3 माह में बनाए 2500 टायलेट, 10 दिन में बनाने होंगे 7500

3 माह में बनाए 2500 टायलेट, 10 दिन में बनाने होंगे 7500

Anita Peddulwar
Update: 2019-01-23 08:21 GMT
3 माह में बनाए 2500 टायलेट, 10 दिन में बनाने होंगे 7500

डिजिटल डेस्क, नागपुर। स्वच्छ भारत मिशन अंतर्गत वर्ष 2012 में किए गए मूलभूत सर्वेक्षण के आधार पर जिले के ग्रामीण क्षेत्र में 1 लाख से अधिक टायलेट का निर्माण किया गया। सर्वेक्षण दौरान गांव में रहने के बावजूद अनेक लोगों के नाम सूची में शामिल नहीं हो पाए। पात्र रहकर भी योजना का लाभ नहीं मिलने से हो-हल्ला मचने पर पुन: सर्वेक्षण किया गया। इसमें पात्र ठहराए गए लाभार्थियों को टायलेट निर्माण करने पर 12 हजार रुपए अनुदान दिया जाएगा। टायलेट निर्माण करने की डेड लाइन 31 जनवरी है।

10 हजार टायलेट का लक्ष्य
जिले में लगभग 3 माह पहले 10 हजार लाभार्थियों का पुन: सर्वेक्षण में चयन किया गया। केंद्र सरकार से आदेश मिलने पर राज्य सरकार ने जिला परिषद के स्वच्छता विभाग को टायलेट का निर्माण करने का फरमान जारी किया। सूत्रों से पता चला है कि लगभग 2500 नए टायलेट का निर्माणकार्य पूरा हो चुका है। 7500 टायलेट का निर्माण अभी शेष है। 10 दिन बचे हैं। इस कालावधि में अधूरा लक्ष्य पूरा करने की विभाग के सामने चुनौती है। जिला परिषद अध्यक्ष निशा सावरकर ने श्रेय बटोरने के लिए किसी भी कीमत पर लक्ष्य पूरा करने के अधिकारियों को निर्देश दिए हैं। समय कम होने से इसे पूरा करने की स्वच्छता विभाग कवायद कर रहा है। अध्यक्ष के दबाव बनाने से लक्ष्य पूरा करने के लिए स्वच्छता विभाग के पसीने छूट रहे हैं।

अध्यक्ष ने सुनाई खरी-खोटी
टायलेट  निर्माण का लक्ष्य पूरा करने जिप अध्यक्ष ने अधिकारियों की बैठक बुलाई। किए गए निर्माणकार्यों की समीक्षा कर शेष कार्यों को पूरा करने के निर्देश दिए। अधिकारियों पर लापरवाही बरते को लेकर खरी-खोटी सुनाए जाने की जानकारी मिली है। शौचालयों का निर्माण तथा रंगरोगन करने के निर्देश दिए गए। बैठक में उपाध्यक्ष शरद डोनेकर, वित्त समिति सभापति उकेश चौहान, पुष्पा वाघाड़े, दीपक गेडाम, मुख्य कार्यकारी अधिकारी संजय यादव, अतिरिक्त मुख्य कार्यकारी अधिकारी अंकुश केदार, उपमुख्य कार्यकारी अधिकारी प्रमिला जाखलेकर, राजेंद्र भुयार आदि उपस्थित थे।

ग्रामीण क्षेत्र में विशेष ध्यान
जिले के ग्रामीण क्षेत्र को खुले में शौचमुक्त करने जिला परिषद की ओर से एड़ी-चोटी का जोर लगाया गया। पदाधकारी, अधिकारी के टेबल पर "शौचालय असेल तरच बोला" लिखे प्लेट लगाकर जनजागरण किया गया। नए मकान को अनापत्ति प्रमाणपत्र पहले टायलेट निर्माण करने की शर्त पर देने का जिला परिषद की आमसभा में प्रस्ताव पारित किया गया। खुले में शौच करने वालों पर जुर्माना वसूल करने की ताकीद, विद्यार्थियों में जनजागरण के लिए स्वच्छता पर आधारित चित्रकला परीक्षा, मतदान आदि उपाय योजनाएं की गईं। इन उपाय योजना का संज्ञान लेकर जिला परिषद को खुले में शौचमुक्ति का पुरस्कार दिया गया। वर्ष 2012 के पायाभूत सर्वेक्षण में अनेक लोगों के नाम छूट जाने का सरकार ने मान्य करते हुए पुन: सर्वेक्षण कर योजना से वंचितों को एक अवसर प्रदान किया है। जब संपूर्ण परिवारों को टायलेट योजना का लाभ मिला ही नहीं, तो फिर जिला खुले में शौचमुक्त कैसे हो गया। यह सवाल एक अनसुलझी पहेली बना हुआ है।

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