सुरक्षा संस्थानों में हड़ताल, जबलपुर में 92 करोड़ का कारोबार प्रभावित
सुरक्षा संस्थानों में हड़ताल, जबलपुर में 92 करोड़ का कारोबार प्रभावित
डिजिटल डेस्क जबलपुर। सुरक्षा संस्थानों में तीन दिन की हड़ताल शुरू हो चुकी है। बुधवार को अधिकारी अपने समय से तकरीबन दो से तीन घंटे पहले ही निर्माणी पहुंचे। सुबह 6 बजे से सख्त चैकिंग की गई। संस्थानों में हड़ताल 100 फीसदी सफल बताई जा रही है। माना जा रहा है कि तीन दिनों तक यहां ऐसा ही नजारा रहेगा। जानकारी के मुताबिक पहले ही दिन जबलपुर से करीब 92 करोड़ रुपए का कारोबार प्रभावित हुआ है। आयुध निर्माणी खमरिया, वाहन निर्माणी, गन कैरिज फैक्ट्री, 506 आर्मी बेस वर्कशॉप, सीओडी सहित सभी संस्थानों में कर्मचारियों की भीड़ नजर आई।
15 हजार कर्मियों ने नहीं किया काम
सभी सुरक्षा संस्थानों के तकरीबन 15 हजार कर्मचारियों ने हड़ताल में शामिल होकर नई पेंशन स्कीम का विरोध किया। जानकारों का कहना है कि हड़ताल से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर 92 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। अगले और दो दिनों में यह आंकड़ा 300 करोड़ तक पहुंच सकता है।
तीनों संगठन एक साथ
हड़ताल को लेकर सुरक्षा संस्थानों के तीनों प्रमुख महासंघ ऑल इंडिया डिफेंस एम्पलॉइज फेडरेशन, भारतीय प्रतिरक्षा मजदूर संघ और इंडियन नेशनल डिफेंस वर्कर्स फेडरेशन की यूनियन एकजुट हैं। इसलिए इसका व्यापक असर सभी संस्थानों पर नजर आ रहा है। हालांकि, जेडब्ल्यूएम, चार्जमेन हड़ताल में शामिल नहीं हुए। इसके बावजूद उन्होंने निर्माणियों से दूरी बनाए रखी।
आर्मी बेस वर्कशॉप में झड़प
दिन निकलने से पहले की पहरेदारी के बीच हड़ताल को लेकर एकतरफा माहौल रहा। श्रमिक नेताओं और कार्यकर्ताओं को ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी, 506 आर्मी बेस वर्कशॉप में कुछ कर्मचारियों ने भीतर दाखिल होने की कोशिश की, जिससे तनाव निर्मित हो गया। दोनेां पक्षों में झड़प भी हुई। गहमागहमी के बीच 144 कर्मचारी भीतर दाखिल भी हो गए।
सांसद बोले, जो चल रहा वो ठीक नहीं
हड़ताल को समर्थन देते हुए सतपुला पहुचें राज्यसभा सांसद विवके तन्खा ने कर्मचारियों को संबोधित करते हुए कहा कि जो चल रहा है वह ठीक नहीं है। मजदूरों को सड़क पर उतरने के लिए मजबूर किया गया। कर्मचारी अपनी निर्माणियों में ताला डालकर बाहर खड़े हैं। यह अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी पर वार जैसा है। कांग्रेस नेता आलोक मिश्रा के साथ पहुंचे तन्खा ने कहा कि ऐसे दिन आने ही नहीं चाहिए थे। सरकार को कोई बीच का रास्ता निकालना चाहिए था, जिससे कि श्रमिकों को ऐसे दिन नहीं देखने पड़ते।