सिंचाई घोटाला:  न अजित पवार पर कार्रवाई हुई, न ही कोई अतिरिक्त एफआईआर

सिंचाई घोटाला:  न अजित पवार पर कार्रवाई हुई, न ही कोई अतिरिक्त एफआईआर

Anita Peddulwar
Update: 2018-10-11 08:14 GMT
सिंचाई घोटाला:  न अजित पवार पर कार्रवाई हुई, न ही कोई अतिरिक्त एफआईआर

डिजिटल डेस्क, नागपुर। बॉम्बे हाइकोर्ट की नागपुर खंडपीठ में विदर्भ के सिंचाई प्रकल्पों में भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाती जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता अतुल जगताप के अधिवक्ता श्रीधर पुरोहित ने वीआईडीसी द्वारा पिछले दिनों प्रस्तुत स्टेटस रिपोर्ट पर आपत्ति जताई। उन्होंने कोर्ट में दलील दी कि जिगांव और लोअर पेढ़ी जैसे सिंचाई प्रकल्पों के भ्रष्टाचार में घिरे पूर्व उपमुख्यमंत्री अजित पवार पर किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं हो रही है, वहीं इस मामले में कोई अतिरिक्त एफआईआर भी दायर नहीं की जा रही है। आरोपी अधिकारियों पर मामला दर्ज कराने की मंजूरी के प्रस्ताव भी राज्य सरकार के पास लंबित हैं। इस पर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से एक सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है। मामले में अन्य याचिकाकर्ता जनमंच की ओर से एड. फिरदौस मिर्जा ने पक्ष रखा। 

यह है मामला
याचिकाकर्ता अतुल जगताप ने इस मामले में राज्य के सिंचाई विभाग, विदर्भ सिंचाई विकास महामंडल, जलसंपदा विभाग और बाजोरिया कंस्ट्रक्शंस तथा पूर्व उपमुख्यमंत्री अजित पवार को प्रतिवादी बनाया था। याचिका में आरोप है कि कंपनी के निदेशकों में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के विधायक संदीप बाजोरिया का समावेश है। पूर्व उपमुख्यमंत्री अजित पवार से नजदीकियों के चलते कंपनी को दोनों कांट्रैक्ट मिले हैं। याचिकाकर्ता के अनुसार, कांट्रैक्ट हथियाने के लिए कंपनी ने फर्जी दस्तावेजों का सहारा लिया है। एसीबी ने पत्र में यह भी स्पष्ट किया है कि संदीप बाजोरिया की कंस्ट्रक्शंस कंपनी के पास जिगांव प्रकल्प के काम का ठेका प्राप्त करने के लिए जरूरी पात्रता नहीं थी, इसके बाद भी निरीक्षण समिति ने उसे पात्र करार दिया। कंपनी डायरेक्टर सुमित बाजोरिया ने सरकारी अधिकारियों की मदद से अवैध तरीके से अनुभव प्रमाण-पत्र बनवाया। ऐसे में एसीबी ने बाजोरिया समेत अन्य अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज किया था।

सेवानिवृत्ति की आड़ में नहीं बच सकते दोषी
बीती सुनवाई में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिए थे कि वे चार माह के भीतर सेवानिवृत्त हो जाने के कारण कार्रवाई से बच निकले भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारी-कर्मचारियों पर जवाबदेही तय करें और उनके खिलाफ कार्रवई करें। दरअसल प्रदेश में लागू सेवानिवृत्त नियमों के अनुसार अगर किसी अधिकारी कर्मचारी की सेवानिवृत्ति को चार साल से अधिक का वक्त हो जाए, तो फिर उसके कार्यकाल में हुए किसी भी भ्रष्टाचार के मामले में उस पर कार्रवाई नहीं की जा सकती। सिंचाई घोटाले से जुड़ी याचिका पर हाईकोर्ट में राज्य सरकार ने यह जानकारी देकर नियमों की विवशता बताई थी, जिस पर हाईकोर्ट ने यह आदेश जारी किए थे।

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