मोदी के कृषि कानून विरोध के चक्कर में गलती कर बैठी राज्य सरकारः डॉ बोंडे

मोदी के कृषि कानून विरोध के चक्कर में गलती कर बैठी राज्य सरकारः डॉ बोंडे

Anita Peddulwar
Update: 2021-07-10 12:21 GMT
मोदी के कृषि कानून विरोध के चक्कर में गलती कर बैठी राज्य सरकारः डॉ बोंडे

डिजिटल डेस्क,मुंबई। भाजपा ने राज्य की महा विकास आघाडी सरकार द्व्रारा केंद्रीय कृषि कानूनों में संशोधन प्रस्ताव पेश किए जाने विरोध किया है। राज्य के पूर्व कृषिमंत्री व भारतीय जनता पार्टी किसान मोर्चा के राष्ट्रीय महामंत्री डॉ. अनिल बोंडे ने कहा है कि केंद्रीय कृषि कानूनों को उसके मूल स्वरुप में ही लागू किया जाना चाहिए। शनिवार को प्रदेश भाजपा कार्यालय में पत्रकारों से बातचीत में डा बोंडे ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा किसानों को अपने उत्पाद बिक्री के लिए स्वतंत्रता देने के लिए बनाए गए कृषि कानून में राज्य की महाविकास आघाडी सरकार ने बदलाव की कोशिश की है पर वास्तव में यह मामूली संशोधन है। उन्होंने कहा कि यह केंद्र के कृषि कानून का विरोध करनेवाली महाविकास आघाडी सरकार के देर से सूझी गयी होशियारी है पर राज्य सरकार को केंद्र के कानून को उसके मूल स्वरुप में स्वीकार करना चाहिए।

डॉबोंडे ने कहा कि विधानमंडल के मानसून सत्र के दौरान राज्य सरकार ने मोदी सरकार के कृषि कानून का विरोध करने के लिए तीन संशोधन विधेयक पेश किए हैं। इन विधेयकों पर राज्य सरकार ने लोगों से सुझाव मंगाए हैं। इन विधेयकों का अध्ययन करने पर पता चलता है कि महाविकास आघाडी सरकार ने केंद्र के कृषि कानून को मूल स्वरूप में स्वीकार किया है लेकिन अलग दिखाने के लिए इसमें थोडा बहुत बदलाव किया है। इतने दिनों तक केंद्र के कानून का विरोध करनेवाली शिवसेना, कांग्रेस व राष्ट्रवादी कांग्रेस की सरकार ने कानून के मूल रूप को राज्य के लिए स्वीकार कर अपनी होशियारी दिखाने की कोशिश की है।

भाजपा नेता ने कहा कि जब केंद्र के कृषि कानून स्वीकार थे तो इतने दिनों तक राष्ट्रवादी कांग्रेस और कांग्रेस के नेताओं ने विरोध और किसानों के बीच भ्रम फैलाने का काम क्यों किया। उन्हें इसका खुलासा करना चाहिए। महाविकास आघाडी सरकार ने जो थोड़ा बहुत बदलाव प्रस्तावित किया है उनमें अनेक विसंगतियां हैं। इन कारणों से महाविकास आघाडी सरकार किसानों के हित के लिए केंद्र सरकार द्वारा लाए गए कृषि कानून को उसके मूल रूप में स्वीकार करे। ऐसी किसान मोर्चा की मांग है।

संशोधन में विरोधाभास
उन्होंने कहा कि, केंद्रीय कृषि कानूनों में राज्य सरकार ने जो बदलाव प्रस्तावित किया है, उनमें परस्पर विरोधी प्रावधान है। इसकी एक धारा में लिखा है कि समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम मूल्य पर अनाज की खरीदारी करने पर दंड दिया जायेगा तो दूसरी धारा में लिखा है दो वर्षों की खरीददारी का समझौता हो तो आपसी सहमति से मूल्य तय किये जा सकते हैं। अर्थात एमएसपी लागू नही होगा। किसानों से जालसाजी करने वाले व्यापारियों को जेल की सजा का प्रावधान किया गया है । लेकिन इसके लिए आपराधिक दंड संहिता का कौन सा कानून लागू होगा। इसे स्पष्ट नही किया गया है। व्यापारियों को प्राधिकरण कौन से अधिकार से दंड देगा यह भी स्पष्ट नही किया गया है।

राज्य के पूर्व कृषिमंत्री ने कहा कि राज्य के विधेयक में यह प्रावधान किया गया है कि केवल पंजीकृत लाइसेंस प्राप्त व्यापारी ही किसानों से अनाज की खरीददारी कर सकते हैं। इस तरह के प्रावधान करने का अर्थ है कृषि के संबंध में लाइसेंस परमिट राज लाकर किसानों को गिने चुने लाइसेंसधारी व्यापारियों की मर्जी पर छोड़ना। यह मुट्ठी भर दलालों को बाजार समिति के बाहर भी एकाधिकार रखने के लिए चतुराई से किया गया प्रावधान है। साथ ही लाइसेंस राज के कारण किसान उत्पादक संघ व स्वयं किसान भी अनाज की खरीदी बिक्री नही कर सकते हैं और केवल व्यापारियों का वर्चस्व कायम रहेगा। केंद्रीय कानून में गिने चुने बदलाव करते समय इस तरह के कुछ गलत प्रावधान राज्य के विधेयक में किये गए हैं जिसे वापस लिया जाना चाहिए।


 

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