जानें क्या है पितृदोष: इन सरल उपायों से करें दोष का निवारण  

Know what is Pitra Dosha: Troubleshoot with these simple steps
जानें क्या है पितृदोष: इन सरल उपायों से करें दोष का निवारण  
जानें क्या है पितृदोष: इन सरल उपायों से करें दोष का निवारण  

डिजिटल डेस्क। कई बार परेशानियों से घिरा व्यक्ति अपनी समस्याओं को लेकर ज्योतिषी के पास जाता है। ऐसे में अधिकांश ज्योतिषी उसे इन परेशानियों का कारण कुंडली में पितृदोष होना बताते हैं। जिसके बाद व्यक्ति यकीन कर लेता है कि, उसके हर दुख का कारण केवल पितृदोष ही है। साथ ही वह पितृदोष दूर करने के लिए अपने सामर्थ्य अनुसार प्रयत्न करना है। 

वहीं पंडित सुदर्शन शर्मा शास्त्री बताते हैं कि आज कल पितृदोष का डर पैदा कर दिया है। जिसके बारे में लोग बिना जाने ही इस समस्या को दूर करने के लिए हजारों रुपए खर्च कर देते हैं और इस सब के बावजूद समस्या जस की तस बनी रहती है। इसका कारण यह कि कई बार कुंडली में पितृदोष होता नहीं है, फिर भी उसकी शांति करा दी जाती है। इसलिए ये जानना जरूरी है कि कुंडली में पितृदोष है भी या नहीं...

ऐसे बना  पितृदोष
दरअसल पितृदोष शब्द पितृ से बना है, (सरल शब्दों में पिता, पितामह, आदि अपने कुल के पूर्वजों को, जो आज इस दुनिया में नहीं हैं उन्हें पितृ करते हैं) ये पितृ देवता अपने की देखरेख और सुख समृध्दि के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहते हैं। उनके किए गए पुराने पुण्य तथा पाप आज उनकी पीढ़ी को प्राप्त होते हैं।

मुख्य तौर पर पितृदोष के तीन कारण होते हैं:  
   1- पूर्वजों द्वारा किए गए पाप जातक की कुंडली में पितृदोष बनकर आते हैं, साथ ही 
   2- पीढ़ियों में कई बार अकाल मुत्यु भी होती है जिनके कारण जीव आत्मा विभिन्न योगियों में चक्कर काटकर पुनः अपने ही परिवार में जन्म लेना चाहता है अथवा चाहती है कि उसकी वर्तमान पीढ़ी उसे सद्गति प्रदान करे।
  3- पितृदोष का तीसरा कारण पिंडोदक की क्रिया लुप्त होना भी बतलाया है, पिंडोदक क्रिया का अर्थ है, श्राध्द में जो पिंडदान किया जाता है या जो ब्राम्हण भोजन कराया जाता है। वह है पिंड क्रिया और जो जलांजलि तर्पण में दी जाती है, उसे उदक क्रिया कहते हैं। दोनों को जोड़ने से पिंडोदक क्रिया ये शब्द बना। इसे ही श्राध्द तपर्ण भी कहते हैं।

तर्पण तथा पिंडदान
श्रीमद् भगवत गीता के प्रथम अध्याय में अर्जुन कहते हैं कि वर्णसंकर संताने न तो धर्म का आचरण कर देवताओं को प्रसन्न करती हैं, न ही जल से तर्पण तथा पिंडदान आदि से पितृों को तृप्त करते हैं जिससे संपूर्ण कुल नरक में जाता है। उनके पितृ गण अधोगति को प्राप्त हो जाते हैं।

पितृ गण को देवताओं की श्रेणी में रखा जाता है, क्योंकि पितृ प्रसन्न होने पर वंश वृध्दि, धन वैभव में वृध्दि करते हैं। पितृ गण की अधोगति श्राध्द तर्पण न मिलने पर होती है जिससे वे अप्रसन्न हो जाते हैं, जन्मकुंडली में पितृदोष 5 तत्थ्यों से जानते हैं।

1- गुरू की स्थिती: यदि राहू, शनि तथा मंगल के साथ युति कर रहा हो या इनसे पीड़ित हो अथवा बृहस्पति अस्त होकर सूर्य के साथ हो या फिर शनि की दृष्टि में गुरू हो अथवा राहू के साथ गुरू की युति हो रही हो तो पितृदोष होता है।
2- छठा भाव: राहू, केतु, शनि अथवा मंगल इनमें से कोई 2 ग्रह यदि छठे भाव में हों या उनकी दृष्टि छठे भाव में हो।
3- व्यय भाव अर्थात् द्वादश भाव: राहू केतु शनि अथवा मंगल इनमें से कोई 2 ग्रह यदि द्वादश भाव में हों या उनकी दृष्टि द्वादश भाव पर हो।
4- राहू की स्थिती: यदि राहू सूर्य से लेकर शनि तक किसी भी ग्रह के साथ छठे या द्वादश भाव पर युति कर रहा हो तो।
5- मंगल यदि अस्त हो अथवा अन्य क्रूर ग्रहों के साथ हो तो कुंडली में पितृदोष होता है।

पितृदोष दूर करने के सरल उपाय 
- वर्ष में एक बार श्राध्दपक्ष में जिस तिथी को आपके पूर्वजों का देहांत हुआ है उस तिथि को पितरों के निमित्त श्राध्द, तर्पण, ब्राम्हण भोजन, गाय, कुत्तों, कौवों को भोजन कराना चाहिए यदि तिथि ज्ञात न हो तो श्राध्दपक्ष की अमावस्या के दिन यह सभी कार्य करें। 
- जिस परिवार में अशांति, क्लेष, दुर्घटना बीमारी लगी रहती है। समृध्दि का अभाव हो उन्हें गुरूवार के दिन संघ्या समय पीपल के वृक्ष के नीचे दीपक लगाकर चीटियों को शक्कर आटा भुना हुआ अवश्य डालना चाहिए
फिर पीपल की परिक्रमा कर अपने पूर्व कर्मों के लिए क्षमा मांगकर अपने पितरों का ध्यान कर उनसे परिवार की समृध्दि में सहयोग की अपेक्षा करना चाहिए यह क्रम लगातार करना चाहिए।
- घर में ईशान कोण में पानी रखकर वहां संध्या के समय दीपक अवश्य लगाना चाहिए।
- प्रतिदिन भोजन की पहली रोटी गाय के लिए तथा अंतिम रोटी कुत्ते को अवश्य देनी चाहिए।
- वर्ष में कम से कम एक बार घर में रूद्राभिषेक अवश्य करना चाहिए।
- माह की प्रत्येक अमावस्या को सहपरिवार व्रत रखकर शिवजी का पूजन करें उस दिन बिना नमक का वत्र करें तथा रात्री में भोजन न करें।
- सूर्य ग्रहण अथवा चंद्र ग्रहण के समय भिखारियों को पुराने वस्त्र खाद्य सामृग्री तथा जानवरों को भोजन कराएं। 
- जिन्हें अपने कुलदेवता कुलदेवी का ज्ञान न हो उन्हें आदिगुरू दत्तात्रेय का पूजन कर गुरूवार का व्रत रख पूजन आदि करना चाहिए।
              
साभार: पं. सुदर्शन शर्मा शास्त्री, अकोला

Created On :   20 Sep 2019 10:05 AM GMT

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