मौखिक परीक्षा के न्यूनतम अंक की अनिवार्यता खत्म करने दायर की थी याचिका, हाईकोर्ट ने की खारिज

मौखिक परीक्षा के न्यूनतम अंक की अनिवार्यता खत्म करने दायर की थी याचिका, हाईकोर्ट ने की खारिज

Anita Peddulwar
Update: 2018-09-29 12:36 GMT
मौखिक परीक्षा के न्यूनतम अंक की अनिवार्यता खत्म करने दायर की थी याचिका, हाईकोर्ट ने की खारिज

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र न्यायिक सेवा में शामिल होने के लिए मौखिक परीक्षा में 40 प्रतिशत अंक हासिल करने संबंधित नियम के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया है। यह याचिका सिविल जज जूनियर डिवीजन व न्यायिक दंडाधिकारी (प्रथमश्रेणी) की परीक्षा में असफल हुए क्रांति कुमार कोलवर ने दायर की थी।  याचिका में दावा किया गया था कि न्यायिक दंडाधिकारी प्रथम श्रेणी (जेएमएफसी) व सिविल जज जूनियर डिवीजन के लिए मौखिक परीक्षा में न्यूनतम 40 प्रतिशत अंक हासिल करने का नियम संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के विपरीत है। इसके अलावा यह नियम सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले व शेट्टी कमीशन की सिफारिशों के खिलाफ भी है। इसलिए न्यायिक दंडाधिकारी व सिविल जज जूनियर पद की परीक्षा के लिए नियम तैयार करने का निर्देश दिया जाए जो संविधान के प्रावधानों के अनुरुप हो।

जस्टिस आरएम सावंत व जस्टिस एमएस कर्णिक की खंडपीठ ने याचिका में उल्लेखित तथ्यों पर गौर करने के बाद पाया कि सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक पदों पर नियुक्ति को लेकर क्या मानक होंगे यह तय करने का अधिकार परीक्षा का आयोजन करनेवाली संस्थाओं को दिया है। ताकि वे न्यायिक सेवा के लिए श्रेष्ठ लोगों का चयन कर सके। इसलिए इस बात पर विचार नहीं किया जा सकता है कि न्यायिक दंडाधिकारी व सिविल जज जूनियर डिवीजन पद पर नियुक्ति के लिए मौखिक परीक्षा में 40 प्रतिशत अंक पाने का नियम सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ है। इसके अलावा न्यायिक सेवा से जुड़े नियमों की संवैधानिकता पर सवाल उठाने से पहले कोई वैज्ञानिक अध्ययन नहीं किया गया है और याचिकाकर्ता ने अपने दावे को लेकर कोई सबूत भी नहीं पेश किया है। इसके अलावा याचिकाकर्ता ने सिविल जज जूनियर डिवीजन व न्यायिक दंडाधिकारी प्रथम श्रेणी पद की परीक्षा दी थी जिसमें वह असफल हो गया था। इस लिहाज से हम एक असफल उम्मीदवार की ओर से दायर याचिका पर विचार नहीं कर सकते। 

खंडपीठ ने कहा कि जब सिविल जज व न्यायिक दंडाधिकारी पद पर नियुक्ति के लिए जारी विज्ञापन में परीक्षा से जुड़े नियमों का जिक्र था। इसलिए अब फिर से परीक्षा से जुड़े नियम तैयार करने का निर्देश देने का कोई औचित्य नहीं है। यह कहते हुए खंडपीठ ने मामले में हस्तक्षेप करने से इंकार करते हुए याचिका को खारिज कर दिया।

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