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करीब एक हजार करोड़ रुपए के भुगतान से बची पूर्व क्षेत्र कंपनी - वाणिज्यिक न्यायालय का फैसला
डिजिटल डेस्क जबलपुर । इन्दौर की एक विज्ञापन एजेन्सी को करीब एक हजार करोड़ रुपए का भुगतान करने से मप्र विद्युत मण्डल की पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी बच गई है। जबलपुर की वाणिज्यिक न्यायालय ने कंपनी की ओर से दायर मामले पर फैसला देकर कहा है कि जब ठेका ही अवैध घोषित हो गया था, तब उसके पक्ष में मध्यस्थ द्वारा पारित अवार्ड भी लोकनीति के खिलाफ है। इस मत के साथ विशेष न्यायाधीश संजय कुमार शाही ने मध्यस्थ द्वारा ९ जून २०१० को पारित आदेश खारिज कर दिया। ठेका हुआ था रद्द पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी के एमडी की ओर से वर्ष २०१० में दायर इस मामले में कहा गया था कि तत्कालीन मप्रविमं इन्दौर और मे. शुभम एजेन्सीज प्रा. लि. इन्दौर के बीच १४ अक्टूबर १९९३ को विद्युत मण्डल के बिजली के खम्भों पर विज्ञापन के बोर्ड लगाने का अनुबंध हुआ था। इसके मुताबिक एजेन्सी को विज्ञापन लगाने के बाद हर साल विद्युत मण्डल को २० लाख रुपए देना थे। ठेका तीन साल के लिए एजेन्सी को दिया गया था। एजेन्सी द्वारा ८ माह काम किया गया और इसी बीच एक जनहित याचिका हाईकोर्ट में दायर करके ठेका आवंटन को चुनौती दी गई। हाईकोर्ट ने प्रारंभिक सुनवाई के बाद पहले ठेका के आवंटन को स्टे किया और फिर अंतिम सुनवाई के बाद ठेका रद्द कर दिया। साथ ही विद्युत मण्डल को यह स्वतंत्रता दी गई कि वो चाहे तो विज्ञापन लगाने का ठेका आवंटित करने टेण्डर जारी करे। इस फैसले के बाद एजेन्सी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि उसके द्वारा विद्युत मण्डल के पास जमा की गई अरनेस्ट मनी और सिक्योरिटी डिपॉजिट वापस दिलाई जाए। हाईकोर्ट ने एजेन्सी को कहा था कि इस मुद्दे पर वह विद्युत मण्डल को आवेदन दे। हाईकोर्ट के आदेश पर आवेदन देने के बाद भी कोई कार्रवाई न होने पर एक मामला एजेन्सी ने मध्यस्थ की नियुक्ति के लिए हाईकोर्ट में दायर किया। इस पर रिटायर्ड जज पीडी मुले की नियुक्ति की गई और उन्होंने पूरे प्रदेश में लगे बिजली के खम्भों की गिनती के आधार पर ९ जून २०१० को एजेन्सी के पक्ष में अवार्ड पारित कर दिया। मध्यस्थ के मुताबिक वर्ष २०१० में एजेन्सी ब्याज सहित ४२६ करोड़ रूपए की राशि पाने की हकदार थी। मध्यस्थ द्वारा दिए गए फैसले को चुनौती देकर यह मामला जिला अदालत में दायर किया गया था।
मध्यस्थ का आदेश एक तरह से बेतुका
मामले पर हुई सुनवाई के दौरान विद्युत वितरण कंपनी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नमन नागरथ और अधिवक्ता जुबिन प्रसाद ने दलीलें रखीं। उनकी दलील थी कि मध्यस्थ का आदेश एक तरह से बेतुका है। ऐसा इसलिए, क्योंकि जब हाईकोर्ट पूर्व में ठेके को ही अवैध ठहरा चुकी है तो एजेन्सी को किसी भी तरह के भुगतान का दायित्व विद्युत वितरण कंपनी का नहीं रह जाता। श्री नागरथ के अनुसार मध्यस्थ द्वारा पारित अवार्ड की राशि अब बढ़कर करीब एक हजार करोड़ रुपये पहुंच गई है। सुनवाई के बाद विशेष न्यायाधीश ने अपना फैसला देते हुए मध्यस्थ के आदेश को लोकनीति के खिलाफ और एजेन्सी के एकतरफा पक्ष में पाते हुए खारिज कर दिया।
Created On :   31 Oct 2019 1:35 PM IST