रेड लाइट एरिया लाइव: कोरोना संकट में छटपटाती रेड लाइट क्षेत्र की देह जीविकाएं
रेड लाइट एरिया लाइव: कोरोना संकट में छटपटाती रेड लाइट क्षेत्र की देह जीविकाएं
रघुनाथसिंह लोधी,नागपुर। देह जीविकाओं की बस्ती गंगा जमुना में सन्नाटे का पहरा है। कोरोना संकट ने छटपटाहट बढ़ा दी है। चिंता है,बेचैनी है। संयम की सीख व हमदर्दी मिल रही है। राहत के हाथ भी बढ़ रहे हैं लेकिन संकट का साया गहराता ही जा रहा है। एक ओर भूखे मरने की स्थिति करवट ले रही है तो दूसरी ओर दोहरे किराये को लेकर दिल घबरा रहा है। बेरोजगारी का समय तो कट भी जाएगा लेकिन बाद में जो स्थिति बनेगी उसमें क्या होगा? दिल में चुभता सवाल व्यक्त भी नहीं हो पा रहा है। शहर की घनी बस्ती में रहकर भी आम समाज से दूर देह जीविकाओं व उनसे जुड़े लोगों की सुध विशेष तौर पर लेने की दरकार की जा रही है।
गंगा जमुना में कफर्यू कोई नया नहीं है। छापेमारियां होते रहती है। तालाबंदी भी होती है। बोरिया बिस्तर समेटने की हिदायतें मिलती रहती है। लेकिन इस बार संकट का साया विकराल है। देह व्यापार के लिए पहचाने जाने वाली इस बस्ती में जनजीवन एकदम बेबस सा हो चला है। कुछ परिवार अवश्य है जो करोड़पतियों में शामिल है। लेकिन उनकी संख्या एक दो प्रतिशत ही है। बाकी की स्थिति दयनीय होने लगी है।
दो किराया कैसे चुकाएं
गंगा जमुना पुलिस चौकी के पास एक सामाजिक कार्यकर्ता से चर्चा कर रही 40 वर्षीय महिला बस्ती की स्थिति बयां करने लगती है। अपना नाम रोशना लुनावत बताती है। वह कहती है-हमारी चिंता नहीं है। हमारे पास कार है, घर है, बैंक बैलेंस है। लेकिन उनका तो भगवान ही भला कर पाएगा ,जिनका गुजारा हर दिन की कमाई पर चलता है। पेट भर भी लें तो किराया कहां से चुका पाएगी। दो-दो किराया चुकाना पड़ता है। रोशना बताती है-जिस कमरे में धंधा होता है वह तो 300 से 400 रुपये प्रति ग्राहक के हिसाब से मिलता है। रात गुजारने के लिए जिस कमरे में रहती है उसका प्रतिमाह किराया 6000 से 7000 रुपये है। 8 बाय 8 वर्गफीट के कमरे में 3 से 4 लड़कियां रहती है। रहने व धंधे के कमरे के किराये के तौर पर एक लड़की को कम से कम 8 से 10 हजार रुपये प्रतिमाह खर्च करना पड़ता है।
यहां नहीं तो गांव में पंचायत बिठाकर होगी वसूल
रोशना की बात को आगे बढ़ाते हुए दामिनी कालभोर कहती है- किराये को लेकर कुछ लोगों ने कहा है कि कमरा मालकिन को एक दो माह के लिए समझा दिया जाएगा। लेकिन ऐसा होना मुश्किल है। यहां मकान मालकिन मान भी जाए तो गांव जाने पर पंचायत बिठाकर ब्याज के साथ किराये की वसूली करेगी। दामिनी बताती है, वह झांसी के पास धौलपुर की रहनेवाली है। उसे इसी शर्त पर कमरा दिया गया था कि किराया एडवांस में मिलते रहे। कमरा मालकिन उनके गांव के तरफ की ही है। कई बार गंगा जमुना में झगड़ा होने पर गांव में मार खाना पड़ता है। इस बार क्या गारंटी है। ग्वालियर के रेशमपुरा, बदनापुरा राजस्थान के डबराना की मकान मालकिनों का यहां दबदबा है।
सुरक्षा की व्यवस्था नही
सामाजिक कार्यकर्ता इरफान शेख कहता है- हर तरफ सेफ्टी की बात हो रही है लेकिन इस बस्ती में सुरक्षा की व्यवस्था नहीं है। आरंभ में दो दिन तक यहां कुछ लोग सैनेटाइज लेकर आए बाद में कोई नहीं पहुंचा। बस्ती में पहले से ही साफ सफाई के मामले में बदहाली है। वह और भी बढ़ रही है। लकड़गंज थाने के थानेदार की पहल का जिक्र करते हुए शेख कहता है- शहर में लॉकडाऊन के पहले ही बस्ती को बंद करा दिया गया। थानेदार ने यहां के लोगों की बैठक लेकर सबको समझाइस दी थी। अब वे भोजन सामग्री का भी इंतजाम करा रहे हैं। लेकिन 8 बाय 8 के कमरे में कैद से 8 से 10 लोग कैसे जीवन जी रहे होंगे इसकी ओर शायद ही प्रशासन ध्यान दे पा रहा है। ज्योति नामक महिला कहती है-यहां की समस्या का सर्वे करके राहत मिले तो सही होगा।
सहयोग जारी है
स्वयंसेवी संस्थाओं की सहायता से बस्ती में आवश्यक सहयोग दिया जा रहा है। वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का मार्गदर्शन मिल रहा है। मानवीयता के आधार पर यहां हरसंभव सहायता की जाएगी। कुछ परिवार अधिक परेशान है। -नरेंद्र हिवरे, थानेदार, लकड़गंज पुलिस स्टेशन
मानवाधिकार का विष
यह मानवाधिकार का विषय है। इस बस्ती की महिलाओं के संकट को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। भोजन के अलावा कोरोना वायरस के रोकथाम के लिए सेफ्टी सामग्री भी दी जा रही है -नूतन रेवतकर , अध्यक्ष राकांपा महिला इकाई नागपुर
ये है बड़ी समस्या
इंडियन रेड क्रास सोसायटी के सर्वे के अनुसार बस्ती में 445 परिवार है। एक परिवार में 1 से 7 सदस्य हैं। लिहाजा यहां की जनसंख्या 1500 से अधिक है। उड़ीया व छत्तीसगढ़ी गली की हालत सबसे अधिक खराब है। इन गलियों में बुजुर्ग कमरा मालकिन हैं। लड़कियां उपलब्ध कराने की दलाली कमाती है। धंधा बंद होने से एक सप्ताह में ही उनके घर का अनाज लगभग समाप्त हो गया है। इनमें भी 5 से 6 घर ऐसे हैं जिनपर भूखे रहने की नौबत है। देह व्यापार करती ज्यादातर युवतियां खाना नहीं पकाती है। सुबह 9 बजे से रात 10 से 11 बजे तक नाश्ता आदि करते रहती है। सुबह या रात में नाश्ता या खाना खरीदकर मंगवाती रहती है। अब भोजन दुकानें बंद होने से सबसे अधिक वे परेशान हैं।
चावल दाल का वितरण
कांग्रेस के अल्पसंख्यक विभाग की ओर से बस्ती परिसर में चावल दाल का वितरण किया गया। कमेटी के अनुसार 200 परिवारों को 1 टन चावल व 2 क्विंटल दाल दी गई। कमेटी के राष्ट्रीय महासचिव महेंद्रसिंह वोहरा के मार्गदर्शन में, आलोक कोंडापुरवार , शहबाज़ सिद्दीक़ी, रोहित खैरवार,अखिलेश राजन शामिल थे।