सेना ने मांगे माइन प्रोटेक्टेड व्हीकल ,जबलपुर की व्हीकल फैक्टरी को मिला आर्डर

सेना ने मांगे माइन प्रोटेक्टेड व्हीकल ,जबलपुर की व्हीकल फैक्टरी को मिला आर्डर

Bhaskar Hindi
Update: 2019-03-06 08:18 GMT
सेना ने मांगे माइन प्रोटेक्टेड व्हीकल ,जबलपुर की व्हीकल फैक्टरी को मिला आर्डर

डिजिटल डेस्क,जबलपुर। भारतीय सरहद पर तैनाती बढ़ाने के लिए सेना ने माइन प्रोटेक्टेड व्हीकल की डिमांड की है। वाहन निर्माणी को नया वर्क आर्डर हासिल हुआ है। जिसमें 108 एमपीवी की जरुरत बताई गई है। आर्मी की ओर से फरमान आने के साथ ही फैक्ट्री प्रशासन ने प्रॉडक्शन की रफ्तार बढा दी है। सरहद पर हाल में बढ़े तनाव से भले ही इसका कोई लेना देना न हो लेकिन भारतीय सेना ने व्हीएफजे से एमपीवी की डिमांड की है। सूत्रों का कहना है कि सेना को एक बडे लॉट की जरुरत है। खास तौर से सीमावर्ती क्षेत्रों में साधारण वाहन की अपेक्षा एमपीवी की तैनाती ज्यादा कारगर साबित हुई है। यहीं वजह है कि सेना ने व्हीकल फैक्ट्री को और 108 वाहनों का प्रोडक्शन आर्डर भेज दिया है।
194 का टारगेट-
व्हीएफजे को वैसे सेना के लिए 194 एमपीवी तैयार करने है। इसमें से काफी कुछ वाहनों की डिलेवरी भी की जा चुकी है। वर्क आर्डर में सेना की तरफ से जब कभी डिमांड आती है तभी उत्पादन कर वाहन मुहैया कराए जाते है। मौजूदा डिमांड भी 194 वाहनों के अंतर्गत ही है,लेकिन उत्पादन को हरी झण्डी मिलने के साथ निर्माणी के हाथ में बड़ा काम आ गया है। हालांकि व्हीएफजे में काम की कमी न हो इसके लिए मौजूदा प्रबंधन ने ऐड़ी चोटी का जोर लगाया है। जीएम गोविंद मोहन स्वयं आगे बढ़कर निर्माणी में उत्पादन की संभावनाओं को लेकर दूसरी फैक्ट्रियों से भी संपर्क में है।
टाइम लिमिट नहीं-
निर्माणी सूत्रों का कहना है कि सेना की तरफ से आए उत्पादन आदेश में एमपीवी की संख्या का जिक्र तो किया गया है, लेकिन टाइम लिमिट जैसी कोई बंदिश नहीं रखी गई है। जानकारों का कहना है कि हाल फिलहाल निर्माणी के पास पहले से ही 40 हल (बॉडी) तैयार रखी हुई है। लिहाजा, 108 वाहनों की डिलेवरी में ज्यादा वक्त लगने वाली बात नहीं है।
ऐसा है एमपीवी-
-एयरकूल्ड सिस्टम के नजरिए से देखा जाए तो यह हर तरह के मौसम में उपयोगी।
-12 जवानों के बैठने की क्षमता, साथ ही फायरिंग कोड से हमला करने की अचूक क्षमता।
-आतंकियों, माओवादियो, नक्सलियों के खिलाफ बेहद असरदार साबित हुईं है एमपीवी
-सुरंग फटने के दौरान और बाहरी धमाके से बेअसर, टायर तक पूरी तरह से बुलेट प्रूफ।
-भारतीय सेना में उपयोगिकता जरुर बढी है लेकिन अभी तक सीमित इस्तेमाल
-अर्द्धसैनिक बलों की पहली पसंद, झारखंड, छग, प. बंगाल जैसे नक्सली क्षेत्रों में कारगर।

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