अयोध्या फैसले के बाद विपक्ष को तलाशने होंगे नए सियासी उपकरण

After the Ayodhya verdict, the opposition will have to find new political tools
अयोध्या फैसले के बाद विपक्ष को तलाशने होंगे नए सियासी उपकरण
अयोध्या फैसले के बाद विपक्ष को तलाशने होंगे नए सियासी उपकरण

लखनऊ , 12 नवंबर (आईएएनएस)। राममंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का असर उत्तर प्रदेश की राजनीति पर पड़ने वाला है। इस फैसले से न केवल राजनीतिक दिशा और दशा बदलेगी, बल्कि विपक्षी दल सपा, कांग्रेस और बसपा को नए सियासी उपकरण भी तलाशने होंगे।

दिसंबर, 1992 में विवादित ढांचा विध्वंस करने के बाद से मुसलमानों के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अछूत हो गई थी। समाजवादी पार्टी (सपा), कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने इसका भरपूर लाभ उठाया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मुस्लिमों ने फैसले को कुबूल कर लिया, दोनों ने गलबहियां भी कीं। इससे विपक्ष के सामने बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है।

विपक्ष, मंदिर मुद्दे को लेकर भाजपा को घेरता रहा है, मगर भाजपा इस फैसले का श्रेय भी लेने में पीछे नहीं हटेगी। हालांकि भाजपा को यह जमीन तैयार करने में कई वर्ष लग गए हैं। अब चुनाव में यह मुद्दा उस तरह नहीं दिखेगा जैसा अभी तक दिखता रहा है। फिर भी किसी न किसी रूप में यह भाजपा की सियासी साख बढ़ाने में मददगार जरूर बनेगा।

वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव तक इस मुद्दे को भाजपा भी गर्म रखना चाहेगी। वह शिलापूजन से लेकर आधारशिला रखने तक की तैयारी को बड़े इवेंट के रूप में प्रस्तुत करेगी। यह विपक्षियों के लिए बड़ी परेशानी बन सकता है।

हालांकि विपक्षी दल भी इस पर बड़ी सधी हुई प्रतिक्रिया दे रहे हैं, ताकि उनके अल्पसंख्यक वोट बचे रहें और बहुसंख्यक जो मिलता है, वह बना रहे। प्रदेश में सत्ता वापसी के सपने संजो रही कांग्रेस के लिए राममंदिर ही फिर चुनौती बन सकता है। वर्ष 2022 के चुनाव में जब वह मैदान में होगी, तब यह मुद्दा चरम पर हो सकता है। ऐसे में कांग्रेस को इसकी काट ढूंढनी पड़ेगी।

कांग्रेस के लिए अल्पसंख्यक वोट बचाने की बड़ी चुनौती है। वह सपा के अल्पसंख्यक वोटों में सेंधमारी करके अन्य दलों के बहुसंख्यक वोटों को संजोने का प्रयास करेगी। इसी प्रकार सपा अभी इस मुद्दे पर कोई भी कदम उठाने में जल्दबाजी नहीं दिखा रही है।

वह मुस्लिमों की खामोशी और उनके धार्मिक संगठनों पर बराबर नजर बनाए हुए हैं। यह देखते हुए सपा का एक खेमा रणनीति में बदलाव करने में लगा है। वह सरकार पर भी पैनी नजर रखे हुए है। अयोध्या विवाद में भाजपा के साथ सपा को ही भरपूर राजनीतिक लाभ मिला। आज भी मुस्लिमों की पहली पसंद सपा है। पार्टी में एक खेमा चाहता है कि पार्टी मुस्लिमों के मन की बात करे, ताकि मुलायम सिंह के दौर वाला भरोसा बना रहे।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक प्रेमशंकर मिश्रा ने कहा कि भावनात्मक मुद्दों पर प्रतिक्रिया करके विपक्ष नुकसान उठा चुका है। राममंदिर पर फैसला सुप्रीम कोर्ट का है। इसके साथ बड़े पैमाने पर जनभावना भी जुड़ी है। इसलिए विपक्ष का रुख बड़ा सतर्क है। उनके बयानों में यह कोशिश है कि वह सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के साथ दिखे, लेकिन भाजपा के साथ न हो। अगर वह प्रतिक्रिया देंगे तो इसका फायदा भाजपा को होगा। विपक्ष को अपनी जमीन बचाने के लिए नए मुद्दे ढूंढने होंगे।

भाजपा प्रवक्ता डॉ़ चंद्रमोहन का कहना है, पार्टी के लिए यह सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का मुद्दा है, इसीलिए हमने लड़ाई लड़ी और आगे बढ़ाया। विपक्षी दल धर्म और संप्रदाय की राजनीति करते हैं। वे परेशान होंगे। हम तो सबका साथ, सबका विकास पर आस्था रखते हैं।

Created On :   12 Nov 2019 4:00 AM GMT

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