जानिए महिमापुर की 'बावड़ी' का इतिहास

जानिए महिमापुर की 'बावड़ी' का इतिहास

Bhaskar Hindi
Update: 2017-07-21 08:28 GMT
जानिए महिमापुर की 'बावड़ी' का इतिहास

डिजिटल डेस्क,अमरावती। जिले के अधिकांश हिस्सों में आज भी अनेक ऐतिहासिक कुएं मौजूद हैं। लेकिन दर्यापुर तहसील में आने वाले महिमापुर की एक बावड़ी का अलग ही इतिहास रहा है। इस ऐतिहासिक कुएं को देखने के लिए आज भी दूर-दाराज के पर्यटक आते हैं।

कैसे बना ऐतिहासिक कुआं ?
तकरीबन 300-400 साल पहले सम्राट अशोक ने कलिंग राज्य के साथ युद्ध किया था, वह सम्राट अशोक का अंतिम युद्ध था। इस युद्ध को जीतने के बाद सम्राट अशोक ने भिक्खु सुरमणि से मुलाकात की। उस समय भिक्खु सुरमणि ने सम्राट से कहा था कि राजा आपने युद्ध तो जीत लिया, किंतु आप अमर नहीं हुए हैं, यह पाप है। आपको इसका प्रायश्चित करना होगा, क्योंकि गौतम बुद्ध ने भी प्रायश्चित किया था और वह बुद्ध बन गए। यह सुनते ही राजा सम्राट ने उसी दिन तय कर लिया कि वे प्रत्येक गांव-गांव में जाकर लोगों की प्यास बुझाने के लिए कुआं बनवाएंगे।

सम्राट अशोक ने कुआं पत्थरों से बनवाया था। हर पत्थर का वजन 10 क्विंटल तक है। साथ ही कुए में बनाई गई 160 सीढ़ियां भी पत्थरों से बनाई गई हैं। ये सीढ़ियां ऊपर से लेकर कुएं के अंदर तक 100 मीटर की दूरी पर बनाई गई हैं। 100 मीटर गहरा व 100 मीटर ऊपर कुएं का निर्माणकार्य किया गया। इसमें चार कमरे भी बनाए गए और कुएं के बाहर जो स्तंभ लगे हैं, उन पर अशोक चक्र के निशान भी साफ दिखाई देते हैं। इस प्रकार के पत्थर आज कहीं देखने के लिए नहीं मिलते।

इस बारे में गांव के लोगों ने बताया कि जब इस कुएं का निर्माणकार्य चल रहा था, तब दिन के बजाए रात के समय काम करने को प्राथमिकता दी जा रही थी। दिन में खाना और आराम करना इसके बाद रात में पूरे जोश के साथ कुआं निर्माणकार्य के लिए स्वयं राजा अशोक सम्राट और उनके सहयोगी जुट जाते थे। इस कार्य में राजा अशोक सम्राट को पूरे 6 माह की अवधि लगी और आखिरकार मेहनत रंग लाई और कुएं का निर्माण पूरा हुआ।

कुएं की खासियत
महिमापुर स्थित राजा अशोक सम्राट के बनाए गए कुएं का पानी साल 2000 तक गांव व आसपास के 7 गांवों के लोग पिया करते थे। इस कुएं की खासियत यह है कि यह कभी सूखता नहीं है। इस ऐतिहासिक कुएं का जलस्तर गर्मियों में अपने सामान्य जलस्तर से सिर्फ कुछ फीट नीचे जाता है, वहीं बारिश के दिनों में भी जलस्तर सामान्य से कुछ फीट तक ऊपर आता है। इस कुएं की एक और खासियत यह है कि इसके पानी का रंग बदलता रहता है। इसमें महिमापुर, मिर्जापुर, उपराई, दिघी, वडुरा, छोटा वडुरा, मार्कंडा, डोंगरगांव के लोग इसी कुएं का पानी पिया करते थे। जब से शहानुर परियोजना बनी और जीवन प्राधिकरण को जलापूर्ति की जिम्मेदारी सौंपी गई है तब से लोग नलों का पानी उपयोग कर रहे हैं।

 

550 है गांव की जनसंख्या
महिमापुर गांव में गट ग्राम पंचायत है और आज भी गांव की जनसंख्या 550 के आसपास है। आज भी इस गांव में इस कुएं का काफी महत्व है। जिले में इस कुएं को महिमापुर नाम से पहचानते हैं। आए दिन ही इस गांव में कुआं देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। 2014 में कुएं के समीप स्कूल का निर्माणकार्य जारी था उस वक्त गड्‌ढे की खुदाई के वक्त भगवान गौतम बुद्ध की मूर्ति गांववासियों को मिली थी। आज भी यह मूर्ति गांव के बुद्ध विहार में रखी हुई है।

 

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