धनवानों की पहली पसंद बना आदिवासियों का परम्परागत भोजन - नाश्ते से लेकर डिनर में बढ़ी डिमाण्ड
धनवानों की पहली पसंद बना आदिवासियों का परम्परागत भोजन - नाश्ते से लेकर डिनर में बढ़ी डिमाण्ड
डिजिटल डेस्क, उमरिया। कभी आदिवासी बाहुल्य उमरिया जिले की परंपरागत खेती रही कोदो कुटकी, मक्का, ज्वार आज विलुप्ति की कगार पर है। बात अलग है कि इन उत्पादों की डिमाण्ड लोगों के नाश्ते से लेकर डिनर तक में दिन-ब-दिन बढ़ रही है । स्वीट कार्न, कोदों कुटकी का चावल बांधवगढ़ जैसे अंतराष्ट्रीय पर्यटन स्थलों में लोगों की पहली पसंद बना हुआ है। जीवन की बढ़ती भागदौड़ में लोग अपने स्वास्थ्य को लेकर के काफी अवेयर हुए हैं। यही वजह है कि लोग अपने खान-पान पर खास ध्यान दे रहे हैं, जहां डेढ़ दशक पहले मोटा अनाज लोगों की खानपान से कमोबेश गायब हो गया था आज वह फिर लोगों की ब्रेकफास्ट से लेकर के डिनर तक का हिस्सा हो रहा है। हर वर्ग के लोग मोटे अनाज को अपना रहे हैं। यही वजह है कि डिमांड को देखते हुए कंपनियां भी मोटे अनाज को नए-नए अंदाज में ग्राहकों तक पहुंचा रही हैं। इसका असर है की किसान भी अच्छी कीमत पाने के चलते मोटा अनाज उगाने लगे हैं।
आकाशकोट से लेकर मानपुर, पाली व नौरोजाबाद में खेती
मोटे अनाज की प्रमुख फसल मक्का, जौ, बाजरा आते हैं। इनके अलावा कोदो कुदरी लघु प्रजाति की फसल है। आकाशकोर्ट क्षेत्र के 14 गांव में यह फसलें आज भी उतनी ही प्रसिद्ध हैं। इसी तरह जिले में बिरसिंहपुर पाली व नौरोजाबाद का क्षेत्र पहाड़ व नदी, नालों से अच्छादित क्षेत्र है। इसके अलावा कोल माइंस होने के कारण यहां किसान परंपरागत धान व गेहूं की अपेक्षा इन फसलों पर ज्यादा विश्वास दिखाता है। इसी तरह मानपुर के क्षेत्रों में बिजौरी, नेउसी, डोडका, मझखेता, समरकोइनी में भी इनकी खेती ज्यादा होती है। चूंकि इन्हें तैयार होने के लिए कम पानी की आवश्यकता होती है। साथ ही पहाड़ क्षेत्रों की मिट्टी व पर्यावरण इनके अनुकूल माना जाता है।
क्या कहते हैं किसान
किसान फसल उगाए लेकिन बाजार में दाम व बिक्री की व्यवस्था में सुधार हो। ताकि किसानों को बिचौलिए से बचाकर सही दाम मिले।
डोमारी राठौर, किसान
ये फसलें कभी हमारी परंपरिक खेती हुआ करती थीं। आज भी इनकी उत्पादकता में कमी नहीं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्र के पहाड़ व जंगली इलाकों में बढ़ता अतिक्रमण खेतिहर भूमि को नष्ट कर रहा है। ऊपर से सुरक्षा के लिए भी अनुदान की व्यवस्था की जाए।
राम जियावन राय, किसान
अपने यहां मोटे अनाज की फसल बहुतायात में नहीं होती। किसान सालभर थोड़ा-थोड़ा कर इन्हें बाजार में लाता है। यही कारण है कि बड़ी कंपनियों का रूझान जिले की तरफ कम रहता है। इस समय में बाजार में रमतिला 4041 क्विंटल, मक्का 1400-1500, चना 3700, कोदो 1900, कुटकी 2350 रुपए क्विंटल के भाव से ली जा रही है।
-घनश्याम खट्टर, व्यापारी उमरिया
इनका कहना है
मोटे अनाज में फाइबर की मात्रा अन्य की तुलना में ज्यादा होती है। इसलिए यह डायबिटीज में रोगियों के लिए असरकारक माना जाता है। इसके अलावा इन फसलों में प्रोटीन की मात्रा अच्छी होने से पाचक के रूप में भी उपयोग होता है। अब तो मक्के से स्वीटकार्न भी लोगों को खूब पसंद आ रहे हैं। -केवी सहारे, डॉक्टर