पिंडदान नही यहां होता है शिवलिंग का दान, 250 साल पुरानी परंपरा

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पिंडदान नही यहां होता है शिवलिंग का दान, 250 साल पुरानी परंपरा
पिंडदान नही यहां होता है शिवलिंग का दान, 250 साल पुरानी परंपरा

 

डिजिटल डेस्क, वाराणसी। करीब 5 हजार स्क्वेयर में फैला यह मठ विशेष मान्यता के लिए जाता है। इसे जंगमवाड़ी मठ कहा जाता है। इसका अर्थ है शिव को जानने वाला। यह वाराणासी के सभी मठों में सबसे पुराना माना जाता  है। यहां वर्षों से एक विचित्र परंपरा चली जा रही है वह है यहां पर मौजूद शिवलिंगों की। यहां ढेरों शिवलिंग देखने मिलते हैं। इस स्थान पर अपने प्रिय की आत्मा की शांति के पिंडदान की जगह शिवलिंग दान दिए जाते हैं। 

 

शिव के चरणों में मिलता है स्थान
यह परंपरा पुरानी बतायी जाती है। यहां एक ही छत के नीचे आपको लाखों की संख्या में शिवलिंग देखने मिलेंगे। अकाल मृत्य का शिकार हुए लोगों की आत्मा की शांति के लिए यहां विशेष रूप से शिवलिंग का दान किया जाता है। कहा जाता है कि ऐसा करने से मृतक को शिव के चरणों में स्थान मिलता है। इसके अतिरिक्त अपने संग संबंधियों की आत्मा की शांति के लिए यहां लोग शिवलिंग दान करने आते हैं। 
 

पिंडदान के समान ही होता है मंत्रोच्चार
इस स्थान पर ठीक वैसे ही शिवलिंग स्थापित किया जाता है जैसे कि गया में पिंडदान मंत्रोच्चार के बीच होता है। साल भर में ही यहां हजारों शिवलिंग एकत्रित हो जाते हैं। पहले से स्थापित शिवलिंग को मठ में ही सुरक्षित रखा जाता है। शिवलिंग दान की ये परंपरा मुख्य रूप से वीरशैव संप्रदान की है। ये मठी भी दक्षिण भारतीयों का ही बताया जाता है। ये लोग यहां अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए शिवलिंग दान करने आते हैं। 

 

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ढाई साल से अनवरत जारी परंपरा

बताया जाता है कि करीब ढाई सौ साल पहले इस मठ में इस परंपरा का श्रीगणेश किया गया। जिसके बाद अब अनवरत यहां लोग हर साल शिवलिंग दान करने आते हैं। इस विशेषता की वजह से ये मठ लगभग दुनियाभर में फेमस भी हो चुका है। 

Created On :   2 Jan 2018 4:08 AM GMT

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