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Pune News: बुझ गया तेजस्वी तारा, 86 साल की उम्र में खगोलशास्त्री डॉ. जयंत नारलीकर का निधन

- आकाश का तेजस्वी तारा बुझ गया
- खगोलशास्त्री डॉ. जयंत नारलीकर का निधन
Pune News. देश के मशहूर खगोलशास्त्री व लेखक पद्मभूषण, पद्मविभूषण, महाराष्ट्र भूषण डॉ. जयंत नारलीकर का मंगलवार को निधन हो गया। 86 वर्ष की उम्र में पुणे स्थित अपने निवास पर उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके जाने से आकाश का तेजस्वी तारा बुझ गया। ब्रह्मांड की उत्पत्ति से संबंधित बिगबैंग थियरी को जयंत नारलीकर ने नकार दिया था। उनका कहना था कि शुरुआत और अंत के बिना विश्व स्थिर एवं विस्तारित होता है। नारलीकर की मौत पर महाराष्ट्र ही नहीं बल्कि पूरे देश के शोक है। जयंत नारलीकर को शुरू से खगोलशास्त्र में रुचि थी। उन्होंने खगोलशास्त्र पर अनेक रोचक किताबें भी लिखीं, जिनमें 'अंतरालातील भस्मासुर', 'अंतरालातील स्फोट', 'अभयारण्य', 'चला जाऊ अवकाश सफरीला', 'टाइम मशीनची किमया' आदि प्रमुख रोचक किताबें थीं। पिछले अनेक वर्षों से वे खगोलशास्त्र में संशोधन का काम कर रहे थे। मूल रूप से वे कोल्हापुर के निवासी थी। उनके पिता विष्णु नारलीकर उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित हिंदू विश्वविद्यालय में गणित शाखा के प्रमुख थे। उनकी मां मंगला भी गणित विशेषज्ञ थी।
आम लोगों में विज्ञान के प्रति प्रेम जगाया
केंद्रीय नागरिक उड्डयन राज्यमंत्री मुरलीधर मोहोल ने कहा कि डॉ. जयंत नारलीकर ने अपने शोध, लेखन और विज्ञान प्रसार कार्य के जरिए विज्ञान को आम जनता तक पहुंचाया। ब्रह्मांड के स्थिर अवस्था सिद्धांत और 'हॉयल-नारलीकर सिद्धांत' पर उनका शोध उनके वैज्ञानिक योगदान का अहम हिस्सा है। महापौर के रूप में कार्य करते समय, मेरी मुलाकात डॉ. नारलीकर से हुई थी। यद्यपि उनका शरीर थका हुआ था, फिर भी उनका उत्साह मेरे जैसे व्यक्ति के लिए अनुकरणीय था। शोधकर्ता के रूप में उनका कद न केवल उत्कृष्ट था, बल्कि उनकी मानवीयता भी दिल को छूने वाली थी। आम लोगों में विज्ञान के प्रति प्रेम जागृत करने में डॉ. नारलीकर के लेखन ने प्रमुख भूमिका निभाई। उन्होंने 'आयुका' की स्थापना कर भारत में खगोल विज्ञान अनुसंधान को नई दिशा दी। डॉ. नारलीकर की मृत्यु से विज्ञान की दुनिया में बहुत बड़ा शून्यता छा गई है।
चंद्रकांत पाटिल, उच्च एवं तकनिकी शिक्षा मंत्री के कहा नारलीकर को विज्ञान में ज्ञान का वृक्ष कहा जा सकता है। खगोल विज्ञान में उनकी श्रेष्ठता और वरिष्ठता विश्व प्रसिद्ध है। उन्होंने मराठी विज्ञान कहानियां स्पष्ट भाषा में लिखीं, जिससे विज्ञान जैसा कठिन विषय भी समझने मदद मिली। उनकी मृत्यु से ज्ञान का वृक्ष गिर गया। यह न केवल महाराष्ट्र के लिए बल्कि देश के लिए भी बड़ी क्षति है।
Created On :   20 May 2025 9:18 PM IST