मराठा समाज के लिए 10 फीसदी आरक्षण की सिफारिश, रिपोर्ट होगी पेश
मराठा समाज के लिए 10 फीसदी आरक्षण की सिफारिश, रिपोर्ट होगी पेश
डिजिटल डेस्क, मुंबई। मराठा समाज को 16 फीसदी आरक्षण की मांग को लेकर मराठा समाज लंबे समय से आंदोलन कर रहा है। लेकिन इसके लिए गठित राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने अपनी रिपोर्ट में सिर्फ 10 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की है। सूत्रों के अनुसार आयोग ने कहा कि ओबीसी वर्ग अथवा स्वतंत्र रुप से मराठा समाज को 9 से 10 फीसदी आरक्षण दिया जाना चाहिए। आयोग ने राज्य के करीब 45 हजार मराठा परिवारों का सर्वेक्षण कर यह रिपोर्ट तैयार की है। सर्वेक्षण में पता चला है कि मराठा समाज आर्थिक, शैक्षणिक व सामाजिक तौर पर पिछडा हुआ है। आयोग को विभिन्न संगठनों की तरफ से करीब 193 निवेदन मिले हैं। इन सबका अध्ययन कर आयोग ने अपनी रिपोर्ट तैयार की है। संविधान और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता। इस लिए मराठा आऱक्षण देने के लिए विधानमंडल में विधेयक पारित करना होगा अथवा ओबीसी में शामिल करने के लिए केंद्र सरकार के पास प्रस्ताव भेजना होगा। पर इसमें अधिक समय लगने की संभावना है।
मराठा समाज को जरूर मिलेगा आरक्षण
राज्य सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री ने कहा कि आयोग की रिपोर्ट गुरुवार तक सरकार को मिलने वाली है। उन्होंने कहा कि रिपोर्ट कुछ भी हो मराठा समाज को आरक्षण देना तय है। इस मामले में सरकार अपना वचन निभाएगी। उधर विदर्भ में कार्यकर्ताओं में उत्सुकता बढ़ गई है। गौरतलब है कि विदर्भ में मराठा समाज के ज्यादातर नागरिक कुनबी समुदाय के नाम पर पहले से ही ओबीसी आरक्षण का लाभ ले रहे हैं। जब्कि अन्य क्षेत्राें में मराठा किसी भी तरह का आरक्षण लाभ नहीं पा रहे है। पश्चिम महाराष्ट्र से मांग उठती रही है कि मराठा समाज को मराठा के नाम पर ही अलग से आरक्षण दिया जाए। लिहाजा सिफारिश रिपोर्ट में किन मांगों को अधिक महत्व मिला है यह जानने की उत्सुकता सभी में हैं। राज्य में 26 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण है। उसमें कुनबी सहित अन्य कई जातियां शामिल है। लिहाजा कहा जाता रहा है कि ओबीसी आरक्षण को यथावत रखते हुए मराठा को अलग से आरक्षण मिले। ओबीसी में मराठा को शामिल किया गया तो संख्याबल के आधार पर इसी समाज को ओबीसी आरक्षण का अधिक लाभ मिलेगा। अन्य समाज लाभ से वंचित रह जाएंगे।
किया गया अध्ययन
न्यायाधीश एम.जी गायकवाड़ की अध्यक्षता में राज्य मागासवर्गीय आयोग का गठन किया गया है। आयोग ने मराठा समाज की आर्थिक, सामाजिक व शैक्षणिक स्थिति का अध्ययन किया है। आयोग की ओर 1,93,000 आवेदन मराठा आरक्षण के संबंध में पहुंचे है। 45 हजार परिवारों का आयोग ने अध्ययन किया है। मंगलवार को आयोग की फायनल रिपोर्ट तैयार हुई। आयोग ने मराठा समाज में किसान आत्महत्या, महिलाओं की आर्थिक व सामाजिक स्थिति के अलावा प्रथा,परंपरा व रीति रिवाज का अध्ययन किया है।
आघाड़ी सरकार के समय की गई थी पहल
कांग्रेस राकांपा के नेतृत्व की आघाड़ी सरकार के समय मराठाओं को आरक्षण देने की पहल की गई थी। निर्णय भी लिया गया था। लेकिन न्यायालय में सरकार काे मात खाना पड़ा। 2014 में तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने मराठा आरक्षण के लिए नारायण राणे समिति नियुक्त की थी। उस समिति की सिफारिश के आधार पर दिया गया आरक्षण लागू नहीं हो पाया। न्यायालय ने कहा कि मराठा समाज का पिछड़ापन साबित करने के लिए राज्य मागासवर्गीय आयोग की सिफारिश महत्वपूर्ण है। गौरतलब है कि मराठा आरक्षण की मांग को लेकर विधानमंडल में लगातार बहस होती रही है। राज्य भर में मूक प्रदर्शन किये गए। मराठा समाज का मूक प्रदर्शन विश्व स्तर पर चर्चा में रहा है।
पूर्व विदर्भ में अलग है स्थिति
आरक्षण की मांग के मामले को देखा जाए तो पूर्व विदर्भ यानी नागपुर, भंडारा, गोंदिया,वर्धा, चंद्रपुर, गडचिरोली में अलग स्थिति है। यहां मराठाओं की संख्या कम नहीं है। लेकिन ज्यादातर ओबीसी आरक्षण सूची में शामिल है। समाज के जानकार के अनुसार,डॉ.पंजाराव देशमुख ने कृषिमंत्री रहते हुए मराठाओं को शैक्षणिक सेवा का लाभ दिलाने के लिए एक तरह से अभियान आरंभ किया था। उनके आव्हान पर अकोला, अमरावती सहित पूर्व विदर्भ के खेती कार्य से जुड़े मराठा समाज के लोगों ने कुनबी जाति के तौर पर ओबीसी सूची में शामिल होकर आरक्षण का लाभ लेना आरंभ किया। हालांकि उस समय कुछ लोग केवल मराठा बने रहते हुए ओबीसी आरक्षण की सूची में शामिल नहीं हुए। मराठा सेवा संघ के पूर्व अध्यक्ष व शिवाजी इंटरप्रिन्योर एसोसिएशन के अध्यक्ष विजय शिंदे के अनुसार राज्य मागासवर्गीय आयोग ने विविध स्तर पर समाज के संगठनों से जानकारी ली है। प्रदेश में समाज की स्थिति अलग अलग है। ऐसे में आयोग की सिफारिश को जानने की उत्सुकता निश्चित ही बढ़ी है।