दीयापीपर के आसपास घूम रहा टाइगर, सोन नदी के किनारे मिले पगमार्क

दीयापीपर के आसपास घूम रहा टाइगर, सोन नदी के किनारे मिले पगमार्क

Bhaskar Hindi
Update: 2019-04-21 16:21 GMT
दीयापीपर के आसपास घूम रहा टाइगर, सोन नदी के किनारे मिले पगमार्क

डिजिटल डेस्क,शहडोल। शहडोल वन सर्किल अंतर्गत सोन नदी वाले इलाकों में बाघों का मूवमेंट देखा गया है।  रविवार को सुबह भी एक टाइगर की लोकेशन सोन नदी के किनारे दीयापीपर में देखी गई है। नदी के पास ही टाइगर के पगमार्क भी मिले हैं। जिस इलाके में बाघ की लोकशन मिल रही है, वहां सोन नदी से रेत का उत्खनन भी होता है। यहां पर हर समय वाहन और लोग मौजूद रहते हैं। रेत के खदान बाघों के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं।

वन विभाग ने जारी किया सर्च अभियान
रविवार को सोन नदी के किनारे पीएफ 702 के पास टाइगर के पदचिन्ह मिले हैं। वन विभाग के मैदानी अमले ने इसकी सूचना वरिष्ठ अधिकारियों दी। इससे पहले भी कुंवरसेजा के पास टाइगर के पगमार्क मिले थे। बताया जा रहा है कि घुनघुटी, शहडोल और गोहपारू रेंज के जंगलों में लगातार टाइगर का मूवमेंट हो रहा है। सोन नदी के आसपास ही बाघ घूम रहे हैं। वन विभाग की टीम लगातार सर्च अभियान चला रही है। रात के समय और सुबह-सुबह सर्च अभियान चलाया जाता है, ताकि टाइगर की सही लोकेशन का पता चल सके। शहडोल रेंज और गोहपारू रेंज के कर्मचारी लगातार बाघों की लोकेशन ट्रेस कर रहे हैं।

पानी के आसपास सर्चिंग
वन विभाग की सर्चिंग पानी और बिजली लाइनों के आसपास होती है। नियमित रूप से गश्ती दल के सदस्य उन इलाकों में जाते हैं। पिछले एक-डेढ़ साल के भीतर शहडोल वन वृत्त में पांच से अधिक टाइगर का शिकार हो चुका है, इसलिए वन विभाग पूरी सतर्कता बरत रहा है। इस समय गर्मी पड़ रही है। जंगल के भीतर पानी के स्रोत नहीं होने के कारण वन्य प्राणी पानी की तालाश में नदियों की तरफ आते हैं। सोन नदी जंगल के बीच से होकर गुजरती है और घुनघुटी रेंज से लगी हुई है, इसलिए सोन नदी के आसपास गर्मी के दिनों में बाघों का मूवमेंट बढ़ जाता है। गश्त के लिए वन कर्मचारियों की विशेष ड्यूटी लगाई गई है। सर्किल इंचार्ज और बीटगार्ड सामूहिक रूप से नदी नालों की सीमाओं के आसपास गश्त करते हैं।

रेत की खदान बन सकती है खतरा
पिछले दिनों कुंवरसेजा के पास बाघ के पगमार्क मिले थे। कुंवरसेजा में ही सोन नदी पर रेत खदान की लीज मिली हुई है। वर्तमान में यहां पर दिन-रात रेत का उत्खनन किया जाता है। ऐसेे में यह खदान वन्य प्राणियों खासकर टाइगर के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। बाघ के शिकार से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। कुंवरसेजा रेत खदान से रोजाना लाखों रुपए की रेत निकलती है। यह खदान वन सीमा से लगा हुआ है। स्थिति यह है कि वाहन नदी की धार तक जाते हैं। नदी के बीचोंबीच वाहन खड़ा कर रेत का उत्खनन किया जाता है। यह एनजीटी के निर्देशों का अवहेलना तो है ही, गर्मी के दिनों में पानी की तलाश में यहां आने वाले वन्यप्राणियों के लिए भी खतरा है। वन विभाग के अधिकारी भी इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं।

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