योगिनी एकादशी 2018: जानिए कब है योगिनी एकादशी, कैसे करें पूजा
डिजिटल डेस्क, भोपाल। आषाढ़ मास की कृष्ण एकादशी को "योगिनी" अथवा "शयनी" एकादशी कहते हैं। इस बार ये तिथि 9 जुलाई 2018 को पड़ रही है। इस व्रत से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। यह इस लोक में भोग और परलोक में मुक्ति देने वाली है। यह तीनों लोकों में प्रसिद्ध है। योगिनी एकादशी व्रतकथा पद्मपुराण के उत्तरखण्ड में प्राप्त होती है। इस व्रतकथा के वक्ता श्रीकृष्ण एवं मार्कण्डेय हैं। श्रोता युधिष्ठिर एवं हेम माली हैं। जब युधिष्ठिर आषाढ़ कृष्ण एकादशी का नाम एवं महत्त्व पूछते हैं, तब वासुदेव जी इस कथा को कहते हैं।
मेघदूत में महाकवि कालिदास जी ने किसी शापित यक्ष के विषय में उल्लेख किया है। मेघदूत में वह यक्ष मेघ को ही दूत स्वीकार कर उसके माध्यम से अपनी पत्नी के लिए सन्देश भेजता है। कालिदास जी की वह मेघदूत की कथा इस कथा से प्रभावित है ऐसा माना जाता है। कि हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियां होती हैं। उनमें आषाढ़ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी कहते हैं।
कथा
एक बार की बात है धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि भगवन, मैंने ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी के व्रत का माहात्म्य सुना किन्तु मैं आपके श्री मुख से इसका सविस्तार पूर्वक माहात्म्य समझना चाहता हूं। अब ये विनय है कि कृपया आप आषाढ़ कृष्ण एकादशी की कथा सुनाइए। इसका नाम क्या है? एवं माहात्म्य क्या है? यह भी बताइए।
श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे धर्मराज! ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी का नाम योगिनी है। इसके व्रत से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। यह इस लोक में भोग और परलोक में मुक्ति देने वाली है। यह तीनों लोकों में प्रसिद्ध है। मैं तुमसे पुराणों में वर्णन की हुई कथा कहता हूं। ध्यानपूर्वक स्मरण करो।
स्वर्गधाम की अलकापुरी नामक नगरी में कुबेर नाम का एक राजा रहता था। वह शिव भक्त था और प्रतिदिन शिव की पूजा किया करता था। हेम नाम का एक माली पूजन के लिए उसके यहां फूल लाया करता था। हेम की विशालाक्षी नाम की सुंदर स्त्री थी। एक दिन वह मानसरोवर से पुष्प तो ले आया लेकिन कामासक्त होने के कारण वह अपनी स्त्री से हास्य-विनोद तथा रमण करने लगा
इधर राजा उसकी दोपहर तक राह देखता रहा। अंत में राजा कुबेर ने सेवकों को आज्ञा दी कि तुम लोग जाकर माली के न आने का कारण पता करो, क्योंकि वह अभी तक पुष्प लेकर नहीं आया। सेवकों ने कहा कि महाराज वह पापी अतिकामी है, अपनी स्त्री के साथ हास्य-विनोद और रमण कर रहा होगा। यह सुनकर कुबेर ने क्रोधित होकर उसे बुलाया।
हेम माली राजा के भय से कांपता हुआ उपस्थित हुआ। राजा कुबेर ने क्रोध में आकर कहा- ‘अरे पापी! नीच! कामी! तूने मेरे परम पूजनीय ईश्वरों के ईश्वर श्री शिवजी महाराज का अनादर किया है, इसलिए मैं तुझे शाप देता हूं कि तू स्त्री का वियोग सहेगा और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी होगा।’
कुबेर के शाप से हेम माली का स्वर्ग से पतन हो गया और वह उसी क्षण पृथ्वी पर गिर गया। भूतल पर आते ही उसके शरीर में श्वेत कोढ़ हो गया। उसकी स्त्री भी उसी समय अंतर्ध्यान हो गई। मृत्युलोक में आकर माली ने बहुत दु:ख भोगे, भयानक जंगल में जाकर बिना अन्न और जल के भटकता रहा। रात्रि को निद्रा भी नहीं आती थी, परंतु शिवजी की पूजा के प्रभाव से उसको पिछले जन्म की स्मृति का ज्ञान अवश्य रहा। घूमते-घ़ूमते एक दिन वह मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में पहुंच गया, जो ब्रह्मा से भी अधिक वृद्ध थे और जिनका आश्रम ब्रह्मा की सभा के समान लगता था। हेम माली वहां जाकर उनके पैरों में पड़ गया।
उसे देखकर मार्कण्डेय ऋषि बोले तुमने ऐसा कौन-सा पाप किया है, जिसके प्रभाव से यह पीड़ा हो गई है। हेम माली ने सारा वृत्तांत रोते हुए सुनाया। यह सुनकर ऋषि बोले- निश्चित ही तूने मेरे सम्मुख सत्य वचन कहे हैं, इसलिए तेरे उद्धार के लिए मैं एक व्रत बताता हूं।
अगर तू ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की योगिनी नामक एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करेगा तो तेरे सब पाप नष्ट हो जाएंगे। यह सुनकर हेम माली ने अत्यंत प्रसन्न होकर ऋषि को साष्टांग प्रणाम किया। ऋषि ने उसे स्नेह के साथ उठाया। हेम माली ने ऋषि के कथनानुसार विधिपूर्वक योगिनी एकादशी का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से अपने पुराने स्वरूप में आकर वह अपनी स्त्री के साथ सुखपूर्वक रहने लगा।
भगवान कृष्ण ने कहा की - हे धर्मराज ! यह योगिनी एकादशी का व्रत 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर फल देता है। इसके व्रत से समस्त पाप दूर हो जाते हैं और अंत में स्वर्ग प्राप्त होता है। जिस कामना से कोई भक्त संकल्प करके इस एकादशी का व्रत करता है उसकी वह कामना बहुत शीघ्र ही पूरी हो जाती है, वहीं जीव के सभी पापों एवं विभिन्न प्रकार के पापों से भी छुटकारा मिलता है। किसी के दिए श्राप से मुक्ति पाने के लिए यह व्रत कल्पतरू के समान है। व्रत के प्रभाव से हर प्रकार के चर्म रोगों की निवृत्ति हो जाती है।
योगिनी एकादशी व्रत व पूजा विधि
योगिनी एकादशी के उपवास की शुरुआत दशमी तिथि की रात्रि से ही हो जाती है।
व्रती को दशमी तिथि की रात्रि से ही तामसिक भोजन का त्याग कर सादा भोजन ग्रहण करना चाहिए और ब्रह्मचर्य का पालन अवश्य करें। हो सके तो जमीन पर ही सोएं।
प्रात:काल उठकर नित्यकर्म से निजात पाकर स्नानादि के पश्चात व्रत का संकल्प लें।
कुंभ स्थापना कर उस पर भगवान विष्णु की प्रतिमा रख उनकी पूजा करें।
भगवान नारायण की प्रतिमा को स्नानादि करवाकर भोग लगाएं। पुष्प, धूप, दीप आदि से आरती उतारें।
पूजा स्वयं भी कर सकते हैं और किसी विद्वान ब्राह्मण से भी करवा सकते हैं।
दिन में योगिनी एकादशी की कथा भी जरुर सुननी चाहिए।
इस दिन दान कर्म करना भी बहुत कल्याणकारी रहता है।
पीपल के वृक्ष की पूजा भी इस दिन अवश्य करनी चाहिए।
रात्रि में जागरण करना भी अवश्य करना चाहिए।
इस दिन दुर्व्यसनों से भी दूर रहना चाहिए और सात्विक जीवन जीना चाहिए।
दान
दान सदा ही पुण्यफलदायक होता है। शास्त्रानुसार किसी भी प्रकार का दान करते समय ब्राह्मण को या योग्य पात्र को दक्षिणा अवश्य देनी चाहिए। अत: इस व्रत को करने से लोक और परलोक दोनों सवर जाते हैं।
Created On :   4 July 2018 10:07 AM GMT