पर्यावरण के लिए ठीक नहीं है नॉन वोवन बैग्स, जल्द हो सकते हैं बैन

पर्यावरण के लिए ठीक नहीं है नॉन वोवन बैग्स, जल्द हो सकते हैं बैन

Bhaskar Hindi
Update: 2018-02-14 16:18 GMT
पर्यावरण के लिए ठीक नहीं है नॉन वोवन बैग्स, जल्द हो सकते हैं बैन

डिजिटल डेस्क, नागपुर। मिठाई की दुकान हो या गार्मेंट शॉप, प्लास्टिक बैग की जगह तथाकथित कपड़े के बैग थमा दिए जाते हैं। ग्राहक भी दुकानदार के पर्यावरणप्रिय पहल का स्वागत करता दिखाई देता है, लेकिन हकीकत जरा हट के है। नॉन वोवन अर्थात बिना सिली हुई ये कपड़े जैसी दिखाई देने वाली थैलियां कपड़े की न होकर पॉमिलर का एक प्रकार है, जो नॉन-बायो-डि-ग्रेडेबल अर्थात कभी ना नष्ट होने वाला होता है, जो पर्यावरण के लिए नुकसानदायक है। यही वजह बताई जा रही है कि महाराष्ट्र सरकार इस पर प्रतिबंध लाने के लिए नई नीति तैयार कर रही है। वहीं पर्यावरण से जुड़े अनुसंधान करने वाली संस्था नीरी का मानना है कि इस पर प्रतिबंध लाने से पहले विस्तृत वैज्ञानिक अध्ययन किया जाना चाहिए।

अदालती आदेश के बाद यह चाल

बता दें कि 55 माइक्रॉन से कम की पॉलिथीनों से होने वाले पर्यावरण नुकसान के प्रति जनजागरण चलाया गया। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर प्रतिबंध भी लगा रखा है। लिहाजा बड़े पैमाने पर होने वाली जनजागृति और अदालती आदेश के आगे दुकानदारों ने पॉलीथिन की जगह यह नॉन वोवन अर्थात स्पनबॉन्ड फाइबर को उतारना शुरू किया। बिना सिली हुई ये थैलियां आम नागरिकों को कपड़े की ही थैलियों जैसी लगने लगी और देखते हुए देखते इसे जनता ने स्वीकार कर लिया। हालांकि 55 माइक्रॉन से ज्यादा की ये थैलियां रि-साइकल की जा सकती हैं।

क्या है नॉन वोवन मटेरियल

बता दें कि नॉन वोवन बैग्स के मटेरियल को आम भाषा में इंडस्ट्रियल टेक्सटाइल भी कहा जाता है, जो न केवल सामान के रखने के लिए दी जाती हैं, बल्कि इस मटेरियल के कई इंडस्ट्रियल उपयोग मसलन इलेक्ट्रिकल, मैकेनिकल, ऑटोमोबाइल, मेडिसिनल आदि क्षेत्रों में व्यापक पैमाने पर उपयोग किया जाता है। इसका केमिकल फॉर्मूला (C3H6)x है। नॉन वोवन टेक्सटाइल को आम तौर पर पॉलिप्रोपलीन कहा जाता है, जो प्रोपेलीन कम्पाइंड का पॉलिमर अर्थात श्रृंखला होती है। हालांकि इसमें कई अन्य प्रकार भी पाए जाते हैं।

तब नकेल कसी जा सकेगी

राहुल वानखेडे, क्षेत्रीय प्रबंधक, महाराष्ट्र राज्य प्रदूषण नियंत्रण महामंडल के मुताबिक नॉन वोवन पॉलिथीन बैग्स ही होती हैं, लेकिन यह 55 माइक्रोग्राम से ज्यादा होने के कारण रि-साइक्लेबल होती हैं। यह बायो-डि-ग्रेड नहीं होती, लिहाजा पर्यावरण के लिए यह समस्या है। नॉन वोवन और थर्माकॉल और पॉलीथिन के प्लेट्स और कप पर बंदी लाने के लिए नीति तैयार की जा रही है। इसके लागू होते ही इस पर नकेल कसी जा सकेगी।

नीरी के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अतुल वैद्य नॉन वोवन पर प्रतिबंध लगाए जाने का सरकार का कदम स्वागत योग्य है, लेकिन इसका पहले अध्ययन कर लिया जाना चाहिए कि यह किस कदर भारतीय पर्यावरण पर असर छोड़ेगी इसका अध्ययन किया जाना चाहिए, इससे वैज्ञानिक आधार मिलेगा।

उपराजधानी में करोड़ों का है बाजार

उपराजधानी नागपुर में पॉलिथीन बैगों को लगभग पूरी तरह खत्म करने वाला यह नॉन वोवन मटेरियल के बैग्स और टेक्सटाइल का बाजार प्रतिदिन करीबन दो करोड़ रुपए तक पहुंचने का अनुमान है। 155 रुपए प्रति किलो की दर से बिकनेवाला यह मटेरियल हर दिन करीबन 12 हजार किलो बेचा जा रहा है। जाहिर है इससे इसकी व्यापकता समझी जा सकती है।

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