हड़बड़ी में ट्रेन पकड़ना किसी का शौक नहीं, घायल यात्री को मुआवजा दो : हाईकोर्ट

हड़बड़ी में ट्रेन पकड़ना किसी का शौक नहीं, घायल यात्री को मुआवजा दो : हाईकोर्ट

Bhaskar Hindi
Update: 2017-07-18 12:39 GMT
हड़बड़ी में ट्रेन पकड़ना किसी का शौक नहीं, घायल यात्री को मुआवजा दो : हाईकोर्ट

डिजिटल डेस्क, नागपुर। मुंबई हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने चलती ट्रेन पर सवार होने की कोशिश करने में घायल हुए यात्री के पक्ष में एक अहम फैसला दिया है। कोर्ट ने घायल यात्री शशिकांत ढगे को 4 लाख 80 हजार रुपए मुआवजा अदा करने के आदेश जारी दिए हैं। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि हड़बड़ी में ट्रेन पकड़ना किसी का शौक नहीं होता है। यात्री घायल हुआ है और आप उसको मुआवजा दीजिए।

रेलवे ने कोर्ट में तर्क दिया था कि चलती ट्रेन पर चढ़ना या उतरना यात्री के खिलाफ आपराधिक मामला बनता है। इस पर अपने आदेश में कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक निरीक्षण का हवाला देते हुए कहा कि भारत जैसे देश में हर कोई हवाई यात्रा या निजी कार से यात्रा का खर्च नहीं उठा सकता। ऐसे में टिकट लेकर ट्रेन यात्रा के दौरान दुर्भाग्यवश गिरकर घायल हो जाने वालों को मुआवजे से वंचित रखना सही नहीं होगा।

क्या है मामला?

घटना 29 अगस्त 2008 की है। शशिकांत ढगे नागपुर से तिरपुर रूट पर चल रही ट्रेन पर सवार थे। चंद्रपुर प्लेटफार्म पर ट्रेन रूकी थीं। यात्री सामान खरीदने के लिए ट्रेन से उतरा, लेकिन वो आने में लेट हो गया और ट्रेन चलने लगी। यात्री चलती ट्रेन पर सवार होने की कोशिश करने लगा। इस बीच, उसका बैलेंस बिगड़ा और वह गिर पड़ा।

इस दुर्घटना में उसे अपनी एक टांग गंवानी पड़ी। 2 लाख 40 हजार रुपए के मुआवजे के लिए उसने रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल की शरण ली, लेकिन ट्रिब्यूनल ने यह दलील देकर याचिका खारिज कर दी कि चलती ट्रेन पर चढ़ना या उतरना आपराधिक मुकदमे के तहत आता है। इसके बाद यात्री ने हाईकोर्ट की शरण ली। अपने निरीक्षण में कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि प्लेटफार्म पर कोच के नजदीक जीवनावश्यक वस्तुएं उपलब्ध कराना रेलवे की जिम्मेदारी है। इधर यात्री को अापराधिक मामले से भी कोर्ट ने बाहर माना और रेलवे को मुआवजा अदा करने के आदेश दिए। यात्री की ओर से एड. अनिल बांबल ने पक्ष रखा।

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