बालाघाट का चिन्नौर चावल शीघ्र ही दस्तक देगा दुनिया के बाजार में

Balaghat chinnor rice again in market for sale
बालाघाट का चिन्नौर चावल शीघ्र ही दस्तक देगा दुनिया के बाजार में
बालाघाट का चिन्नौर चावल शीघ्र ही दस्तक देगा दुनिया के बाजार में

डिजिटल डेस्क, बालाघाट। बालाघाट जिले की माटी में वारासिवनी तथा लालबर्रा ब्लॉक में चिन्नौर के नाम से कई शताब्दियों से उत्पादित होने वाले धान का उत्पादन लगभग दो दशक से किसानों ने कम फसल होने की वजह से बंद कर दिया था। अब बालाघाट जिले में कृषि महाविद्यालय आने के बाद चिन्नौर चावल को जीआई करार के अंतर्गत भारत सरकार से रजिस्टर्ड कराये जाने की प्रक्रिया प्रारंभ है। जिसके बाद अब बालाघाट में उत्पादित होने वाले चिन्नौर चांवल की सुगंध एवं स्वाद तथा मुलायमपन  शीघ्र ही दुनिया के बाजार में पहचान बना लेगा। इस संबंध में पूर्व में मुरझड़ फार्म जो वर्तमान में अब कृषि महाविद्यालय हो गया है ने भारत सरकार के सहयोग से इस प्रजाति के उत्पादन को बढ़ाने का प्रयास किया और चालू खरीफ वर्ष 2019 में 7 हजार एकड़ में चिन्नौर का चांवल उत्पादन करने का लक्ष्य रखा गया है । कृषि विभाग ने उक्त चांवल उत्पादन करने के लिये जिले के 6 ब्लॉक में 5000 किसानों को एक-एक एकड़ भूमि में चिन्नौर का उत्पादन करने के लिये नि:शुल्क बीज प्रदान करते हुए उत्पादन की तकनीक भी प्रदान की है।

19 क्विंटल तक फसल ली किसानों ने 

खरीफ वर्ष 2018 में जिले के कई किसानों ने मुरझड़ कृषि महाविद्यालय के वैज्ञानिकों की प्रेरणा से चिन्नौर धान अपने खेत में प्रायोगिक तौर पर लगाई थी। इस धान के उत्पादन की खास बात यह है कि इसकी गुणवत्ता फर्टेलाईजर के उपयोग करने से नहीं प्राप्त होती है। गोबर खाद से इस धान का उत्पादन पूर्व में किया जाता था और प्रति एकड़ 5 क्विंटल धान होने से किसानों ने हरित क्रांति के बाद अधिक उत्पादन वाली प्रजाति का उत्पादन करना प्रारंभ किया और चिन्नौर का उत्पादन समाप्त हो गया। दो ब्लॉक में चंद किसान लगभग 100 एकड़ में चिन्नौर का उत्पादन करते थे। परंतु अब वैज्ञानिकों की पहल से गत खरीफ फसल में किसानों ने जैविक खाद के माध्यम से 19 क्विंटल प्रति हेक्टेयर धान का उत्पादन किया इससे तैयार चंावल स्थानीय बाजार में औसतन 12हजार रूपए प्रति क्विंटल तक में बिक्री हुआ है।
 

सही मौसम रहा तो 70 हजार क्विंटल चांवल का होगा उत्पादन

खरीफ वर्ष 2019 में कृषि विभाग एवं मुरझड़ कृषि महाविद्यालय तथा शासन के प्रयास से लगभग 7 हजार एकड़ में चिन्नौर धान लगाई जा रही है। जिसमें 10 क्विंटल से लेकर 20 क्विटल तक का उत्पादन प्रति एकड़ में होना है। और जिसके चलते लगभग 70 हजार क्विंटल धान जिससे लगभग 50 हजार क्विंटल चिन्नौर चांवल एवं खंडा बाजार में उपलब्ध होगा। इसकी खेती के बाद धान उत्पादन करने वाले किसानों को बांसमती से भी अधिक लाभ होगा और यह केश क्रॉप के रूप में किसानों के लिये लाभदायक हो सकती है।

इनका कहना है

भारत सरकार के निर्देशन में हमारे द्वारा बालाघाट में चिन्नौर धान को जीआई करार शामिल कराया गया है। जिसके तहत बालाघाट में कृषि विभाग के साथ 5000 किसानों को बीज उपलब्ध कराया गया है। साथ ही उन्हें तकनीकी भी प्रदान की जा रही है। इसके अलावा इस कृषि महाविद्यालय में अनुसंधान हेतु धान की 621 प्रकार की प्रजातियों का प्रायोगिक परीक्षण करने हेतु मुरझड़ केंद्र में इसका रोपण किया गया है। बालाघाट में चिन्नौर के अलावा महानगरों में चलने वाले काले चांवल, ब्राउन चांवल एवं हरे चांवल की भी खेती कराई जा रही है और हाईब्रिड बांसमती भी यहां लगाया जा रहा है। उक्त कार्य कुलपति डॉ. प्रदीप बिसेन के मार्गदर्शन में किया जा रहा है।
डॉ. एन.के. बिसेन, अधिष्ठाता,  कृषि महाविद्यालय मुरझड़ फार्म
 

Created On :   29 July 2019 8:23 AM GMT

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