आजादी के बाद 1959 में नागपुर में पहली बार हुआ था कांग्रेस का अधिवेशन

आजादी के बाद 1959 में नागपुर में पहली बार हुआ था कांग्रेस का अधिवेशन

Anita Peddulwar
Update: 2018-10-02 06:45 GMT
आजादी के बाद 1959 में नागपुर में पहली बार हुआ था कांग्रेस का अधिवेशन

डिजिटल डेस्क, नागपुर। कांग्रेस कार्यकारिणी का पहला अधिवेशन नागपुर में 1891 में हुआ था। इसके बाद 1920 में महात्मा गांधी की अध्यक्षता में दूसरा अधिवेशन हुआ था। आजादी के बाद 1959 में पहला और नागपुर में तीसरा  अधिवेशन हुआ था। कांग्रेस नगर में हुए इस अधिवेशन में इंदिरा गांधी को सर्वसम्मति से अध्यक्ष चुना गया था। तब इंदिरा गांधी को ‘गूंगी गुड़िया’ ही कहा जाता था। लेकिन पहले अधिवेशन में ही इस ‘गूंगी गुड़िया’ ने अपने सख्त रवैये का परिचय कराया था। नागपुर में 3-4 दिन चले कांग्रेस अधिवेशन में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू अपना भाषण देने के लिए खड़े हुए थे। निर्धारित समय पार करते ही इंदिरा गांधी ने बेल बजाकर उन्हें रोक दिया था। बेल बजाकर उन्हें रोकने पर मंच पर बैठे सबके सब इंदिरा गांधी की ओर देखने लगे। लेकिन उन्होंने घड़ी की ओर इशारा किया और रुकने कहा। इंदिरा गांधी का यह स्टाइल कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को खूब भाया और जोरदार तालियों से इसका स्वागत किया। सभी प्रमुख नेताओं का डेरा नागपुर में है। यहीं से रोजाना आना-जाना और दिशा-निर्देश जारी हो रहे हैं। ऐसे में नागपुर देश के केंद्र में है। हालांकि नागपुर में कभी कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक नहीं हुई, लेकिन 1891, 1920 और 1959 में तीन बार अधिवेशन हुए थे। 1920 में दूसरी बार नागपुर में अधिवेशन हुआ था। इस अधिवेशन की अध्यक्षता महात्मा गांधी ने की। उस समय के कांग्रेस के सभी वरिष्ठ नेता इसमें शामिल हुए थे। कांग्रेस के लिए यह अधिवेशन, इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि इस अधिवेशन में महात्मा गांधी को सर्वमान्य नेता के रूप में पहचान मिली। आजादी आंदोलन की दृष्टि से यह अधिवेशन काफी मायने रखता था। इसी अधिवेशन में कई महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित हुए थे। स्वराज्य आंदोलन को गति प्रदान करना,  राजनीतिक नहीं आर्थिक आजादी की ओर भी अग्रसर होना, अहिंसा आंदोलन, असहयोग आंदोलन आदि का प्रस्ताव नागपुर अधिवेशन में पारित हुआ था। 

आंदोलनों व सत्याग्रह की शुरुआत हुई
यह प्रस्ताव पारित होने के बाद सिरसपेठ में पूनमचंद राकां की जगह पर पहला असहयोग आश्रम खुला था। इसके बाद जनरल आवारी के घर पर दूसरा असहयोग आश्रम बना था। इस अधिवेशन से प्रेरणा लेकर 1923 में ‘जंगल सत्याग्रह’ और 1925 में सशस्त्र आंदोलन और फिर ‘नमक सत्याग्रह’ की शुरुआत हुई थी। इसलिए जब-जब आजादी आंदोलन की बात निकलती है तो नागपुर में हुए कांग्रेस अधिवेशन को महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके बाद तीसरा अधिवेशन 1959 में हुआ था। कांग्रेस नगर में यह अधिवेशन हुआ था। इस अधिवेशन के बाद इलाके का नाम कांग्रेस नगर हो गया था। उस समय कांग्रेस का चुनाव चिह्न बैल जोड़ी था। इसलिए अधिवेशन में आने वाले मेहमानों का स्वागत करने शहर कांग्रेसी नेताओं ने 64 बैल जोड़ी की एक रैली निकाली थी। यह रैली पूरे शहर का भ्रमण कर कांग्रेस नगर पहुंची थी। शुरू में यू.एन. डेभार ने इसकी अध्यक्षता की थी। इंदिरा गांधी को राष्ट्रीय अध्यक्ष नियुक्त करने के बाद उन्होंने अध्यक्षता स्वीकारी। इस अधिवेशन में हरित क्रांति और सहकार आंदोलन को गति देने का प्रस्ताव पारित हुआ था। चौधरी चरण सिंह ने सहकार आंदोलन को गति देने का प्रस्ताव रखा था। 

इमरजेंसी के बाद नागपुर से मिली थी इंदिरा को ऊर्जा
आपातकाल के दौरान कांग्रेस बुरी तरह चुनाव हार गई थी, किन्तु उसे हार के बाद नागपुर से ही ऊर्जा मिली थी। इन यादों को ताजे करते हुए तत्कालीन सांसद गेव मंचरशा आवारी बताते हैं कि आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी के साथ  मैं और वसंत साठे विमान के जरिए नागपुर पहुंचे थे, लेकिन वह काफी उदास थी। उन्हें लग रहा था कि एयरपोर्ट पर उतरने के बाद लोगों के विरोध का सामना करना पड़ेगा। इसलिए वह विमान में ही बैठी रहीं। उन्हें भरोसा दिलाया कि ऐसा कुछ नहीं होगा। लोग आपको चाहते हैं और आपका स्वागत करेंगे। इस बीच वसंत साठे नीचे उतरे। थोड़ी देर रुककर उन्होंने इशारा करते हुए इंदिरा गांधी को बाहर लाने को कहा। इसके बाद इंदिरा गांधी बाहर आईं तो हजारों की संख्या में कार्यकर्ता उनका स्वागत करने के लिए बाहर खड़े थे। जोरदार स्वागत हुआ। श्री आवारी बताते हैं कि भीड़ इतनी ज्यादा थी कि उन्हें पवनार आश्रम (वर्धा) जाने में 4 घंटे से अधिक का समय लग गया। वे तीन दिन विनोबा भावे के पवनार आश्रम में रहीं। यहां प्रत्येक नागरिक और कार्यकर्ता से मिलीं। पवनार आश्रम से नई ऊर्जा लेकर एक बार फिर देश में सत्ता ले आईं। 

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