विश्व कठपुतली दिवस: कठपुतली संचार संप्रेषण का सशक्त माध्यम:डॉ रामदीन त्यागी

कठपुतली संचार संप्रेषण का सशक्त माध्यम:डॉ रामदीन त्यागी
  • संचार का सशक्त माध्यम कठपुतली
  • एमसीयू के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया विभाग में आयोजित हुआ कार्यक्रम
  • विश्व का प्राचीनतम रंगमंच पर खेले जाने वाला कार्यक्रम कठपुतली

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मध्यप्रदेश के भोपाल में स्थित माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया विभाग में विश्व कठपुतली दिवस और विश्व वानिकी दिवस के अवसर पर "कठपुतली संचार परम्परा का एक सशक्त माध्यम" पर एक व्याख्यान का आयोजन हुआ। आयोजन के मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा प्रदत्त श्रेष्ठ अध्येता एवं प्राध्यापक अवार्डी 2024 डॉ. रामदीन त्यागी थे।

डॉ. त्यागी ने अपने व्याख्यान में बताया कि भगवान शिव ने पार्वती माता के मन बहलाने हेतु पुत्तल का रूप लिया और उनका मनोरंजन किया। कठपुतली भारत की प्राचीन सभ्यता और संस्कृति का हिस्सा भी है। हड़प्पा काल से पुत्तल का ज़िक्र मिलता है। ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में पाणिनी की अष्टाध्यायी में 'नटसूत्र' में 'पुतला नाटक' का उल्लेख मिलता है। पूरे विश्व मे कठपुतली और उसकी संचार परम्परा मिलती है। बच्चें बचपन से ही संवाद के स्वरूप को समझने हेतु इसके साथ जुड़ते हैं। कठपुतली खिलौना छोटे शिशुओं और छोटे बच्चों की विचार प्रक्रिया और निर्णय लेने की क्षमता को आकार देने में मदद करते हैं। संवाद की लोककलाओं में यह एक सशक्त माध्यम है,नई पीढ़ी को संवाद के परंपरागत माध्यम से जोड़ने का यह कार्य करता है। जैसे आज पर्यावरण से बैल, कौआ, गुरैया गायब हो रही है, या गायब होने के कगार पर है। उसी प्रकार संचार से कठपुतली गायब हो रही है , हमारी संस्कृति से कठपुतली के गायब होने पर, यह अपनी मौलिकता से गुप्त हो जाएगी। यह हमारी ज्ञान परम्परा का महत्त्वपूर्ण पहलू है।

कठपुतली का बढ़ता प्रचलन

डॉ त्यागी ने अपने संबोधन में आगे कहा कि कठपुतली विश्व का प्राचीनतम रंगमंच पर खेले जाने वाला कार्यक्रम है। इनके माध्यम से सशक्त संदेश, संवाद एवं सामाजिक मुद्दों के साथ सामाजिक कुरीतियों को उजागर करने की दिशा में संचार का संप्रेषण किया जाता है। कठपुतली संचार की ऐसी लोक कला है जिसके माध्यम से अत्यंत सहज सरल और रोचक संचार किया जाता है। कठपुतली का संसार बहुत व्यापक है। भारत के विभिन्न राज्यों के अलावा इंडोनेशिया और कंबोडिया जैसे देशों में इनका प्रचलन देखा जा सकता है।

परंपराओं को जीवित रखने में योगदान

बदलते समय के साथ कठपुतली ने भी विकास के नए नए सोपान तय किए है। राजस्थान में कठपुतली का बड़ा प्रचलन है, मौजूदा दौर में राजस्थान के साथ साथ कई इलाकों में कई मेले ,धार्मिक त्यौहार एवं अन्य आयोजन कठपुतली के बिना अधूरे माने जाते है। यही नहीं डॉ त्यागी ने कठपुतलियों के कई प्रकार भी बताए। त्यागी ने कहा आज आवश्यकता इस बात की है कि हम भारतीय प्राचीन परंपराओं और भारतीय नैतिक मूल्य को बचाए रखने के लिए ऐसे उपक्रम करते रहें। उन्होंने विभाग के विद्यार्थियों से आह्वान किया कि वे भारतीय मूल्य से जुड़ी हुई परंपराओं को जीवित रखने में अपना योगदान दें।

कठपुतली एक कला-लेफ्टिनेंट चौरासे

कार्यक्रम के प्रारंभ में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया विभाग के समन्वयक लेफ्टिनेंट मुकेश चौरासे ने विषय प्रतिपादन किया और विश्व कठपुतली दिवस की प्रस्तावना रखी। लेफ्टिनेंट मुकेश चौरासे ने कहा कि कठपुतली एक गुड़िया या आकृति है जिसे व्यक्ति द्वारा नियंत्रित कर उसे चलती हुई प्रतीत किया जाता है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया विभाग पारंपरिक मीडिया के संरक्षण करने का हमेशा कार्य करता है। हमारे एमएससी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के विद्यार्थियों ने सहायक प्राध्यापक राहुल खड़िया के मार्गदर्शन और डॉ. मनोज पटेल के संपादन में "कलाकार" डॉक्यूमेंट्री बनाकर कठपुतली कला और कलाकारों के संरक्षण में अपना योगदान कर रहे है। जिसे हाल में ही विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा स्क्रीप्ट राइटिंग हेतु साइटेशन भी प्राप्त हुआ है। पर्यावरण से कठपुतली सीधे जुड़ी हुई है। किसान खेत में फसल को पशु-पक्षियों से बचाने के लिए 'कागभगौड़ा' (बिजूका) लगाते है। यह भी एक तरह का कठपुतली ही है।

कर्नाटक के चन्नापटना खिलौने न केवल सांस्कृतिक रूप से अद्वितीय हैं, बल्कि अपने निर्माण में पर्यावरण के प्रति भी जागरूक हैं । यह खिलौने पर्यावरण के अनुकूल, गैर विषैले रंगों से तैयार किए जाते हैं। बच्चों के अनुकूल उपयोग के लिए इस प्रक्रिया में वनस्पति रंगों का उपयोग किया जाता है। यह भी एक तरह के कठपुतलियां ही है।

कठपुतली बनाना, नचाना, कहानी लिखना और गीत गाना एक कला है। इसमें डायलॉग डिलवरी, स्क्रिप्ट राइटिंग, बॉडी लैंग्वेज, शब्दों के साथ पीच, पंक्चुएशन, मॉड्युलेशन आदि की बारीकियां भी शामिल है। यह सब कठपुतलियों को जीवन देती है। यह सब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का हिस्सा है। जिसे विद्यार्थी सीखने समझने और सजोने का प्रयास करते है। इस अवसर पर विभाग के विद्यार्थियों सहित कार्यक्रम में विवि के जनसंपर्क अधिकारी डॉ अरुण खोबरे,सहायक प्राध्यापक राहुल खड़िया, प्रोडक्शन सहायक प्रियंका सोनकर, अतिथि प्राध्यापक जगमोहन सिंह राठौड़, डॉ अरुण पाटिलकर, सुमित श्रीवास्तव, सौरभ सक्सेना,आकाश सैनी सहित अन्य प्राध्यापक एवं छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।

Created On :   21 March 2024 1:44 PM GMT

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