MP : न्यायिक प्रक्रिया हुई महंगी, शपथ आयुक्तों की फीस में वृध्दि

MP : न्यायिक प्रक्रिया हुई महंगी, शपथ आयुक्तों की फीस में वृध्दि

Bhaskar Hindi
Update: 2017-12-19 06:39 GMT
MP : न्यायिक प्रक्रिया हुई महंगी, शपथ आयुक्तों की फीस में वृध्दि

डिजिटल डेस्क,भोपाल। मध्य प्रदेश में न्यायिक प्रक्रिया को महंगा कर दिया गया है। न्यायालयों में एफिडेविट पर शपथ लेने वाले शपथ आयुक्तों की फीस में वृध्दि कर दी गई है। अब शपथ आयुक्त न्यायालय में पेश किए जाने वाले प्रत्येक एफिडेविट पर आवेदक से 15 रुपए के स्थान पर 25 रुपए फीस वसूलेंगे। इस संबंध में राज्य के विधि विभाग ने मप्र उच्च न्यायालय एवं राज्य शासन के अनुमोदन पर 41 साल पहले बने शपथ आयुक्त नियम 1976 में संशोधन कर दिया है।


गौरतलब है कि जिला न्यायालयों में डिस्ट्रिक्ट जज द्वारा तीन वर्ष के कार्यकाल हेतु शपथ आयुक्त नियुक्त किए जाते हैं। नए संशोधनों के अनुसार अब शपथ आयुक्त बनने के लिए किसी वकील को पांच वर्ष की निरंतर वकालत करने का अनुभव होने के स्थान पर मात्र तीन वर्ष का अनुभव ही पर्याप्त होगा। इसके अलावा शपथ आयुक्त का कार्यकाल समाप्त होने के 90 दिनों के पूर्व नवीनीकरण का आवेदन देना होता है तथा 90 दिन बीत जाने के बाद पुन: 30 दिन के अंदर ठोस कारण बताते हुए नवीनीकरण का आवेदन किया जाता है तो भी डिस्ट्रिक्ट जज नवीनीकरण कर सकेगा, ऐसा पहले प्रावधान था जिसे अब नए संशोधन के जरिए 60 दिन कर दिया गया है।


संशोधन के जरिए एक नया प्रावधान यह भी जोड़ा गया है कि यदि डिस्ट्रिक्ट जज नवीनीकरण करने न करने की अनुशंसा नहीं करता है तो संबंधित शपथ आयुक्त  ऐसे आदेश की तारीख से 30 दिन के भीतर उच्च न्यायालय के समक्ष अपील प्रस्तुत कर सकेगा। अपील की प्राप्ति पर उच्च न्यायालय विलंब के लिए माफी देने एवं शपथ आयुक्त के प्रमाण-पत्र के नवनीकरण के लिए आदेश दे सकेगा। भोपाल जिले में इस समय 27 शपथ आयुक्त हैं तथा अन्य जिला न्यायालयों में भी इसके आसपास संख्या है। इन्हीं शपथ आयुक्तों में से कुछ को हाईकोर्ट और उसकी खण्डपीठों के लिए भी शपथ आयुक्त होने का अतिरिक्त अधिकार दे दिया जाता है। ये शपथ आयुक्त सिविल एवुं क्रिमिनल दोनों मामलों में कोर्ट में दिए जाने वाले एफिडेविट को वेरीफाई करते हैं। 


विधि विभाग अपर सचिव शरतचन्द्र सक्सेना का कहना है  कि शपथ आयुक्तों को लायसेंस न्यायालय के लिए मिलता है और यह डिस्ट्रिक्ट जज द्वारा दिया जाता है जबकि नोटरी का लायसेंस विधि विभाग देता है।
 

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