जर्मनी के बेरहम कानून ने छीन ली मां-बाप से उनकी 3 साल की बेटी,लाचार परिजनों से पीएम मोदी से लगाई गुहार, याद आ जाएगा 12 साल पुराना नार्वे का केस
- पीएम मोदी सुलझा सकते हैं मामला
- बेटी के साथ किया जा रहा बुरा व्यवहार
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हाल ही में बॉलीवुड अभिनेत्री रानी मुखर्जी की अपकमिंग मूवी 'मिसेज चटर्जी वर्सेस नार्वे' का ऑफिशियल ट्रेलर रिलीज किया गया था। ट्रेलर रिलीज के बाद से ही फिल्म का विषय काफी सुर्खियां बटौर रहा है। फिल्म में रानी मुखर्जी ने एक ऐसी मां का किरदार निभाया है जिनको उनके बच्चों से दूर कर दिया जाता है। सत्य घटना पर आधारित इस फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे नॉर्वे सरकार अपने देश के कानूनों का हवाला देकर भारतीय मूल के दंपति पर बच्चों की सरकारी दिशा-निर्देशों के अनुरूप परवरिश न किये जाने का आरोप लगाती है और उनसे उनके दोनों बच्चे छीन लेती है। ये फिल्म 2011में नार्वे में एक भारतीय दंपत्ति के बच्चे छीन लेने की घटना पर बेस्ड है।
ऐसा ही एक मामला जर्मनी से सामने आया है जिसमें एक भारतीय मूल के परिवार से जर्मन प्रशासन ने उनकी तीन साल की मासूम बच्ची की कस्टडी ले ली हैा। प्रशासन ने बच्ची के माता पिता पर उसकी परवरिश सही तरह से न करने का आरोप लगाते हुए देश के कानून का हवाला देते हुए उसे तीन साल के लिए अपनी कस्टडी में ले लिया है। जिसके बाद लाचार माता पिता ने अपने बच्ची को वापस लाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर से गुहार लगाई है।
भारतीय अधिकारियों से की मुलाकात
अपनी बेटी अरिहा को जर्मन प्रशासन से छुड़ाकर भारत लाने की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए माता पिता भावेश और धारा ने 9 मार्च को मुंबई में भारतीय अधिकारियों से मुलाकात की। इस दौरान उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन भी किया, जिसमें उन्होंने पूरा घटनाक्रम बताया।
यौन शोषण का था शक
प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान बच्ची के परिजनों ने कहा, "सितंबर 2021 में हमारी बेटी को जर्मन चाइल्ड सर्विस अपने साथ ले गई। गलती से उसके प्राइवेट पार्ट में चोट लग गई थी। जिसके बाद हम उसे डॉक्टर के पास ले गए। डॉक्टर ने कहा कि बच्ची ठीक है।"
उन्होंने आगे बताया, "इसके बाद हम फिर बच्ची को टेस्ट कराने के लिए डॉक्टर के पास लेकर गए। पिछली बार की तरह ही इस बार भी डॉक्टर ने मेरी बेटी को ठीक बताया, लेकिन उन्होंने बाल अधिकारों के लिए काम करने वाली एजेंसी को बुला लिया और उन्हें मेरी बेटी की कस्टडी सौंप दी। बाद में हमें मालूम हुआ कि डॉक्टर को लड़की के साथ यौन शोषण होने का संदेह था।"
लड़की की मां ने कहा, "हमने अपने डीएनए सैंपल भी दिए। डीएनए टेस्ट, पुलिस जांच और मेडिकल रिपोर्ट के सामने आने के बाद फरवरी 2022 में यौन शोषण का केस बंद कर दिया गया था।"
गलत रिपोर्ट की तैयार
बच्ची के पिता ने कहा, "इतना सब होने के बाद हमने सोचा कि हमारी लड़की हमारे साथ वापस आ जाएगी, लेकिन जर्मन चाइल्ड सर्विसेज ने इस केस को फिर ओपन कर दिया। जिसके बाद हमने अदालत का रुख किया। केस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने माता पिता की क्षमता रिपोर्ट बनाने का आदेश प्रशासन को दिया। करीब 1 साल बाद हमें 150 पेजों की एक रिपोर्ट मिली। हैरानी की बात यह है कि रिपोर्ट बनाने वाले मनोवैज्ञानिकों ने हमसे केवल 10 से 12 घंटे बात की और 150 पेज लंबी रिपोर्ट बना दी।"
उन्होंने आगे कहा, "रिपोर्ट मिलने के बाद जांच की अगली डेट मिली। रिपोर्ट में कहा गया कि बच्ची और परिजनों के बीच का संबंध काफी मजबूत है। बच्ची को अपने मां-बाप के पास लौट जाना चाहिए, लेकिन मां-बाप को यह नहीं पता कि बच्ची का पालन पोषण कैसे करना है। जिसको देखते हुए बच्ची को एक ऐसे पारिवारिक माहौल में रखने की जरुरत है जिसमें वो सब-कुछ सीख सके। इस वजह से बच्ची के 6 साल होने तक उसे चाइल्ड सर्विसेज की कस्टडी में रखने का आदेश दिया। पिता ने बताया कि, उन्होंने तर्क दिया कि हम उसे जितना चाहें उतना खाने दें। उसे खुलकर खेलने दें। उन्होंने यह भी कहा कि बच्चे को अटैचमेंट डिसऑर्डर है।"
बच्ची को भारतीय भाषा का ज्ञान नहीं
पिता ने कहा, "हमने उनसे बच्चे को भारत आने देने के लिए कहा क्योंकि वहां केस लंबा चलने वाला था। उन्होंने कहा कि वे उसे भारत नहीं भेज सकते, क्योंकि वह कोई भारतीय भाषा नहीं जानती है। उसे कम से कम एक भारतीय भाषा सिखाने के लिए कह रहे हैं। हमारे दोस्त और परिवार उसे आसानी से भारतीय भाषा सिखा सकते थे। जर्मनी में ऐसे कई भारतीय थे जो उसे हिंदी सिखाने के लिए तैयार थे। लेकिन उन्होंने इसके लिए मना कर दिया।"
उन्होंने कहा, "मुझे भी आईटी कंपनी से निकाल दिया, जहां मैं काम करता था। हम पर पहले से ही 30-40 लाख रूपये का कर्जा है।"
कोर्ट के आदेश का पालन नहीं कर रही चाइल्ड सर्विसेस
बच्ची की मां ने बताया, "हमें एक सामाजिक कार्यकर्ता की निगरानी में हर महीने केवल एक घंटे के लिए अपनी बेटी से मिलने दिया जाता है। हमने कोर्ट से मिलने के समय में बढ़ोत्तरी करने की मांग की, लेकिन उसे यह कहते हुए नकार दिया कि इससे बच्ची थक सकती है। इसके बाद हमें सितंबर 2022 में महीने में दो बार बेटी से मिलने की अनुमति कोर्ट से मिल गई। जिसके बावजूद भी जर्मन चाइल्ड सर्विसेस ने कोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया। दिसंबर 2022 में भारत सरकार के हस्तक्षेप के बाद ही उन्होंने अदालत के आदेश का पालन करना शुरू किया।"
बेटी के साथ किया जा रहा बुरा व्यवहार
उन्होंने बताया कि, "मेरी बेटी भारतीय है उसे एक भारतीय भाषा जाननी चाहिए और सांस्कृतिक ज्ञान पाना चाहिए। हमने इसके लिए काउंसलर एक्सेस की भी मांग की है। क्रिमिनल्स को भी काउंसलर एक्सेस मिलता है लेकिन हमारी बच्ची के साथ तो वहां क्रिमिनल से भी बुरा व्यवहार किया जा रहा है।"
पीएम मोदी सुलझा सकते हैं मामला
अपनी बच्ची को वापस भारत लाने के लिए माता पिता ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मदद की गुहार लगाई है। बच्ची की मां ने कहा, "हम उसे भारत लाना चाहते हैं। हम पीएम मोदी से अनुरोध करते हैं वह इसमें हमारी सहायता करें। हम विदेश मंत्री एस जयशंकर से भी अनुरोध करते हैं। हमारी इस समस्या पर ध्यान दें और हमारे बच्चे को वापस लाने में हमारी सहायता करें। अगर पीएम मोदी इस केस को अपने हाथ में लेते हैं तो यह सुलझ सकता है।"
Created On :   10 March 2023 6:52 PM IST