महाराष्ट्र के यवतमाल में 25 से अधिक विदेशी पक्षियों ने डाला डेरा

panchhi nadiyan pawan ke jhonke, koi sarhad na inhe roke
महाराष्ट्र के यवतमाल में 25 से अधिक विदेशी पक्षियों ने डाला डेरा
महाराष्ट्र के यवतमाल में 25 से अधिक विदेशी पक्षियों ने डाला डेरा

डिजिटल डेस्क, यवतमाल। पंछी, नदियां, पवन के झोंके, कोई सरहद न इन्हें रोकें। एक प्रख्यात फिल्म का यह गाना दर्शाता है कि पंछियों, जल और हवा को किसी भी सरहद को पार करने के लिए अनुमति की आवश्यकता नहीं होती। ऐसा ही कुछ यवतमाल जिले के टिपेश्वर अभयारण्य से लेकर जिले के विभिन्न जंगलों में देखा जा सकता है, जहां देशी-विदेशी पंछियों के भी दर्शन होते हैं।

टिपेश्वर समेत जिले के अनेक जंगल विविध प्रजाति, आकार-प्रकार, रंगों और प्रकृति से मेल खाने वाले पंछियों की खोज एवं संशोधन के लिए वनविभाग और वन्यजीव प्रेमियों को आकर्षित करता रहा है। ऐसे में जिला मुख्यालय से लगभग 80 किमी दूर बसा टिपेश्वर अभ्यारण हो या दुर्गम पहाड़ी इलाकों के जंगल, यहां पर अलग-अलग प्रजातियों के पंछियों की भरमार है। किसी भी क्षेत्र के विकास के लिए वहां का पर्यावरण, पर्यटन और जंगल, खनिज संपदा का आकलन कर उसके विकास का खाका खींचा जाता है। यवतमाल जैसा दुर्गम, पिछड़ा तथा आदिवासी बहुल जिला खनिज, प्राकृतिक, वन्यप्राणियों  से भरा है।

जंगलों में 25 से अधिक प्रकार के विदेशी पक्षी

सरकारी स्तर पर लिए गए जायजे और जानकारी के अनुसार जिले में जंगलों में लगभग 25 से अधिक प्रकार के विदेशी प्रजातियों के पंछियों के साथ-साथ देशी किस्म की 80 से अधिक पंछियों का बसेरा होता है। जिले के पक्षीप्रेमी जयंत अत्रे ने कुछ बरस पूर्व रंगीबिरंगे पंछियों का सर्वे किया। इसमें पाया गया कि देशी पंछियों के साथ बड़े पैमाने पर विदेशी पंछियों का जिले में संचार होता है। यहां मोर के साथ प्रख्यात दयाल पक्षी, जिसे अंगरेजी भाषा में ओरिएंटल मैगपी रॉबीन के नाम से जाना जाता है। बड़े पैमाने पर है। इसका विचरण टिपेश्वर से लेकर सहस्त्रकुंड, मालपठार के इलाकों तथा जंगलों में होता है।

चश्मेवाला पक्षी

इसके अलावा गानकोकिला कोयल, नारंगी रंग के भुकस्तुरिका (ऑरेंज हेडेड राउंत हर्श) के अलावा नीलकंठ, भोर, रक्त पार्थ बुलबुल, कौवे के प्रकार का भारद्वाज पक्षी, पानतोता (वेडा राघु),  घुब्बड  (कॉमन बोर्न आउल) पाया गया, जिसे स्थानीय भाषा में कोठी का घुब्बड नाम दिया गया। इसका वैज्ञानिक नाम टायटो अल्बा स्टे्रटेन्स (हरर्टेट) होता है। इसके अलावा चिड़िया की तरह अंग्रेजी चेस्टनट शोल्डर्ड प्रेटोनिया येलो थ्रोटेड स्पारो नाम की जंगली चिड़िया, इंडियन ओरिएंटल वाइट आई नाम के चश्मेवाला पक्षी, क्रेस्टेड बंटिंग युवराज पक्षी, इंडियन ओरिएंटल गोल्डन ओरिओल नाम से जाने वाला हल्दी जैसा पीने रंग का हरिद्रा, ऐशे प्रेनिया नामक छोटा राखी पंछी, स्पॉट बिल्ड डक यानी तिरंगी चोंच का घनवर बदक पाया जाता है।

इंडियन हाउस क्रो

यह पक्षी पानी में रहता है, जो सफेद, कत्थे, हरे, तथा पीले और काले रंग की चोंच के कारण आकर्षक लगता है। इसके अलावा इंडियन हाउस क्रो, कौवे, गौरैया, कोयल, सफेद बगुला, तांबट, ब्राउन श्रीक यानी तपकीरी खाटिक, एशियन ब्राउन फ्लायकैचर अर्थात तपकिरी लिटकुरी, लार्ज ग्रे बबलर, जिसे स्थानीय भाषा में 7 भाई अथवा 7 बहन वाला पक्षी कहा जाता है। इस श्रेणी के पक्षियों की मां को सात बच्चे होते हैं। इस कारण इसे यह नाम दिया गया। इसके अलावा साउदर्न स्पोटेड आवलेट अर्थात सफेद भूरा घुबड बडे़ पैमाने पर पाया जाता है।

राष्ट्रीय पक्षी मोर की बात ही निराली है। जिले के कमोबेश हर जंगल में राष्ट्रीय पक्षी मोर पाया जाता है। हालांकि इनकी संख्या दिनों दिन कम हो रही है, जो चिंता का विषय है। इसके संरक्षण के लिए वनविभाग द्वारा भले ही आवश्यक उपाययोजनाएं का दावा किया जाता हो, लेकिन मोर का शिकार करने पर रोकथाम से लेकर उनके संरक्षण के लिए विशेष उपाय योजनाएं नहीं दिखाई देती। जिले में वर्ष 1997 तथा इसके बाद विभिन्न वर्षों में हुए वनविभाग तथा सरकारी सर्वे के अनुसार जिले में राष्ट्रीय पक्षी मोर की संख्या प्रतिवर्ष कम हुई है। जिले में 1997 में जंगलों में हुई गिनती में 400 मोर पाए गए थे, लेकिन इसके बाद के वर्षों में हुई गणना में इनकी संख्या लगातार कम होती गई। जिले में वर्ष 2016 तक सरकारी स्तर पर अनुमानित आंकड़ों के अनुसार 125 से भी कम मोर हैं, हालांकि अधिकृत तौर पर इसकी पृष्टि करने में वनविभाग प्रशसन अब भी असमर्थ है।

Created On :   25 Aug 2017 5:49 PM IST

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