सुप्रीम कोर्ट का फैसला- अब किसी भी नए व्यक्ति को मराठा आरक्षण के तहत नौकरी या शिक्षा में छूट नहीं मिलेगी

सुप्रीम कोर्ट का फैसला- अब किसी भी नए व्यक्ति को मराठा आरक्षण के तहत नौकरी या शिक्षा में छूट नहीं मिलेगी

Bhaskar Hindi
Update: 2021-05-05 08:44 GMT
सुप्रीम कोर्ट का फैसला- अब किसी भी नए व्यक्ति को मराठा आरक्षण के तहत नौकरी या शिक्षा में छूट नहीं मिलेगी

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में मराठा समुदाय को सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में मिले आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया है। न्यूज एजेंसी ANI की खबर के अनुसार मारठा आरक्षण को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि नौकरी और शिक्षा में मराठा आरक्षण असंवैधानिक है। अब किसी भी नए व्यक्ति को इस आरक्षण के तहत नौकरी या शिक्षा में छूट नहीं मिलेगी। कोर्ट ने कहा कि मराठा समुदाय कोटा को सामाजिक एवं शैक्षिणक रुप से पिछड़ा घोषित नहीं किया जा सकता। 

2018 में महाराष्ट्र राज्य कानून के तहत यह अधिकार दिया गया था लेकिन कोर्ट ने कहा कि सामानता के अधिकार का उल्लंघन करते हुए इस आरक्षण पर रोक लगा दी । कोर्ट ने कहा कि हम 1992 के फैसले की समीक्षा नहीं करेंगे। जिसमें आरक्षण का कोटा 50 फीसदी पर रोक दिया गया था।

50 फीसदी आरक्षण सीमा का उल्लंघन
सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि मराठा आरक्षण 50 फीसदी सीमा का उल्लघंन हैं। कोर्ट के इस फैसले से पहले की नियुक्तियों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। पीजी मेडिकल पाठ्यक्रम में पहले किए गए दाखिले बने रहेंगे, इस फैसले से प्रभावित नहीं होंगे।

अलग- अलग फैसले पर, निर्णय अटल
पांच जजों की पीठ ने तीन अलग-अलग फैसला दिए लेकिन, सभी ने माना की मराठा समुदाय को आरक्षण नहीं दिया जा सकता हैं। आरक्षण 50 फीसदी से ज़्यादा नहीं हो सकता है एवं यह सिर्फ़ पिछड़े वर्ग को दिया जा सकता है।मराठा इस कैटेगरी में नही आता हैं, राज्य सरकार ने इमरजेंसी क्लॉज के तहत आरक्षण दिया था, लेकिन यहां कोई इमरजेंसी नहीं था। इस पीठ में न्यायमूर्ति अशोक भूषण के अलावा न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट्ट शामिल हैं। जिन्होंने आज फैसला सुनाया।

विभिन्न अधिनियम के तहत महाराष्ट्र में 75% आरक्षण

विभिन्न समुदायों एवं आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को दिए गए आरक्षण को मिलाकर महाराष्ट्र में करीब 75 फीसदी आरक्षण हो गया हैं।इससे पहले 2001 में राज्य आरक्षण अधिनियम था जिसके बाद, महाराष्ट्र में कुल आरक्षण 52% था लेकिन, बाद में 12- 13% मराठा कोटा आरक्षण के बाद यह कुल 64- 65% हो गया था। केंद्र द्वारा 2019 में घोषित आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए 10% कोटा भी राज्य में प्रभावी है. इन सभी को मिलाकर कुल 75% आरक्षण हैं।

राज्य में किस तरह से आरक्षण
विभिन्न समुदायों एवं आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को दिए गए आरक्षण को मिलाकर महाराष्ट्र में करीब 75 फीसदी आरक्षण हो गया हैं। इस पहले 2001 में राज्य आरक्षण अधिनियम था जिसके बाद, महाराष्ट्र में कुल आरक्षण 52% था लेकिन, बाद में 12- 13% मराठा कोटा आरक्षण के बाद यह कुल 64- 65% हो गया था। केंद्र द्वारा 2019 में घोषित आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए 10% कोटा भी राज्य में प्रभावी है। इन सभी को मिलाकर कुल 75% आरक्षण हैं।

इंदिरा साहनी केस
1991 में  पीवी नरसिम्हा राव की सरकार ने आर्थिक आधार पर सामान्य श्रेणी को दस फीसदी आरक्षण देने का आदेश जारी किया था। साहनी ने इस फैसले को लेकर कोर्ट में चुनौती दी थी। जिसका फैसला 1992 में आया था।1992 में नौ जजों की पीठ ने यह फैसला सुनाते हुए कहा था कि-आरक्षण 50 फीसदी से ज़्यादा नहीं हो सकता हैं। 


केंद्र से सिर्फ़ सिफारिश कर सकते है
राज्यों को यह अधिकार नहीं कि वह किसी जाति को सामाजिक-आर्थिक पिछड़ा वर्ग में शामिल कर ले। राज्य सिर्फ़ ऐसी जातियों की पहचान कर राज्य केंद्र से सिफारिश कर सकते हैं। राष्ट्रपति उस जाति को राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के निर्देशों के मुताबिक सामाजिक आर्थिक पिछड़ा वर्ग की लिस्ट में जोड़ सकते हैं।

 


 

 

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