नौकरी के खिलाफ ससुरालवालों की प्रताड़ना बर्दाश्त नहीं, महिला की शिकायतें तलाक के लिए काफी

नौकरी के खिलाफ ससुरालवालों की प्रताड़ना बर्दाश्त नहीं, महिला की शिकायतें तलाक के लिए काफी

Anita Peddulwar
Update: 2021-02-22 04:21 GMT
नौकरी के खिलाफ ससुरालवालों की प्रताड़ना बर्दाश्त नहीं, महिला की शिकायतें तलाक के लिए काफी

डिजिटल डेस्क, नागपुर। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने अपने हालिया आदेश में स्पष्ट किया है कि जीवनसाथी की नौकरी प्रभावित करने के लिए उसके खिलाफ बेफिजूल शिकायत मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है। यह आधार तलाक मंजूर करने के लिए काफी है। इस निरीक्षण के साथ न्या.अतुल चांदुरकर व न्या.पुष्पा गनेडीवाला की खंडपीठ ने पारिवारिक न्यायालय द्वारा जारी तलाक के आदेश को कायम रखा है। 

यह है पूरा मामला
 दरअसल, संबंधित दंपति का विवाह अप्रैल 2008 में हुआ था। पत्नी का आरोप था कि पति और ससुराल वालों का उसके साथ बर्ताव अच्छा नहीं था। वर्ष 2010 की दिवाली को उसके सारे गहने छीन कर उसे घर से निकाल दिया गया। मामला महिला सेल की समझाईश के बाद शांत भी हुआ लेकिन फिर समस्या जस की तस हो गई। पत्नी के अनुसार ससुराल वाले उस पर आरोप लगाते थे कि पत्नी ने फर्जी जाति वैधता प्रमाण-पत्र तैयार करवा कर नौकरी प्राप्त की है। पति इस आधार पर बार-बार पत्नी के नियोक्ता के पास शिकायत कर देता था। इन सभी आरोपों के आधार पर पत्नी ने मई 2012 को दोबारा तलाक की अर्जी दायर की।

पारिवारिक न्यायालय ने पत्नी की शिकायतें सही मान कर मानसिक क्रूरता के आधार पर तलाक मंजूर कर लिया। इसके बाद पति ने हाईकोर्ट में पारिवारिक न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपील दायर की। हाईकोर्ट ने इस मामले में माना कि पत्नी की शिकायत में तथ्य है। पति ने पत्नी के नियोक्ता को अनेक शिकायतें भी की है, लेकिन पति कोई सबूत प्रस्तुत करके शिकायतों की पुष्टि नहीं कर सका।  पूरी सुनवाई में पति या ससुराल वाले कहीं पर भी यह सिद्ध नहीं कर सके कि पत्नी ने फर्जी जाति वैधता प्रमाणपत्र के आधार पर नौकरी प्राप्त की है। ऐसे में उसके खिलाफ बे सिर-पैर के आरोप करना उसे मानसिक रूप से प्रतिाड़ित करना ही है। इसके आधार बना कर हाईकोर्ट ने पति की अपील खारिज कर दी, पारिवारिक न्यायालय के आदेश को कायम रखा।

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