फीडिंग कार्नर को तोड़कर बना दिया टॉयलेट, बस स्टैंड के स्टॉफ कार्यालय में बच्चे को फीडिंग करवा रहीं महिलाएं

फीडिंग कार्नर को तोड़कर बना दिया टॉयलेट, बस स्टैंड के स्टॉफ कार्यालय में बच्चे को फीडिंग करवा रहीं महिलाएं

Anita Peddulwar
Update: 2018-08-02 06:53 GMT
फीडिंग कार्नर को तोड़कर बना दिया टॉयलेट, बस स्टैंड के स्टॉफ कार्यालय में बच्चे को फीडिंग करवा रहीं महिलाएं

डिजिटल डेस्क, नागपुर। प्रत्येक वर्ष 1 से 7 अगस्त के दौरान विश्व स्तनपान सप्ताह मनाया जाता है। इसके मद्देनजर हमने नागपुर के मुख्य बस स्थानक का जायजा लिया तो चौंकाने वाली अनेक जानकारियां उजागर हुई। बीते 3 माह से यहां कोई फीडिंग कार्नर (स्तनपान कक्ष) उपलब्ध नहीं है। जो पूर्व में  फीडिंग कार्नर जिसे ‘हिरकणी कक्ष’ कहा जाता है उसे तोड़कर अब टॉयलेट बनाया जा चुका है। यदि कोई स्तनदा माता अपने रोते-बिलखते बच्चे को लेकर बस स्थानक प्रबंधन के कर्मचारियों तक पहुंचती है, तो उसे साहब (बस स्टैंड इंचार्ज) के कांच से बने कक्ष में भेजा जाता है। वहां महिला कर्मचारी की गैर-मौजूदगी में ही बच्चे को फीडिंग  कराना पड़ता है। शर्मिंदगी भरा यह दृश्य हर दिन बस स्थानक के नियंत्रण कक्ष से सटे गेस्ट रूम में देखा जा सकता है। बस स्टैंड के अधिकारियों के अमानवीय व्यवहार से प्रताड़ित होने वाली माताएं चुप्पी साधकर गंतव्य के लिए लौट जाती हैं। 

वर्ष 2013 की योजना चौपट
राज्य सरकार ने माताओं द्वारा शिशुओं को स्तनपान कराने में आ रही दिक्कतों को देखते हुए वर्ष 2013 के 1 जून से महाराष्ट्र के सभी बस डिपो में 80 वर्ग फीट का एक पृथक कक्ष बनाने का आदेश दिया था। इसे ही ‘हिरकणी कक्ष’ का नाम दिया गया था। इसमें उचित बैठक, सफाई, फैन, प्रकाश, पेयजल आदि सुविधाएं उपलब्ध कराने के निर्देश थे। एकांत में बिना किसी शर्मिंदगी के बच्चों को स्तनपान कराने का उद्देश्य था। राज्य के हर बस स्टैंड में यह कक्ष तो बनाए गए, किंतु इनमें से अधिकतर को ताला जड़े होने की खबरें आती हैं। संबंधित प्रशासन ने इन माताओं की दिक्कतों को अब तक गंभीरता से नहीं लिया है।

तीन माह से हो रही उपेक्षा
स्तनदा माताओं को नागपुर बस स्थानक पर दिवाली के पूर्व तक हिरकणी कक्ष उपलब्ध नहीं हो पाएगा। बस स्टैंड प्रशासन के आला अफसरों की मानें तो यहां निर्माण कार्य बीते 3 माह से चल रहा है। 10 करोड़ की लागत से सुधार कार्य जारी है। इस बस स्टैंड के पुलिस नियंत्रण कक्ष एवं हिरकणी कक्ष को ध्वस्त किया जा चुका है। यहां अब नया टॉयलेट रूम निर्माण हो रहा है। इसके चलते आगामी दिवाली तक बस स्टैंड के भीड़भाड़ में ही माताओं को अपने शिशुओं को स्तनपान कराना होगा। इससे उन्हें शर्मिंदगी का सामना करना होगा।

दिवाली तक बना देंगे कक्ष
नागपुर बस स्टैंड का निर्माण व सुधार कार्य तेज गति से किया जा रहा है। 3 माह पूर्व से कार्य चल रहा है। दिवाली तक निर्माण पूर्ण किया जाएगा। हिरकणी कक्ष भी बनाया जाएगा। सुधार कार्य के कारण अभी स्तनपान की सुविधा उपलब्ध नहीं है।
अशोक वरठे, विभागीय नियंत्रक, मराविम

हिरकणी कक्ष नहीं
फिलहाल स्तनपान के लिए हिरकणी कक्ष उपलब्ध नहीं है। यदि कोई महिला अपने शिशु के साथ आती है तो नियंत्रण कक्ष के बाजू वाले गेस्ट रूम का उपयोग करने दिया जाता है। बहरहाल इस गेस्ट रूम को बस स्टैंड इंचार्ज व 2 टिकट चेकर का कार्य स्थल बनाया गया है।
आर.जी. वंजारी, यातायात निरीक्षक, बस स्टैंड, नागपुर

जानें, कौन थी हिरकणी और छत्रपति शिवाजी महाराज ने क्यों किया था उसका सम्मान
छत्रपति शिवाजी महाराज ने जिस महिला के हौसले से प्रभावित होकर सम्मान किया था, उसका नाम था हिरकणी। उसकी कहानी जितनी रोचक है, उतनी ही प्रेरणादायक भी। इसलिए राज्य सरकार ने वर्ष 2013 में न केवल स्तनदा माताओं की सुविधा के लिए हिरकणी कक्ष की शुरुआत की, बल्कि एसटी के सेमी लक्जरी बसों को भी हिरकणी बस का नाम दे रखा है। हिरकणी की कहानी जानने से पहले छत्रपति शिवाजी महाराज की राजधानी रायगढ़ किले को जानना जरूरी है, क्योंकि सहयाद्री की पर्वत मालाओं के बीच वर्ष 1674 के पूर्व रायगढ़ किले का निर्माण सुरक्षा के लिहाज अत्यंत उम्दा ढंग से किया गया था।

2700 फीट ऊंची दीवारों के पार जाने के लिए केवल दरवाजा ही एकमात्र पर्याय था। हवा-पानी के अलावा कोई अपनी मर्जी से प्रवेश नहीं कर सकता था, लेकिन इस ‘मिथक’ को ध्वस्त किया हिरकणी ने। रायगढ़ के नीचे कुछ दूरी पर वाकुसरे गांव था। इस गांव में अपने परिवार के साथ हीरा नामक स्तनदा माता रहती थी। वह रोज अपने शिशु को छोड़कर रायगढ़ किले पर दूध बेचने जाया करती थी। एक दिन उसे देर हो गई। शाम ढलते ही किले का द्वार बंद हो गया। विनती करने पर भी सैनिकों ने  दरवाजा नहीं खोला। रात भर शिशु के रोने की कल्पना ने उसे झकझोर दिया। किले के एक कोने पर पहुंचकर बड़े साहस से झाड़ियों का सहारा लेते हुए वह नीचे उतर गई। लहूलुहान अवस्था में घर पहुंचकर उसने अपने शिशु को स्तनपान कराया। गांव में यह घटना चर्चा का विषय बनी तो छत्रपति शिवाजी महाराज ने उसका आत्मीयता से सम्मान किया था।

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