एक करोड़ रू. लागत वाले वनोपज प्रसंस्करण यूनिट पर लगा ताला

एक करोड़ रू. लागत वाले वनोपज प्रसंस्करण यूनिट पर लगा ताला

Bhaskar Hindi
Update: 2019-02-19 08:01 GMT
एक करोड़ रू. लागत वाले वनोपज प्रसंस्करण यूनिट पर लगा ताला

डिजिटल डेस्क ,कटनी। विलुप्त होती वनौषधियोंं, जड़ी-बूटियों को बचाने एवं खोज के लिए खोली गई प्रदेश की पहली यूनिट साल भर भी नहीं चल सकी। बजट की कमी के चलते एक साल के भीतर इसमें ताला लग गया। भारत सरकार के आयुष विभाग की वित्तीय मदद से भवन एवं मशीनरी की स्थापना में एक करोड़ रुपये खर्च किए गए। 20 लाख रुपये की लागत से भवन का निर्माण किया गया और मशीनरी में 80 लाख रुपये व्यय किए गए। अब भवन खंडहर हो रहा है और मशीनरी में जंग लग रही है। वनौषधियों के संरक्षण के लिए  कटनी में प्रदेश की पहली यूनिट की स्थापना की थी। इसके लिए आयुर्वेद विभाग के एक वरिष्ठ  चिकित्सक की सेवाएं ली गईं। शुरूआती दौर में इस यूनिट  को काफी रिस्पांस मिला लेकिन जब यह यूनिट सफलता के सोपान रचने की स्थिति में पहुंची केन्द्र और राज्य सरकार दोनों ने हाथ खींच लिए।
डिमांड बढ़ते ही फंडिंग बंद
बताया जाता है कि इस यूनिट में वनौषधियों की ग्रेडिंग की जाती थी। इसका भी प्रशिक्षण वनोपज संघ सदस्यों को दिया जाता था। वनौषधियों की डिमांड बढ़ते ही केन्द्र  रकार ने वित्तीय सहायता बंद कर दी। आयुर्वेद विभाग से मिली जानकारी के आयुर्वेदिक दवा निर्माता कंपनियों में यहां की वनोपज की सप्लाई भी शुरू हो गई थी और कई कंपनियों से आर्डर मिलने शुरू हो गए थे। यहां से प्रसंस्कृत जड़ी-बूटियों की सप्लाई भोपाल के समीप बडख़ेरा पठानी अनुसंधान केन्द्र में भी होती थी।
50 से अधिक औषधियां चिन्हित
यूनिट की स्थापना के पहले कटनी जिले में 50 अधिक ऐसी वनोषधियों चिन्हित की गई थीं जो विलुप्त हो रही थीं। इन वनौषधियों की पहचान के लिए लघु वनोपज संघ के सदस्यों को प्रशिक्षण दिया गया। वन विभाग के डीएफओ कार्यालय परिसर में औषधि एवं प्रसंस्करण केन्द्र की स्थापना की गई।  साथ ही वन विभाग की नर्सरी झिरिया एवं राजा सलैया में औषधियों के पौधे भी रोपित किए गए। ताकि आगे वनौषधियों को विलुप्त होने से बचाया जा सके और आवश्यकता के अनुसार भविष्य में उनकी पूर्ति भी होती रहे। बताया जाता है कि लोगों को वनौषधियों की पहचान के लिए दोनों नर्सरियों में लगभग 70 प्रजातियों के पौधे रोपे गए थे। विदारा, अश्वगंधा, सफेद मूसली, चिरायता, हरड़, बहेड़ा, आंवला, वन जीरा, मुलेठी, पुनर्नवा, भूमि आंवला, निगुंडी, सतावर, घृतकुमारी,  सहित 50 से अधिक वनौषधियों चिन्हित की गई थीं।
इनका कहना है
केन्द्र सरकार के आयुष विभाग की सहायता से वन विभाग  कार्यालय परिसर में औषधि संग्रहण एवं प्रसंस्करण केन्द्र खोला गया था। इसमें सेवा देने का अवसर प्राप्त हुआ था। यह काफी सफल यूनिट थी। लघु वनोपज संघ द्वारा संचालित यह यूनिट बजट के अभाव में बंद हो गई।
डॉ.आर.के.सिंह आयुष विभाग

 

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