कृषि कानून पर शरद पवार बोले- खारिज करने की जगह विवादित भाग में हो संशोधन

कृषि कानून पर शरद पवार बोले- खारिज करने की जगह विवादित भाग में हो संशोधन

Bhaskar Hindi
Update: 2021-07-01 11:49 GMT
कृषि कानून पर शरद पवार बोले- खारिज करने की जगह विवादित भाग में हो संशोधन

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कृषि कानूनों को लेकर किसानों का विरोध पिछले साल 26 नवंबर से जारी है। किसान लगातार गाजीपुर बॉर्डर और सिंघु बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे हैं। वहीं, आज मामले को लेकर देश के पूर्व कृषि मंत्री औरराकांपा प्रमुख शरद पवारने बयान दिया है। उन्होंने कहा कि किसान पिछले 6 माह से आंदोलन कर रहे हैं। केंद्र और किसानों के बीच गतिरोध बना हुआ है, इसलिए वे अभी भी वहीं बैठे हैं। केंद्र को उनसे बातचीत करनी चाहिए।

इस दौरान मामले को लेकर पवार ने ये भी कहा कि मामले को लेकर बालासाहेब थोराट (Balasaheb Thorat) से चर्चा की गई है। जैसा कि केंद्र ने विधेयकों को मंजूरी दे दी है, इन्हें पारित करने से पहले राज्यों को विवादास्पद बिंदुओं पर चर्चा करनी चाहिए और निर्णय लेना चाहिए। मुझे नहीं लगता कि ये दो दिवसीय राज्य विधानसभा सत्र (assembly session) में आएगा, अगर आता है तो इस पर चर्चा होनी चाहिए। 

उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र सरकार (maharastra government) का एक समूह केंद्र सरकार (Central Government) की ओर से पारित किए गए कृषि कानून (agricultural law) के अलग-अलग पहलुओं का अध्ययन कर रहा है।मामले को लेकर शरद पवार से पूछा गया कि क्या महाराष्ट्र सरकार केंद्र के कृषि कानून (agricultural law) के विरोध में प्रस्ताव लेकर आएगी। जिस पर पवार ने कहा कि ‘’पूरे कृषि कानून को बदलने की जगह हम कानून के उस भाग को बदल सकते हैं जिससे किसानों को आपत्ति है।’’शरद पवार ने कहा कि सभी राज्यों को अपने यहां इस कानून को लागू करने से पहले इसके विवादि पहलुओं पर भी चर्चा करनी चाहिए, उसके बाद ही कोई फैसला लेना चाहिए। 

पवार ने कहा कि कृषि कानून (agricultural law) को लेकर एक मंत्रियों का समूह अध्ययन कर रहा है, अगर ये समूह कुछ अच्छे और किसानों के हक में बदलाव लेकर आता है तो इन कृषि कानूनों के खिलाफ प्रस्ताव लाने की जरूरत नहीं होगी। उन्होंने कहा कि किसान पिछले 6 माह से लगातार कृषि कानून के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। किसानों और केंद्र के बीच एक डेडलॉक (deadlock) की स्थिति बन चुकी है। इसलिए ये लोग यहां बैठें हुए हैं। केंद्र को अब किसानों से बातचीत करनी चाहिए।
 

Tags:    

Similar News