब मांगा है। 

कहा- शावक जिंदा नहीं रह पाएंगे
याचिकाकर्ता ने दावा किया है कि पिछले तीन माह से बाघिन ने किसी पर हमला नहीं किया है। बाघ अगर एक बार नरभक्षी हुआ तो लगातार शिकार करता है, मगर यह बाघिन ऐसा नहीं कर रही है। वहीं हाईकोर्ट ने वन विभाग के जिस आदेश को कायम रखा था, उसमें वन विभाग ने निर्णय लिया था कि वे पहले शावकों को पकड़ेंगे, फिर बाघिन को बेहोश करेंगे, सफलता न मिलने पर ही उसे गोली मारेंगे, लेकिन इसके बाद वन विभाग ने अपना निर्णय बदला कि पहले बाघिन को गोली मारेंगे, फिर शावकों को पकड़ेंगे। याचिकाकर्ता के अनुसार, शावक अभी छोटे हैं और शिकार नहीं कर सकते। बाघिन के न होने से वे जंगल में ज्यादा दिन जिंदा नहीं रह पाएंगे। ऐसे में याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट से वन विभाग के फैसले पर स्थगन मांगा पर हाईकोर्ट ने सिर्फ स्पष्टीकरण मांगा है। 

सर्वोच्च न्यायालय ने भी कायम रखा था वन विभाग का आदेश
यवतमाल जिले के पांढरकवड़ा वन्य क्षेत्र में अब तक 12 इंसानों और कई मवेशियों को अपना शिकार बना चुकी बाघिन टी-1 को गोली मारने का वन विभाग का आदेश सर्वोच्च अदालत ने भी कायम रखा था। प्रधान वन संरक्षक द्वारा जारी किए गए इस आदेश को वन्य प्रेमी जैरिल बनाईत ने पहले हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, जिसे 6 सितंबर को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था। इसके बाद बनाईत ने सर्वोच्च अदालत की शरण ली। मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने पाया था कि बाघिन वाकई क्षेत्र के निवासियों के लिए खतरा है और वन विभाग के पास उसे गोली मारने के ठोस कारण और पुख्ता सबूत हैं। ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय ने भी वन विभाग के फैसले को कायम रखा। 


 

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