महामारी से सर्वाधिक प्रभावित रहता है पश्चिम भारत, कारण खोज रही है महाराष्ट्र सरकार

महामारी से सर्वाधिक प्रभावित रहता है पश्चिम भारत, कारण खोज रही है महाराष्ट्र सरकार

Bhaskar Hindi
Update: 2021-04-04 15:58 GMT
महामारी से सर्वाधिक प्रभावित रहता है पश्चिम भारत, कारण खोज रही है महाराष्ट्र सरकार

डिजिटल डेस्क, मुंबई। पूर्वी उत्तरप्रदेश में एक कहावत प्रसिद्ध है, "आधे में भेलूपुर, आधे में बनारस", देश में कोरोना के मामले में आज यहीं हालात महाराष्ट्र के हैं। महाराष्ट्र में देश के अन्य सभी राज्यों की तुलना में कोरोना के बहुत ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है इस सवाल का जवाब महाराष्ट्र सरकार भी खोज रही है। दूसरी तरफ देश में महामारी के इतिहास में जाये तो पता चलता है कि यह इलाका हमेशा से सर्वाधिक प्रभावित रहा है।

आखिर महाराष्ट्र में ही कोरोना संक्रमण इतनी तेजी से क्यो बढ़ रहा? इस सवाल के जवाब में राज्य के स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव डॉ प्रदीप व्यास कहते हैं कि इसी सवाल का जवाब हम भी खोज रहे हैं। "दैनिक भास्कर" से विशेष बातचीत में डॉ व्यास ने कहा कि इससे पहले भी यह देखा गया है कि जब कभी देश में महामारी फैली तो देश का पश्चिमी हिस्सा ज्यादा प्रभावित हुआ। 

दिल्ली में हुई एनसीडीसी ( नैशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल ) की एक बैठक में हमें बताया गया कि इससे पहले देश में जब भी किसी तरह की महामारी फ़ैली तो उसका असर देश के पश्चिमी छोर महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, कर्नाटक पर ज्यादा पड़ा है। स्पेनिश फ्लू जब आया तो उसका इन क्षेत्रों पर ज्यादा असर पड़ा था। स्वाइन फ्लू की शुरुआत भी पुणे से हुई थी। 

डॉ व्यास कहते हैं कि दूसरे राज्यों की तुलना में हमारे राज्य की स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर हैं। इससे यहां मामलों की रिपोर्टिंग ज्यादा होती है। शायद इसलिए भी यहां ज्यादा मरीज सामने आ रहे हैं। हमारे मुख्यमंत्री और भारत सरकार का कहना है, फिलहाल कारण खोजने की बजाय नियंत्रण पाने पर ज्यादा ध्यान देना जरूरी है। कारण कुछ भी हो, पहले इस पर नियंत्रण जरूरी है।

11 फरवरी तक थे 30 हजार एक्टिव मरीज
उन्होंने कहा कि जनवरी में तापमान में बदलाव आया। ठंड के बाद अचानक गर्मी बढ़ गई। उसके बाद ग्राम पंचायतों के चुनाव हुए। फिर शादियां शुरू हो गई। 11 फरवरी तक राज्य में सिर्फ 30,000 एक्टिव मरीज थे। फिर लोकल ट्रेन शुरू हो गई। इससे लोग लापरवाह होने लगे। मास्क लगाना भूल गए। सोशल डिस्टनसिंग के नियमो का पालन करना भी छोड़ दिया। इससे मरीज तेजी से बढ़े हैं। डॉ व्यास ने कहा कि हमारे लिए यह अप्रैल का महीना बेहद महत्वपूर्ण हैं। कोरोना को हराना है तो नियमों का पालन कड़ाई से करना होगा।  

30 फीसदी तक है पॉजिटिविटी दर
महाराष्ट्र में कोरोना मरीजो के ज्यादा मिलने का एक कारण वे ज्यादा टेस्टिंग को भी मंतव्य हैं। डॉ व्यास ने कहा कि अन्य राज्यों की तुलना में हमारे यहां टेस्ट ज्यादा हो रहे हैं। टेस्ट ज्यादा होने से मरीज सामने रह हैं। आम बोलचाल की भाषा में इसे टेस्ट पॉजिटिविटी रेट कहते हैं। महाराष्ट्र में जांच के बाद 23 प्रतिशत लोग पॉजिटिव मिल रहे। राज्य के कई जिलों में यह आंकड़ा 30 प्रतिशत से भी ज्यादा है। 

जबकि देश के दूसरे राज्यों में पॉजीटिविटी रेट 10 प्रतिशत से नीचे हैं। भारत सरकार का कहना है कि पॉजीटिविटी रेट 5 प्रतिशत से नीचे रहना चाहिए। हमारी कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग की जाए ताकि पॉजिटिव मरीजों को खोजकर उन्हें अलग किया जा सके। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि कोई भी टीका किसी भी बीमारी को रोकने की शत प्रतिशत गारंटी नहीं देता, लेकिन जब टीका लगा होगा तो बीमारी का असर कम होता है इसलिए सभी को टीका लगाना जरूरी है।

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