प्रोफेसर की पहल रंग लाई, 13 साल की मेहनत के बाद गोंदेड़ा वासियों को मिली जलसंकट से निजात

प्रोफेसर की पहल रंग लाई, 13 साल की मेहनत के बाद गोंदेड़ा वासियों को मिली जलसंकट से निजात

Anita Peddulwar
Update: 2020-10-21 09:38 GMT

डिजिटल डेस्क, चिमूर (चंद्रपुर)। बरसों से जलसंकट से जूझ रही राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज की तपोभूमि गोंदेड़ा को अब जाकर इस समस्या से निजात मिल पाई है। इस गांव में जलसमृद्धि लाने वाले भागीरथ हैं प्रा. नीलकंठ लोनबले। उनकी पहल से 13 साल की कड़ी मेहनत के बाद गांव में तालाब का निर्माण हो सका और गांववासियों को जलसंकट से मुक्ति मिल गई। हालांकि अब भी तालाब का 40 प्रतिशत काम बाकी है। उम्मीद है कि आगामी 4 वर्ष में यह कार्य पूरा हो जाएगा।

प्रा. लोनबले के लिए यहां तक का सफर आसान नहीं रहा। आरंभ में लोगों ने उनका मजाक उड़ाया लेकिन प्रा.लोनबले ने प्रयास नहीं छोड़े। चिमूर तहसील मुख्यालय से 20 किमी. दूर  स्थित ग्राम गोंदेड़ा में जन्मे प्रा. लोनबले बचपन से ही अपने परिजनों और गांववासियों को जलसमस्या से जूझते देखते थे। उसी समय उनके मन में जलसंकट से निपटने के लिए कुछ करने का जज्बा जागा, लेकिन भविष्य निर्माण की जद्दोजहद में उनका यह जज्बा दिल में ही जज्ब होकर रह गया। पढ़ाई पूरी हुई और अपने गांव से करीब 100 किमी. दूर गड़चिरोली जिले के कुरखेड़ा में अंगरेजी के प्रोफसर के तौर पर नियुक्ति हुई।

सप्ताहांत में घर आना होता तो गांववासियों को बंूद-बूंद के लिए तरसते देख मन व्यथित हो जाता। आखिरकार उन्होंने मन ही मन ठान लिया कि वे इस समस्या का निदान अवश्य ढूढ़ेंगे। वर्ष 2007 में जब लोगों ने एक प्रोफेसर को हाथ में कुदाल-फावड़ा लेकर खुदाई करते देखा तो उनका खूब उपहास उड़ाया। एक वर्ष बीत गया लेकिन प्रा. लोनबले ने अपना कार्य जारी रखा। जब तालाब की इतनी खुदाई हो गई कि पानी इकट्ठा होने लगा तो गांववासियों ने उनके कार्य की गंभीरता को समझा और फिर धीरे-धीरे आर्थिक सहायता के साथ श्रमदान के लिए भी लोग आगे आने लगे। 13 वर्ष तक निरंतर यह काम चलता रहा और अब जाकर एक हेक्टेयर क्षेत्र में फैला 20 फीट गहरा तालाब बनकर तैयार हुआ है। गांववासियों ने इसे शताब्दी तालाब नाम दिया है। 

तालाब निर्माण से गांव के कुओं का जलस्तर भी बढ़ गया है। सिंचाई की समस्या भी सुलझ गई है। गुरुदेव सेवा मंडल, महिला मंडल, श्रम संस्कार शिविर, बाल वृक्ष मित्र योजना, पालकी श्रमदान यज्ञ और गांववालों के सहयोग से इस तालाब का निर्माण हो पाया। इसमें किसी भी प्रकार की कोई सरकारी सहायता नहीं ली गई। प्रा. लोनबले अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं और तालाब का निर्माण कार्य पूरा करवाने में लगे हुए हैं।

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