"सी यू इन कोर्ट' कहना अपराध नहीं, कोर्ट ने किया मुकदमा खारिज
"सी यू इन कोर्ट' कहना अपराध नहीं, कोर्ट ने किया मुकदमा खारिज
डिजिटल डेस्क, नागपुर। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने अपने हालिया फैसले में स्पष्ट किया है कि किसी व्यक्ति द्वारा कोर्ट जाने की चेतावनी देने पर उस व्यक्ति को वसूलीबाज या धमकाने का आरोपी नहीं माना जा सकता। अदालत जाने की चेतावनी किसी भी कानून या दंडविधान में अपराध नहीं है और न ही यह दीवानी स्वरूप के अपराध की श्रेणी में आता है। चूंकि हाईकोर्ट जनहित याचिका पर लगातार सुनवाई करता है, उसके समक्ष किसी अनियमितता को उजागर करने की चेतावनी देना अपराध नहीं माना जा सकता। इसी निरीक्षण के साथ न्या.रोहित देव की खंडपीठ ने यवतमाल जिले के पांढरकवड़ा के समाजसेवक "रजनीकांत बोरोले" को अंतरिम राहत दी है।
यह है मामला
7 मार्च 2009 को रजनीकांत बोरोले का स्थानीय जिला आपूर्ति अधिकारी शालिग्राम भराड़ी से विवाद हो गया था। अधिकारी का आरोप है कि बोरोले ने उन्हें धमका का पैसे वसूलने की कोशिश की। बोरोले ने उन्हें धमकी दी कि अधिकारी ने उन्हें पैसे नहीं दिए तो अधिकारी द्वारा की गई सारी अनियमितता को वे हाईकोर्ट में उजागर कर देंगे। करीब दो वर्ष बाद इस मामले में पुलिस शिकायत हुई। पांढरकवड़ा के उप विभागीय पुलिस अधिकारी तुकाराम गेडाम ने रजनीकांत बोरोले पर भादवि 385 व 189 के तहत मामला दर्ज किया।
आरोपी के खिलाफ जेएमएफसी कोर्ट यवतमाल में ट्रायल चल रहा है। आरोपी ने जेएमएफसी कोर्ट से मुकदमा खारिज करने की प्रार्थना की, लेकिन जेएमएफसी कोर्ट ने यह विनती ठुकरा दी। सत्र न्यायालय ने भी आरोपी की अपील खारिज की। जिसके कारण आरोपी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। हाईकोर्ट ने इस मामले में माना कि किसी की गलत हरकत को उजागर करने की बात और किसी को झूठे मामले में फंसाने की धमकी देना एक ही बात नहीं है। वहीं मामले में दो वर्ष की देरी से शिकायत करना, फरियादी के अलावा दूसरा कोई गवाह न होना आरोपी काे संदेह का लाभ देता है। हाईकोर्ट ने इस निरीक्षण के साथ आरोपी के खिलाफ निचली अदालत में जारी मुकदमा खारिज करने का आदेश जारी किया।