चुनावी याचिकाओं के निपटारे में बीत जाते हैं सालों-साल, अदालतों में लग जाता है ढेर 

चुनावी याचिकाओं के निपटारे में बीत जाते हैं सालों-साल, अदालतों में लग जाता है ढेर 

Anita Peddulwar
Update: 2019-11-02 13:10 GMT
चुनावी याचिकाओं के निपटारे में बीत जाते हैं सालों-साल, अदालतों में लग जाता है ढेर 

डिजिटल डेस्क, मुंबई। चुनाव बीतने के बाद उम्मीदवारों के पास चुनावी गड़बड़ी अथवा उम्मीदवार की पात्रता को चुनावी याचिका  के रूप में चुनौती देने का विकल्प होता है। नियमानुसार ऐसी याचिकाओं के निपटारे के लिए 6 महीने के समय का प्रावधान किया गया है, पर इन याचिकाओं के निपटारे में इतना समय लग जाता है कि तब तक दूसरा चुनाव सामने आ जाता है।

हाईकोर्ट प्रशासन से सूचना के अधिकार के तहत उपलब्ध कराई गई जानकारी के मुताबिक नौ चुनावी याचिकाएं ऐसी है, जिनका निपटारा पांच साल में हुआ है, जबकि 12 चुनावी याचिकाएं ऐसी है जिनके निपटारे में चार साल का वक्त लग गया।

लोकसभा, विधानसभा व स्थानीय निकायों चुनाव के बाद विभिन्न कारणों को आधार बनाकर चुनावी याचिकाएं दायर की जाती है। जिसमें से कई बार विजयी उम्मीदवार द्वारा चुनाव को लेकर दायर किए गए हलफनामे में आपराधिक मामले की जानकारी छुपाने, संपत्ति के विषय में गलत जानकारी देने व मतगणना के दौरान ईवीएम मशीन में गड़बड़ी जैसी कई आपत्तियों को आधार बनाकर हारे हुए उम्मीदवारों की ओर से चुनावी याचिकाएं दायर की जाती हैं। हाईकोर्ट के वरिष्ठ न्यायमूर्ति के सामने चुनावी याचिकाओं पर सुनवाई होती है जो दोनों पक्षों को सुनने व प्रकरण से जुड़े सबूतों पर गौर करने के बाद अपना फैसला सुनाते हैं। 

6 माह में होना चाहिए निपटारा
जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा 8(7) के तहत 6 महीने के भीतर चुनावी याचिका का निपटारा किया जाना चाहिए पर वास्तिवक रुप में यह संभव नहीं हो पाता है। जनवरी 2001 से अब तक हाईकोर्ट में कुल 111 चुनावी याचिकाएं दायर की गई। इसमे से 35 याचिकाओं का निपटारा एक साल के भीतर किया गया है। शेष याचिकाओं के निपटारे में दो से पांच साल का समय लगा है।

सुनवाई के दौरान उम्मीदवार की ओर से कई तरह के आवेदन दायर करना और न्यायमूर्ति पर दूसरे मामलों की सुनवाई की जिम्मेदारी होने के कारण उन्हें चुनावी याचिकाओं की सुनवाई के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाया।  इस वजह से चुनाव याचिकाओं के निपटारे में देरी होती है।

•    एक साल के भीतर 35 याचिकाओं का निपटारा
•    दो साल  के भीतर 18 याचिकाओं का निपटारा
•    तीन साल में हुआ नौ याचिकाओं का निपटारा
•    चार साल के भीतर 11 याचिकाओं का निपटारा
•    पांच साल में हो सका 12 याचिकाओं का निपटारा

वर्ष  लंबित याचिका  नई याचिका निपटाई गई याचिका  प्रलंबित याचिका
2012   19              8                  8                       19
2013   19              3                 10                       12
2014   12             29                  4                        37
2015   37              8                  17                      28
2016   28              3                  12                      19
2017   19              2                    3                     18
2018   18             0                     9                       9
2019    09           19                    6                        22

चुनावी याचिकाओं में देरी की सबसे बड़ी वजह हाईकोर्ट में न्यायाधीशों की कमी है। इन याचिकाओं की सुनवाई के लिए एक अलग कोर्ट व स्वतंत्र न्यायाधीश की नियुक्ति की जरुरत है। पर इसके लिए पर्याप्त संख्या में न्यायाधीश होना चाहिए। चुनावी याचिकाओं के निपटारे में देरी से इन याचिकाओं का उद्देश्य समाप्त हो जाता है। - एड. सुजय कांटावाला, हाईकोर्ट के अधिवक्ता

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