'झोलाछाप' डॉक्टरों को दबोचा, दवा दुकान का संचालक भी करता था मरीजों की जांच
'झोलाछाप' डॉक्टरों को दबोचा, दवा दुकान का संचालक भी करता था मरीजों की जांच
डिजिटल डेस्क, नागपुर। अन्न व औषधि प्रशासन विभाग (एफडीए) ने "झोलाछाप" डॉक्टर को पकड़ा है। दवा दुकान की आड़ में वह क्लीनिक चला रहा था। एफडीए अधिकारी खुद मरीज बनकर माथनी तहसील के मौदा गांव पहुंचे। बाकायदा फार्मेसी संचालक ने जांच की और दवाएं दीं। इसके बाद पूरे फर्जीवाड़े की पोल खुली। कार्रवाई में "झोलाछाप" डॉक्टर से एक लाख 10 हजार रुपए की दवा जब्त की गई है। उसका लाइसेंस भी रद्द कर दिया गया है। दरअसल, उसके पास फार्मेसी का लाइसेंस है। उसी की आड़ में बाजार से दवा खरीदता था और खुद डॉक्टर बनकर मरीजों को देता था। खास बात यह है कि दवा के साथ-साथ वह लोगों की जांच करने का भी पैसा ले रहा था।
होलसेल में खरीदता था दवा
बताया गया कि दवा संचालक मानकर फार्मेसी लाइसेंस के आधार पर होलसेल मार्केट से दवा खरीदता था। इस दवा को फार्मेसी से न बेचते हुए, वह खुद मरीजों की जांच कर देता था। इससे उसको ज्यादा मुनाफा मिल रहा था।
कोरोनाकाल में खूब लिया लाभ
जानकारी के अनुसार, माथनी तहसील अंतर्गत आनेवाले मौदा गांव में जय मेडिकल एंड जनरल स्टोर्स है। इसके संचालक उमाकांत एकाजी मानकर हैं। इनके पास दवा बेचने का लाइसेंस है। आरोप है कि बिना मेडिकल की डिग्री के मानकर मरीजों की जांच करते थे। बीपी चेक करने से लेकर इंजेक्शन लगाना व सलाइन लगाने तक का काम चल रहा था। कोरोना संक्रमण के दौरान मानकर ने कई मरीजों की जांच कर उन्हे दवाइयां दी हैं। यह जानकारी अन्न व औषधि विभाग को मिली। इसके बाद अधिकारी स्वाति भरडे व नीरज लोहकरे ने अपने स्तर से इसकी पड़ताल की।
मानकर के पास मरीज बनकर गए थे। वहीं जांच कराई थी। दुकान संचालक ने फार्मेसी के बगल में ही अपने घर के एक कमरे को क्लीनिक बना रखा था। दूसरे रूम में दवा आपूर्ति का काम कर रहे थे। अधिकारियों ने फौरन कार्रवाई करते हुए स्टोर से 1 लाख 10 हजार रुपए की दवा जब्त की है। वही, लाइसेंस रद्द कर दिया गया है। यह कार्रवाई सहायक आयुक्त डॉ. पी.एम बल्लाड के मार्गदर्शन में मौदा गांव में की गई है।
पहले मर्ज पूछकर देता था गोलियां बाद में चलाने लगा क्लीनिक
अधिकृत सूत्रों के अनुसार, संचालक मानकर ने पहले अपने मन से बीमार मरीज को गोलियां देने का काम शुरू किया था। इसके बाद गत वर्ष मार्च महीने में कोरोना संक्रमण की दस्तक के बाद तालाबंदी लागू हो गई। इसके बाद लोग अस्पतालों तक नहीं जाते थे। उसका लाभ इसको मिला। ऐसे में पहले बीपी चेक करना फिर सलाइन लगाने का काम शुरू किया गया। बढ़ते-बढ़ते संचालक की इतनी हीम्मत बढ़ गई थी, कि वह खुद ही मरीजों की जांच कर उन्हें दवा व इंजेक्शन देने लग गया था।